
धरती का चूमचाम
बदरे में रेखा
हाय रे परान
तोहे कबहुं न देखा।
बदले भूगोल अब
बदले विशेखा
भारती के भाल से
मिटे कलंक रेखा।
देखा नहीं सिंध
पंजाब सज्जो पाया
नहीं सप्त सिंधु का
सिंगार उसे भाया।
गीत गाते हिंद जो
सुनाए अपनी गाथा
पाए बस दो ही
गुजरात और मराठा।
धरती की धार और
गिरिवन की छाया
पीर पंजाल की
जो पसरी है काया।
शारदा की शक्ति
ऋषि कश्यप का तप
शिव की शरण
हिंगलाज का जो जप।
चूमना है धरती
बदरवा के पास
दुनिया की पूरी हो
सनातन की आस।।
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