Pitru Paksha: कौवे के रूप मे दिखने वाले कागभुषंडी जी प्रभु श्रीराम के बहुत बड़े भक्त थे और इन्हें यह वरदान प्राप्त था कि वो समय और टाइम के बाहर जा सकते थे। यानि कि पूर्व में क्या घटित हुआ और भविष्य में क्या घटित होगा वो सब देख सकते थे। वो समय / टाइम के बनने बिगड़ने की स्थिति को देख सकते थे।

इसलिए उन्होंने महाभारत 11 बार और रामायण 16 बार देखा था वो भी बाल्मिकि जी द्वारा रामायण और वेदव्यास जी द्वारा महाभारत लिखे जाने से पहले। क्योंकि ये अपने पूर्व जन्म में कौआ थे और सबसे पहले राम कथा भगवान शंकर ने माता पार्वती जी को सुनायी थी तो इन्होंने भी सुन लिया था। मृत्यु के उपरांत दूसरा जन्म इनका अयोध्यापुरी में एक शूद्र परिवार में हुआ था। ये परम शिव भक्त थे, लेकिन अभिमान वश अन्य देवताओं का उपहास उड़ाते थे।

इसे भी पढ़ें: क्यों दोपहर में होता है पितरों का भोजन, जानें कैसे होता है पिंडदान और तर्पण

इसी बात से क्षुब्ध होकर लोमष ऋषि ने इन्हें श्राप दे दिया था, जिससे ये फिर कौआ बन गये थे और इसके बाद इन्होंने पूरा जीवन कौवे के रूप में ही जिया। जब रावण के पुत्र मेघनाथ ने श्रीराम से युद्ध करते हुए भगवान श्रीराम को नागपाश से बांध दिया था तब देवर्षि नारद के कहने पर गिद्धराज गरुड़ ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर भगवान श्रीराम को नागपाश के बंधन से मुक्त कर दिया था। भगवान श्रीराम के इस तरह नागपाश में बंध जाने पर श्रीराम के भगवान होने पर गरुड़ को संदेह हो गया। गरुड़ का संदेह दूर करने के लिए देवर्षि नारद उन्हें ब्रह्माजी के पास भेज देते हैं। ब्रह्माजी उनको शंकरजी के पास भेज देते हैं तथा भगवान शंकर ने भी गरुड़ को उनका संदेह मिटाने के लिए कागभुषंडी जी के पास भेज दिया। अंत में कागभुषंडी जी ने भगवान श्रीराम के चरित्र की पवित्र कथा सुनाकर गरुड़ के संदेह को दूर किया था। इसीलिए हिंदू सनातनी लोग श्राद्ध पक्ष में कौवे के रूप में कागभुषंडी जी को भोजन कराते हैं ताकि वो भोजन हमारे पूर्व के पितरों तक पहुंच सके।

इसे भी पढ़ें: पितर दोष से मुक्ति के लिए अपनाएं ये उपाय

Spread the news