गत 23 अगस्त को दिन में जब मैंने वाहन से खजुराहो (Khajuraho) के लिए प्रस्थान किया तो दशकों पुरानी स्मृतियां ताजी हो गईं। तब मैं अपने गृहनगर इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में रहता था और वहां शीर्षस्थ पत्रकार था। उस समय मैं विभिन्न क्षेत्रों की समस्याओं आदि पर लिखने के लिए स्कूटर द्वारा विशाल इलाहाबाद जनपद की आठों तहसीलों में तो जाया ही करता था, प्रायः बहुत दूर-दूर तक भी यात्रा पर निकल जाता था।
मेरे बगल के घर में पार्थ चटर्जी रहता था, जो मेरा मित्रवत शिष्य था। वह अकसर मेरा साथ दिया करता था। जब वह कलकत्ता चला गया तो उसका अनुज ध्रुव साथ देने लगा। ध्रुव भी पार्थ की तरह स्कूटर अच्छा चलाता था। स्कूटर पर दूर-दूर तक यात्रा पर जाने के कारण मैंने सुविधा के लिए उसमें पीछे मजबूत कैरियर लगवा लिया था, जिस पर अटैची एवं बैग रख लेता था। स्कूटर की सरविसिंग नियमित रूप से कराता रहता था।
दशकों पूर्व खजुराहो (Khajuraho) की उस यात्रा के लिए मैं ध्रुव के साथ प्रातः आठ बजे के लगभग इलाहाबाद से रवाना हुआ था। महोबा पहुंचने तक चूंकि सूर्यास्त होने लगा था, इसलिए हम महोबा के एक होटल में भोजन-विश्राम के लिए रुक गए थे। महोबा आल्हाऊदल की वीरभूमि है तथा वहां विकास एवं पर्यटन की बहुत अधिक संभावनाएं हैं। मैं इसके लिए तभी से प्रयत्नशील हूं और काफी लिखा-पढ़ी करता रहता हूं। पास में चरखारी एवं अन्य अनेक दर्शनीय स्थल हैं। वहां का ऐतिहासिक कजली मेला सुविख्यात है।
पिछली यात्रा में जब मैं खजुराहो गया था, उस समय वह बिलकुल अविकसित स्थिति में था। वहां के मंदिरों में अपेक्षित देखभाल का अभाव था। हम स्कूटर से मंदिरों तक पहुंच गए थे और वहां एक मंदिर के पास स्कूटर खड़ा कर सभी मंदिरों का भ्रमण किया था। तब की एक रोचक घटना याद है। एक टिपटॉप लेडी एक पुरुष के साथ वहां आई हुई थी और अपने साथी को कामकला वाली मूर्तियां ढूंढ़-ढूंढ़कर दिखा रही थी। गत 23 अगस्त को जब मैं खजुराहो पहुंचा तो वह काफी बदले हुए रूप में मिला। मंदिर वाले विशाल परिसर की घेराबंदी कर वहां प्रवेश-टिकट लगा दिया गया है। परिसर का पर्याप्त सुंदरीकरण हुआ है तथा वहां आकर्षक घास के मैदान आदि बना दिए गए हैं। खजुराहो नगरी में काफी संख्या में आवासों एवं दुकानों का अस्तित्व हो गया है। अच्छी शिक्षण-संस्थाएं विद्यमान हैं। जैन मंदिर वाला परिसर भी पर्याप्त विकसित कर दिया गया है। खजुराहो में बसस्टैंड के पास एक दुकान पर बड़े अच्छे समोसे बन रहे थे। भूख लगी थी, इसलिए वहां कई समोसे खाए।
महोबा से आगे बढ़ने पर लवड़ी नामक स्थान से लेकर खजुराहो तक कुछ ही जगहों पर खेती होती मिली। शेष जमीन कदाचित ऊसर है, अतः वहां बड़े पैमाने पर औद्योगिक विकास किया जा सकता है। हालांकि वह औद्योगिक विकास इस तरह सोच-समझकर किया जाना चाहिए कि उससे खजुराहो के प्राचीन मंदिरों पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े। विशाल ऐतिहासिक मंदिरों की नगरी खजुराहो में संभवतः खजूर के पेड़ बड़ी संख्या में थे, इसलिए उसे खजुराहो कहा जाने लगा। बताया जाता है कि वहां मुख्य प्रवेशद्वार पर स्वर्ण के बने हुए दो खजूर के वृक्ष थे। चंद्रबरदाई की ‘पृथ्वीराज रासो’ रचना में खजुराहो का उल्लेख खजूरपुरा या खजिनापुरी नाम से किया गया है। खजुराहो के मंदिर स्थापत्यकला की नागर शैली के सर्वाधिक सुंदर उदाहरण हैं। इस शैली में निर्मित मंदिर ऊंचे एवं वृहत आकार के जगत पर उन्नत होते गए शिखरों से युक्त बनाए जाते हैं।
खजुराहो के मंदिरों की स्थापत्य कला में भारतीय जीवन-दर्शन की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति मिलती है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, ये भारतीय जीवन-पद्धति के चार प्राचीन स्तम्भ हैं। इसी क्रम में खजुराहो के मंदिरों में ‘काम’ विषय को भी लिया गया है तथा कामशास्त्र के विभिन्न रूप प्रदर्शित किए गए हैं। जैसे, नयनमैथुन, आलिंगनमैथुन, चुम्बनमैथुन, हस्तमैथुन, मुखमैथुन, गुदामैथुन आदि। यहां तक कि पशुमैथुन भी चित्रांकित है। वैसे, खजुराहो के मंदिरों में काम-कला की मूर्तियां सीमित संख्या में हैं, लेकिन प्रचार उनका ही अधिक है। कुछ के मतानुसार यह उस युग में तब की वाममार्गी शाखा के क्रियाकलापों का चित्रण है, जो योग की तरह भोग को भी मोक्ष का एक मार्ग मानते थे।
किंवदंती है कि वाममार्गी तांत्रिकों द्वारा हर पूर्णिमा को खजुराहो के चौंसठ योगिनी मंदिर के प्रांगण में सामूहिक संभोग का कार्यक्रम आयोजित होता था। समझा जाता है कि आचार्य रजनीश इस वाममार्गी विधा एवं महर्षि चार्वाक के दर्शन से प्रभावित थे। मंदिरों की दीवारों पर सम्पूर्ण भारतीय जीवन परिलक्षित होता है। यहां तक कि मंदिर-निर्माण हेतु लोगों को पत्थर ढोकर लाते हुए भी चित्रित किया गया है। अतीत में खजुराहो में कुल 85 विशाल मंदिर थे, जिन्हें विदेशी मुसलिम हमलावरों ने नष्ट कर दिया। अब लगभग एक दर्जन मंदिर बचे हैं। उनमें भी तोड़फोड़ की गई थी।
खजुराहो नगर चंदेल साम्राज्य की सांस्कृतिक राजधानी था, जहां अध्ययन के लिए दूर-दूर से विद्यार्थी आया करते थे। उस युग में बहुत अच्छे प्रकार के वस्त्र तो थे, किन्तु संभवतः सिलाई का प्रचलन नहीं हुआ था। मूर्तियों से परिलक्षित होता है कि स्त्रियां वक्ष को ढकने के लिए कंचुकी शैली में वस्त्र बांधा करती थीं तथा कटि के नीचे का वस्त्र चांदी व सोने के बने कटिबंधों के रूप में धारण किया जाता था। मूर्तियों में सभी प्रकार के आभूषणों का चित्रण हुआ है। विवाहित महिलाएं सिंदूर लगाती थीं तथा मुकुट आदि का उपयोग करती थीं। पुरुष प्रायः ऊपर की ओर जूड़ा-सा बांधा करते थे। पुरुष भी मुकुट पहनते थे तथा पगड़ी धारण किया करते थे। मूर्तियों में आभूषणों एवं केशसज्जा का प्रचुरता से वर्णन है। मूर्तियों में काफी संख्या में नायिकाओं को पत्र लिखते एवं पढ़ते हुए दिखाया गया है। खजुराहो के कतिपय मंदिरों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैः-
1. लक्ष्मण मंदिरः भगवान विष्णु को समर्पित लक्ष्मण मंदिर अनुमानतः वर्ष 930 में राजा यशोवर्मन ने बनवाया था।
2. विश्वनाथ मंदिरः विश्वनाथ मंदिर अनुमान के अनुसार वर्ष 1002 में निर्मित हुआ। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर महाराजा धंगदेववर्मन द्वारा बनवाया गया।
3. मतंगेश्वर मंदिरः मतंगेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इसका निर्माण हर्षदेव के शासनकाल में अनुमानतः वर्ष 900-25 में हुआ था।
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4. शिवलिंगः मतंगेश्वर मंदिर में भगवान शिव का विशाल शिवलिंग स्थापित है।
5. पार्श्वनाथ मंदिरः पार्श्वनाथ मंदिर वर्ष 954 का सबसे बड़ा एवं भव्य मंदिर है। यह जैन तीर्थंकर को समर्पित है।
6. विश्वनाथ मंदिरः विश्वनाथ मंदिर खजुराहो का तीसरा सबसे बड़ा मंदिर है। इसमंम दो शिवलिंग हैं।
7. चित्रगुप्त मंदिरः चित्रगुप्त मंदिर सूर्यदेव को समर्पित है। यह मंदिर अपने शिखर एवं नृत्य के दृश्यों के लिए विख्यात है।
8. जगदम्बा मंदिरः देवी पार्वती एवं भगवान विष्णु को समर्पित देवी जगदम्बा मंदिर वर्ष 1000 में धंगदेववर्मन द्वारा निर्मित किया गया था।
9. चतुर्भुज मंदिरः भगवान शिव को समर्पित चतुर्भुज मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था।
10. कंदारिया महादेव मंदिरः कंदारिया महादेव मंदिर का निर्माण वर्ष 1025-50 के लगभग किया गया। भगवान शिव का यह मंदिर स्थापत्य एवं शिल्पकला का अत्यंत उत्कृष्ट उदाहरण है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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