भारत अपनी अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार लाने में सफल हुआ है। यह बात संसार के कुछ बड़े नेताओं को बहुत अखर रही है। सन 2008 में 26 नवम्बर को मुम्बई में पाकिस्तान और अमेरिकी आतंकी समूह ने बड़ा आक्रमण किया था। यह आक्रमण पाकिस्तानी आतंकी एजेंसी आईएसआई और उसके अमेरिकी एजेंट डेविड कॉलमेन हेडली की योजनानुसार किया गया था। हेडली मूलत: पाकिस्तान का दाऊद सलीम गिलानी है। इसका पिता पाकिस्तान में टीवी ब्रॉडकास्टर था।
दाऊद सलीम उर्फ डेविड लश्कर-ए-तैयबा में काम करता था। उसने कई बार मुम्बई और भारत के विभिन्न नगरों की यात्रा की। मुम्बई के हमलों की योजना इसी ने बनायी थी। इसने भारत में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों की सहायता के लिए स्थानीय प्रभावशाली लोगों का सहयोग लिया था। दाऊद उर्फ डेविड 24 जनवरी, 2013 से 35 वर्षों के लिए अमेरिकी कारागृह में बन्द है। पर भारत में जिन लोगों ने इस आतंकी घटना में उसका साथ दिया था उनका खुलासा अब तक नहीं हुआ।
स्पष्ट है कि भारत में आतंकी गिरोहों के संरक्षक और उनके अड्डे निर्बाध चल रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियां इस रहस्य को खंगाल चुकी हैं। पर इनके विरुद्ध सीधी कार्रवाई करने में राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव बना हुआ है। जबकि रूस, अमेरिका और इजराइल की गुप्तचर एजेंसियों ने भारत में आतंकी हमलों की झड़ी लगाने की आशंका व्यक्त करते हुए पाकिस्तान और चीन की ओर इंगित किया है। इनका कहना है कि नरेन्द्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और अमित शाह मुख्य रूप से आईएसआई की आंखों में खटक रहे हैं।
डेविड हेडली पाकिस्तान की आईएसआई के माध्यम से लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा था। उसने लश्कर के क्रियाकलापों में बड़े बदलाव किये थे। आतंकी गतिविधियों के लिए बड़ी धनराशि जुटाने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। वह अमेरिकी सरकारी संस्था ड्रग प्रवर्तन प्रशासन (डीईए) के लिए भी गुप्तचरी करता था। इस अमेरिकी संस्था ने इसे बड़ी धनराशि पर नियोजित कर रखा था। डेविड हेडली उर्फ दाऊद ने 26 नवम्बर, 2008 को मुम्बई में जो हमला कराया था उसमें 165 लोग मारे गये थे। हेडली अन्तरराष्ट्रीय आतंकी सरगना है।
डेविड हेडली उर्फ दाऊद ने 2009 में कोपेन हेगन में एक बड़ा आतंकी हमला कराया था। यह हमला वहाँ की एक प्रेस पर किया गया था। जिसपर आरोप था कि इस्लामी पैगम्बर का कार्टून बनाकर समाचार पत्र में छापा था। हेडली के सम्बन्ध में भारतीय गुप्तचर एजेंसियों ने जानकारी एकत्र की थी। हेडली के बारे में पता चला था कि वह पाकिस्तान के ड्रग माफियाओं के सम्पर्क में है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान से बाहर जाने वाली अफीम से निर्मित अनेक ड्रग्स को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इस क्षेत्र में काम करने वाले गिरोहों तक कड़ी जोड़ने में सहायक रहता है। इसके बदले उसे धन मिलता है।
पाकिस्तान की आतंकी एजेंसी आईएसआई वहाँ की सेना और राजनीतिक नेताओं के बीच सन्तुलन का काम करती है। पाकिस्तानी सेना भारत से सीधी लड़ाई का साहस नहीं कर पाती। इसलिए आईएसआई के माध्यम से आतंकी गतिविधियां संचालित कराती है। डेविड हेडली ने भारत में अपने सम्बन्धों के आधार पर पाकिस्तानी आतंकियों को सहायता उपलब्ध कराने का भरोसा दिया। बाद में लश्कर-ए-तैयबा और आईएसआई से अच्छी योजना उसने स्वयं प्रस्तुत की। इस आतंकी कार्रवाई के लिए धन उपलब्ध कराने में भी वह सहायक बन गया।
विदेशी गुप्तचर एजेंसियों का तो यहाँ तक कहना है कि भारत में कई ऐसे बड़े माफिया हैं जो भारत के विरुद्ध चलायी जा रही गतिविधियों में भारी मात्रा में धन लगाते हैं। ऐसे माफियाओं के सम्बन्ध बड़े राजनीतिक घरानों और ऐसे ही द्रोही अधिकारियों से हैं। भारत सरकार ने 24 जनवरी, 2013 के बाद इस प्रकरण में अपनी गुप्तचर एजेंसियों से कोई पूछताछ नहीं की। सारा प्रकरण जांच एजेंसियों ने अलमारियों में बन्द कर दिया।
विशेषज्ञ मानते हैं कि उन प्रभावशाली लोगों के नाम उजागर किये जाएं तो भारत में आतंकवाद की गहरी जड़ों तक पहुँचा जा सकता है। यह विचित्र बात है कि भारत के विरुद्ध गतिविधियों के लिए संसाधन जुटाने में अन्तरराष्ट्रीय गिरोहों की सहायता करने वाले भारतीय लोगों की जानकारी विदेशी एजेंसियों के पास है। किन्तु भारत की एजेंसियां इस सन्दर्भ में मौन हैं।
विदेश की कई गुप्तचर एजेंसियों ने 2024 के आम चुनाव से पहले बताया था कि नरेन्द्र मोदी का विजय रथ रोकने के लिए कई बड़े अन्तरराष्ट्रीय माफिया सक्रिय हो चुके हैं। इसके बाद भी भारत का गृह मन्त्रालय का तन्त्र आत्ममुग्ध बैठा रहा। विदेशी षडयन्त्रकारियों ने अपना सारा ध्यान उत्तर प्रदेश पर केन्द्रित कर दिया। उत्तर प्रदेश में मोदी के विजय रथ के घोड़ों की वल्गा कतिपय ऐसे विपक्षी नेताओं के हाथों में थमाने का काम किया जो अनुभव में अपने पूर्ववर्तियों से बहुत पीछे हैं। ऐसे नेताओं के पूर्ववर्ती दिग्गज जब सत्ता के शीर्ष पर रहे तब देश में आतंकवाद की घटनाओं में वृद्धि हुई थी। यह षडयन्त्रकारी उत्तर प्रदेश सहित देश के विभिन्न भागों में अस्थिरता पैदा करने के प्रयत्नों में लगे हैं।
उत्तर प्रदेश को केन्द्र मानकर विदेशी षडयन्त्रकारियों के सहयोग से बड़ा कुचक्र रचा गया है। पहला लक्ष्य यह है कि 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले अनेक प्रकार के विभ्रम पैदा करने वाले विमर्श खड़े किये जाएं जिससे योगी आदित्यनाथ को पद त्यागकर हटना पड़े। नरेन्द्र मोदी से पहले योगी आदित्यनाथ पर षडयन्त्रकारियों का ध्यान केन्द्रित है। इसके लिए अनेक तरह के हथकण्डे अपनाये जाते रहेंगे। राजनीतिक विद्वेश के साथ सामाजिक स्तर पर योगी की साख को बिगाड़ने के लिए उपक्रम चलाये जा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की नौकरशाही पर योगी आदित्यनाथ पूरा भरोसा करते हैं। उन्होंने इस बात की पड़ताल नहीं की कि अधिकारियों का कितना बड़ा वर्ग उनके साथ ही भाजपा के प्रति विद्वेश से भरा है। ऐसी नौकरशाही एक बड़ा संकट है। साथ ही राजनीतिक वैमनस्य की चुनौती मोदी और योगी के लिए दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। उनके दल में एक बड़ा वर्ग बाढ़ के पानी के साथ आने वाले जीव-जन्तुओं की तरह बाह्य वातावरण से आया है। जिनकी रीति-नीति ऐसी है कि वह नरेन्द्र मोदी और योगी के तन्त्र के साथ तालमेल बिठाने में रुचि नहीं ले रहे हैं।
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योगी आदित्यनाथ अपने सिद्धान्तों में किसी तरह का बदलाव करके विपरीत प्रवृत्ति के लोगों से समन्वय करने में विश्वास नहीं करते। यह उनकी मौलिकता बचाये रखने की दृष्टि से उत्तम हैं। योगी का दृढ़ मत है कि जिनकी आस्था अन्याय और भ्रष्टाचार में है उनसे मरते दम तक वह समझौता या तालमेल नहीं करेंगे। अपनी इस पवित्रता को बचाये रखने के लिए राज्य और देश से दूर बैठे षडयन्त्रकारियों की गतिविधियों को ओझल नहीं करना चाहिए। राजनीति में शत्रु और मित्र एक जैसे चोले में दिखते हैं। सुधी नायक यदि अपने चातुर्य से चलता है तो वह दुष्ट शक्तियों पर विजय पा लेता है। उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में लगभग 20 प्रतिशत मुसलिम हैं। ईसाइयों ने भी इस राज्य में व्यापक मतान्तरण किया है। इनमें से बहुतांश मिलकर योगी-मोदी का तख्ता पलटने के षडयन्त्रकारियों के प्रयासों से प्रभावित होते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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