Mount Everest: सागरमाथा (Sagarmatha) संसार के उस शिखर का नाम हुआ करता था जिसे अंग्रेजों ने अन्याय पूर्वक माउण्ट एवरेस्ट (Mount Everest) नाम दे दिया। इसे धरती का मस्तक माना जाता था। यह पर्वत शिखर हजारों वर्षों से अपनी श्रेष्ठता बनाये हुए है। भारत के भू-विज्ञानी राधानाथ सिकदर (Radhanath Sikdar) ने सबसे पहले इस पर्वत शिखर की ऊंचाई की माप की थी। उस समय भारत पर ब्रिटिश सत्ता का नियन्त्रण था। इसलिए राधानाथ सिकदर (Radhanath Sikdar) की उपलब्धि को अपने नाम करने में अंग्रेज सफल हो गये। जिस ब्रिटेनवासी के नाम पर इस सागरमाथा शिखर पर अंग्रेजियत की झूठी मुहर लगाकर नये सिरे से नामकरण किया गया उसने कभी प्रत्यक्ष रूप से हिमालय आकर इसका अवलोकन तक नहीं किया था। यह पर्वत शिखर नेपाल के सोलुखुम्बू जिले में स्थित है। यह जिला हिमाच्छादित पर्वतों वाला है।
सोलुखुम्बू जिले की सीमा एक ओर तिब्बत से लगती है। नेपाल में एवरेस्ट चोटी को दीर्घकाल से सागरमाथा कहा जाता रहा है। भारत के प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में सागरमाथा नाम मिलता है। स्थानीय बोली में इसे कोमोलंगमा नाम से सम्बोधित किया जाता है। यह शब्द तिब्बती भाषा का है। कोमोलंगमा का अर्थ है- श्रेष्ठ सन्त की माता। शब्द से यह परिभाषित होता है कि यह सम्पूर्ण क्षेत्र तपस्वी-ऋषियों की भूमि रही है। चीन की भाषा में इसे शेंग्यू फेंग कहते हैं। इसका अर्थ होता है कि पवित्र साध्वी। सिक्किम की भाषा में इसे देवदुधा कहते हैं। जिसका तात्पर्य है कि देवताओं की माता। भारत और नेपाल के कुछ ग्रन्थों में एवरेस्ट का नाम गौरीशंकर मिलता है। कुछ शोधकर्ताओं ने माना कि जिस शिखर को गौरी शंकर नाम दिया जाता है वह सागरमाथा से अलग है।
नेपाल की राजशाही ने 1960 में भारत से विचार-विमर्श करने के उपरान्त इसका नामकरण सागरमाथा के रूप में मान्य किया था। यह नाम भारत और नेपाल के बहुत बड़े क्षेत्र में कई शताब्दियों से प्रचलित रहा है। इसी आधार पर राजशाही ने सोलुखुम्बू जिले के इस सर्वोच्च शिखर को सागरमाथा नाम स्वीकार कर लिया था। चीन लगभग 300 वर्षों से इस शिखर को अधिकारिक रूप से कोमोलंगमा नाम देता आया है। भारत और नेपाल की ओर से ब्रिटेन के समक्ष यह प्रकरण एक-दो बार मन्त्री स्तरीय वार्ताओं में उठाया जा चुका है। जिसमें कहा गया है कि सागरमाथा का नामकरण जिस ढंग से ब्रिटेन ने किया वह भारतीय और नेपाल क्षेत्र की स्वायतता का उल्लंघन करता है। इसके अतिरिक्त इस सन्दर्भ में कोई बड़ा प्रयास कभी नहीं किया गया। जबकि यह किसी देश की स्वायतता का बड़ा अतिक्रमण है। नेपाल की ओर से अधिक अभिरुचि न लिये जाने के कारण यह मामला जस का तस पड़ा रह गया।
नेपाल के जिस जिले सोलुखुम्बू में यह शिखर स्थित है वहाँ जनसंख्या नाम मात्र को है। इसलिए यह बात महत्वपूर्ण नहीं है कि स्थानीय आधार पर इस चोटी को सागरमाथा कहा जाता है कि नहीं। भारत के ऋषियों और पर्वतारोहियों का आवागमन इस क्षेत्र में सदियों से है। ऋषियों की तपस्थलियों के प्रमाण इस क्षेत्र की कन्दराओं में मिलते हैं। इन्हीं मानवीय गतिविधियों के कारण भारत और नेपाल के जनमानस की अभिरुचि इस शिखर में रही है। इसीलिए दोनों देशों में इसे कहीं सागरमाथा तो कहीं गौरीशंकर कहा जाता रहा है।
इस शिखर की कहानी बड़ी रोचक है। इस कहानी से यह रहस्योद्घाटन होता है कि कैसे ब्रिटेन के लोगों ने चालाकी करके इस पर्वत शिखर का नाम एवरेस्ट करके प्रचारित कर दिया। बात 1852 की है। भारतीय वैज्ञानिक सर्वेक्षणकर्ता राधानाथ सिकदर ने पहली बार लिखित तौर पर घोषणा की कि गौरी शंकर पर्वत चोटी से कुछ दूर एक बड़ी पर्वत चोटी है। यही विश्व की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है। उन्होंने यह भी बताया कि स्थानीय लोग इसे कोमोलंगमा कहते हैं। सिकदर बंगाल के थे। वह एक महान गणितज्ञ थे।
भारतीय सर्वेक्षण मुख्यालय देहरादून से सिकदर जुड़े थे। सिकदर ने वैदिक गणित एवं त्रिकोणमितीय गणनाओं के सहारे यह निष्कर्ष निकाला था कि यह चोटी जिसका उन्होंने नाम दिया शिखर 15 से बड़ी विश्व में कोई चोटी नहीं है। सिकदर ने इस शिखर की समुद्र तल से ऊंचाई 29000 फीट बतायी। सिकदर की इस घोषणा को सात वर्षों तक अंग्रेज अफसर फाइलों में दबाये रखे रहे। कहा जाता रहा है कि इसकी घोषणा करने से पहले पुष्टि करनी जरूरी है। 1954 में एन्ड्रयू वाघ नामक एक सर्वे अधिकारी ने उसी विधि से गणना प्रारम्भ की जिस विधि से सिकदर ने किया था। दो साल तक वह बार-बार सर्वे करने गये। फिर मार्च 1956 में वाघ ने कहा हाँ पर्वत चोटी नम्बर 15 वास्तव में विश्व की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है। उन्होंने ऊंचाई बताई 29002 फीट। केवल दो फीट ज्यादा ऊंचाई बताने के पीछे उनका मकसद यह था कि लोग एक तो उनकी गणना को सिकदर से ज्यादा प्रमाणित मानें। दूसरे यदि वाघ 29000 फीट ही बताते तो लोग सिकदर की नकल करने की बात कहकर खिल्ली उड़ाते।
ब्रिटेन और पश्चिम जगत ने वाघ की तारीफ शुरू कर दी। सिकदर भुला दिये गये। वाघ ने इससे आगे एक छलांग और लगायी। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सामने प्रस्ताव कर दिया कि इस पर्वत चोटी जिसे लोग कोमोलंगमा कहते हैं और सिकदर ने चोटी नम्बर 15 कहा है का नये सिरे से नामकरण कर दिया जाय। वाघ ने अपनी ओर से सुझाव भी दिया कि सर्वे जनरल आफ इण्डिया के उनके पूर्ववर्ती निदेशक जार्ज एवरेस्ट के नाम इसका नाम एवरेस्ट रख दिया जाय। उस समय तक जार्ज एवरेस्ट जीवित थे। उन्होंने कहा कि निदेशक रहते हुए मैंने कभी शिखर 15 को जाना तक नहीं। मैं वहाँ सर्वे करने भी नहीं गया। यह प्रस्ताव वाघ ने 1857 में किया था। जार्ज एवरेस्ट ने स्वयं इसका विरोध किया। जार्ज एवरेस्ट ने एक सुझाव यह भी दिया कि भारत या नेपाल के किसी लोकप्रिय नाम को इसके लिए चुना जाय। कई साल मन्थन चलता रहा। पर अन्तत: यह बात बलवती हो गयी कि ब्रिटिश नाम ही होना चाहिए। भारतीय, नेपाली या तिब्बती नाम नहीं चाहिए। अन्तत: 1865 में रॉयल जियोग्राफिकल सोसाइटी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन ने इस तर्क के साथ एवरेस्ट नाम स्वीकार किया कि विश्व की सभ्य जनता के लिए यह सबसे सुगम नाम होगा। एक और बात कि जार्ज स्वयं अपना नाम इवरेस्ट लिखते थे। पर नाम पड़ा एवरेस्ट।
सर जार्ज एवरेस्ट ने जीवनकाल में इस नाम को हृदय से कभी स्वीकार नहीं किया। वह कहते रहे कि मेरा कोई योगदान इस काम में नहीं है। जो कुछ पहल की वह राधानाथ सिकदर ने की। फिर वाघ ने इसकी पुष्टि की। यह कहते हुए वह दुनिया से चले गये और आज दुनिया उस पर्वत को एवरेस्ट नाम से जानती है। एण्ड्रयू वाघ की कारस्तानी ब्रिटेन की राजशाही और वहाँ की सरकार को खूब पसन्द आयी थी। जिसने सिकदर का नाम ही फाइलों में दबा दिया। वाघ ने एवरेस्ट की जो ऊंचाई बतायी थी आज वास्तविक ऊंचाई उससे भी ज्यादा है।
नेपाल और चीन सरकार आठ हजार आठ सौ 48 मीटर (29029 फीट) माना। इसके बाद चीन सरकार ने फिर सर्वे कराया और ऊंचाई 8844.43 मीटर यानि 29017 फीट बताया। चीन के सर्वे अधिकारियों ने कहा- यह एवरेस्ट की चट्टानों की वास्तविक ऊंचाई है। इस पर 3.5 मीटर यानि 11 फीट बर्फ भी चढ़ी है। बर्फ मिलाकर ऊंचाई 29029 फीट बनती है। बर्फ की मोटाई घटती-बढ़ती रहती है। 1955 में भारतीय सर्वेक्षण दल ने एवरेस्ट की ऊंचाई 29029 फीट बतायी थी। जो चीन के ताजा सर्वेक्षण से मेल खाती है। चीन का निष्कर्ष 1975 का है। अमेरिका ने 1999 में सर्वे कराया और कहा कि एवरेस्ट 29035 फीट ऊंची है। 2005 में भी सर्वे हुआ और ऊंचाई 29035 बतायी गयी। पर अमेरिका के दोनों सर्वे संदिग्ध बने हैं। विश्व के गणितज्ञ 1955 के भारत के सर्वे को सबसे प्रमाणिक मानकर 29029 फीट मान रहे हैं। जिसकी चीन ने भी पुष्टि की है। विश्व में हवाई की एक चोटी मौना कीया की ऊंचाई 13796 फीट है।
अलास्का में किनले पहाड़ी 20320 फीट ऊंची है। एक चर्चा ऊंचाई नापने के आधार को लेकर चलती आ रही है। प्राय: यह निर्विवाद है कि एवरेस्ट ही सबसे ऊंची है। 1885 में क्लिंटन थामस ने एक किताब लिखी एबब द स्नो लाइन। इसमें कहा गया कि एवरेस्ट पर चढ़ा जा सकता है। इसके बाद एवरेस्ट पर चढ़ने के प्रयास शुरू हुए। 1921 में पहला प्रयास जार्ज मलारी ने किया। परन्तु विफल रहे। ब्रिटेन के जार्ज फ्लिंच ने 1922 में प्रयास किया, वह भी असफल रहे। फ्लिंच 27300 फीट तक पहुँचे थे। मलारी और फ्लिंच ने मिलकर भी प्रयास किया तो भी असफल रहे। इसमें आठ लोग मर गये। इसके बाद इरविन के साथ मलारी 28077 फीट तक चढ़ गये। जहाँ इतनी प्रतिकूलता हुई कि वापस लौटना पड़ा। आठ जून 1924 को मलारी इरविन को फिर असफलता मिली। इसमें मलारी की जान चली गयी। 1953 में सर एडमण्ड हिलरी और तेनजिंग नोग्रे ने सफलता अर्जित की। ये दोनों 29 मई 1953 को दिन के 11 बजकर 30 मिनट पर एवरेस्ट के शिखर पर पहुँचने में सफल हो गये थे। इसके बाद एवरेस्ट पर चढ़ाई करने का सिलसिला चलता आ रहा है।
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एवरेस्ट की चोटी पर भीषण सर्द हवाएं चलती रहती हैं। पूरे क्षेत्र में बर्फीली हवाओं का जोर है। जगह-जगह ग्लेशियर और उन्नत शिखर हैं। बर्फ की परतें कहाँ कितनी मोटी हैं यह अनुमान लगाना कठिन होता है। बर्फीले तूफानों से बचना बड़ा कठिन होता है। एवरेस्ट के निकट गौरीशंकर चोटी है। जिसकी बड़ी धार्मिक मान्यता है। जबकि K-2 और कंचनजंगा एवरेस्ट के बाद की ऊंची पर्वत चोटियां हैं। गौरी शंकर K-2 और कंचनजंगा से छोटी है। एवरेस्ट, गौरी शंकर, कंचनजंगा और K-2 पर्वत शिखरों को हिमालय के मस्तक की संज्ञा दी जाती है। हिमालय को देवभूमि नाम मिला है। इस नाम के पीछे सनातन संस्कृति के ऋषियों, मुनियों और साधकों की तपस्या की परम्परा है। हिमालय से जुड़े तिब्बत क्षेत्र में कैलाश पर्वत पृथ्वी का ऐसा केन्द्र है, जिसे अजन्मा शिव का पर्वताकार स्वरूप माना जाता है। यह सम्पूर्ण क्षेत्र अष्टापद पर्वत शिखरों से घिरा हुआ है। इन पर्वतों को सूक्ष्म आत्माओं का केन्द्र माना जाता है।
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