आचार्य विष्णु हरि सरस्वती
केन्द्रीय सत्ता परेशान है, हताश है, निराश है, उसे रास्ता मिल नहीं रहा है, चुनावी कार्य योजना में दम नहीं मालूम हो रहा है। इसलिए लिस्ट बार बार फट रही है, कार्ययोजना की कागजें बार-बार फाड़ी जा रही है। रफू या तूरपायी चढ़ाने के बाद भी रास्तों व कार्ययोजनाओं में छेद ही छेद दिख रहे हैं। इसी कारण केन्द्रीय मंत्रिमंडल का पुनर्गठन रुका है और पार्टी की केन्द्रीय कमिटी में फेरबदल रुका हुआ है। जब तक चुनावी रास्ता चाकचौबंद नहीं होगा, कार्ययोजना चाकचौबंद नहीं बनती तब तक बैठकें जारी रहेंगी।
हिमाचल प्रदेश में हार के बाद जगत प्रसाद नड्डा से विश्वास उठ गया है, उनकी कार्यक्षमता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। इसी तरह कर्नाटक में हार के बाद बीएल संतोष पर विश्वास उठ गया है। अध्यक्ष और संगठन मंत्री मिलकर ही चुनाव की कार्ययोजना बनाते हैं। ये पिटे हुए और खिसके हुए मोहरे हैं, फूंके हुए कारतूस हैं। जेपी नड्डा और वीएल संतोष ने जो 2024 चुनाव के महाराथी तय कर रहे हैं, वे सबके सब बूझे हुए कारतूस हैं, दलबदलू हैं, या फिर रंग-रंगीला और छबीला हैं, विष कन्याएं हैं। ऐसी रंग-रंगीली लिस्ट देख कर नरेन्द्र मोदी का गुस्सा सातवें आसमान पर हैं।
जेपी नड्डा और बीएल संतोष द्वारा बनायी गयी सूची को जब नरेन्द्र मोदी की टीम लिस्ट जांचने बैठती है तो पता चलता है कि ये दलबदलू हैं, घिसे-पिटे हुए हैं और अति प्रोफेशनर हैं। मोदी की टीम लिस्ट और योजना को बार-बार खारिज कर रही हैं। कहने का अर्थ यह है कि कार्यकर्ता मिल नहीं रहे हैं। दस साल के शासन काल में जिन लोगों को भी जिम्मेदारियां दी गयी, सत्ता दी गयी वे सभी लूटने और खाने में लग गये, अपने परिवार, अपनी जाति की भलाई करने में लग गये। इनके लिए हिन्दुत्व गई भांड में। हर जगह कांग्रेसी वर्चस्व कायम रहा। मीडिया से लेकर एनजीओ ही नहीं बल्कि सरकार के हर क्षेत्र में कांग्रेसियों और कम्युनिस्टों का कब्जा बना रहा। कार्यकर्ता घर बैठ गये। कार्यकर्ताओं का सिद्धांत ही बदल दिया गया।
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मोदी चाहें जितना भी लिस्ट बदलवा लें, जितनी भी कार्ययोजनाएं तैयार करा लें, लेकिन उन्हें अपने मन की टीम और योजना कहां से मिलेगी? नड्डा और बीएल संतोष आदि लड़ने वाले और हवा बनाने वाले बलिदानी जत्था खोज कर कहां से लाएंगे? कार्यकर्ता बलिदानी क्यों बनेंगे जब जगत प्रसाद नड्डा, बीएल संतोष सहित अन्य सभी रंग-रंगीली हैं। मोदी की 2024 की चुनावी टीम रंग-रगीली ही होगी, फूंके हुए कारतूसों, पिटे हुए और खिसके हुए तमाशबाज ही मोदी के चुनावी सेनानी होंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
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