Atiq Ahmed: हर गुनाहगारों का हिसाब होता है। रसूख और रुतबे की वजह से समय भले लगे, लेकिन अपराधी का लोकतंत्र में कानून के दायरे में होता रहा है। उत्तर प्रदेश के दुर्दांत अपराधियों में शामिल अतीक अहमद (Atiq Ahmed) के गुनाहों के हिसाब होने शुरू हो गए हैं। माफिया अतीक अहमद (Atiq Ahmed) उत्तर प्रदेश के अपराधियों में वह नाम है, जो राजनीतिक संरक्षण में अपराध का साम्राज्य खड़ा किया था। समय बदला और सरकार बदली नतीजा माफिया आज भीगी बिल्ली बन गया। प्रयागराज की एमपी-एमएलए कोर्ट (Prayagraj MP MLA Court) ने उमेश पाल अपहरण (Umesh Pal kidnapping case) मामले में अतीक अहमद समेत उसके दो साथियों दिनेश पासी और खान सौलत हनीफ को उम्र कैद की सजा सुनाई है। हालांकि इस मामले में अतीक अहमद का भाई अशरफ और अन्य सात आरोपी जरूर बरी हो गये।
अतीक अहमद (Atiq Ahmed) को सजा सुनाए जाने के बाद यह भी साफ हो गया कि भले ही सौ मुकदमों में उसके खौफ के चलते कोई गवाह सामने नहीं आया था, लेकिन एक मामला उस पर भारी पड़ा, जिसमें उसे उम्र कैद की सजा सुना दी गई। बता दें कि अतीक अहमद के काले कारनामों और जघन्य अपराधों की लम्बी लिस्ट है और उसकी क्रूरता को कई लोगों ने अपनी आंखों से देखी थी। एक दौर था जब अतीक अहमद का खौफ ऐसा था कि कोई उसके खिलाफ खड़ा होना तो दूर गवाही देने की हिम्मत नहीं कर पाता था। जिन लोगों ने हिम्मत उन्हें साम-दाम-दंड से ‘तोड़’ दिया गया। कितने ऐसे गवाह थे जो ऐन मौके पर मुकर गए। नतीजा सैकड़ों केस के बाद भी अतीक अहमद को आज तक किसी मामले में सजा नहीं हो पाई। 28 मार्च को पहली बार ऐसा हुआ जब अतीक अहमद को अपहरण के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
मामला वर्ष 2005 का है, जब बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के मामले में गवाही देने के लिए उमेश पाल नाम का सामने आता। उमेश पाल को सबक सिखाने के लिए अतीक अहमद और उसके गुर्गे उसका अपहरण कर लेते हैं। उसे गवाही देने से रोकने के लिए मरणासन कर देते हैं। लेकिन उमेश पाल बच जाता है, वहीं इतनी बड़ी घटना के बाद भी उत्तर प्रदेश में तत्कालीन मुलायम सिंह यादव की सरकार सोती रही। क्योंकि समाजवादी पार्टी का हाथ हाथ अतीक अहमद के साथ था।
सपा नेतृत्व अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे अपराधियों के जरिए मुस्लिम वोट हासिल करती रही। समाजवादी पार्टी के लिए ये अपराधी नहीं वोट बैंक के सौदागर थे। यही वजह रहा कि ऐसे अपराधियों को भी सत्ता का भरपूर लाभ मिला। आज जब अतीक अहमद और मुख्तार जैसे माफियाओं पर कार्रवाई हो रही है, तो सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अप्रत्यक्ष रूप से इनके साथ खड़े नजर आ रहे हैं। वैसे अपराधियों को सबसे ज्यादा संरक्षण देने का आरोप सपा पर हमेशा से लगते रहे हैं। राजनीति में सबसे ज्यादा अपराधिकरण किसी ने किया तो वह समाजवादी पार्टी ही है। उत्तर प्रदेश में सत्ता की हनक जताने वाली बसपा प्रमुख मायावती भी अपराधियों से खुद को मुक्त नहीं रख पाईं। वह कभी अतीक तो कभी मुख्तार का साथ लेती रही हैं। मायावती ने कुछ समय पहले ही अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन को पार्टी की सदस्यता दिलाई थी। बसपा ने शाइस्ता परवीन को नगर निकाय चुनाव में प्रयागराज से मेयर पद का चुनाव लड़ाने का भी फैसला लिया था।
ज्ञात हो कि 25 जनवरी, 2005 को सुलेमसराय में तत्कालीन विधायक राजू पाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। हत्या किए जाने से कुछ दिनों पहले राजू पाल ने विधानसभा चुनाव में अतीक अहमद के भाई को पराजित किया था, इससे अतीक अहमद इतना चिढ़ा की उसकी हत्या करा दी। राजू पाल हत्याकांड में उमेश पाल मुख्य गवाह था। उमेश पाल को गवाही देने से रोकने के लिए अतीक ने देवरिया जेल में रहते हुए उसका अपहरण करा लिया। जेल में अतीक अहमद ने उससे हलफनामा पर दस्तखत करा लिए। जिसमें लिखा था कि घटनास्थल पर वह मौजूद नहीं था और न ही उसने किसी को वहां देखा था। इसके अगले दिन यानी 1 मार्च को अतीक ने अदालत में उमेश पाल के हलफनामा को प्रस्तुत कर अदालत के सामने गवाही भी दिलवा दी थी। उस दौरान शासन प्रशासन में अतीक अतीक अहमद के इशारों पर चल रहा था।
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वहीं वर्ष 2007 में जब उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार बनी तो स्थिति बदलने लगी। मायावती के इशारे पर अतीक अहमद के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गई। 5 जुलाई, 2007 को उमेश पाल ने अतीक अहमद, अशरफ और उनके गुर्गों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दिया। उमेश पाल ने जमकर केस में पैरवी की। मुकदमे को लगभग मुकाम तक पहुंचा भी दिया था, लेकिन फैसला आने से करीब एक महीने पहले ही उमेश पाल की हत्या कर दी गई। इस तरह से मुलायम सिंह यादव राज में हुए उमेश पाल का अपहरण और उसके एक वर्ष बाद मायावती की सरकार में इस अपहरण कांड की एफआईआर दर्ज होने के 15 साल बाद योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में अतीक अहमद और उसके गुर्गों को सजा सुनाई गई। मजे की बात यह है कि अतीक अहमद को लेकर प्रदेश में जो भय का माहौल था वह खत्म हो गया है। प्रयागराज एमपी/एमएलए कोर्ट में वकीलों के साथ अन्य लोगों ने अतीक अहमद के खिलाफ न सिर्फ नारे लगाए, बल्कि उस पर हमला करने की कोशिश भी की।
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