Yogi Adityanath: दो दिन पहले एक सजा-संवरा धवल सा 42-45 का सुघड़ युवा लखनऊ के एक मॉल के बाहर मिल गया। उसे मैंने यूँ निहारा कि लखनऊवा सा नहीं दिख रहा। वह मुझसे डबल चैतन्य निकला। चट से पास आ गया। तो मेरे भीतर का ‘आप’ सहम गया। कहीं मेरा निहारना इसे अखर तो नहीं गया। मेरे निकट आते ही उसने तपाक से पूछा- आप लखनऊ में कब से रह रहे हो। उत्तर की प्रतीक्षा उसे नहीं थी। बस कुछ कहने की जल्दी में था। कहने लगा योगी जी जिस तरह क्रिमिनल्स को टैकिल करते हैं उसे आप लोग कैसे देखते हैं। आपको नहीं लगता कि त्वरित न्याय के नाम पर यह प्रायोजित अन्याय किया जा रहा है।
वह बोलता जा रहा था- बिना कोर्ट कचहरी के किसी का मकान गिरा देना। क्या यह ठीक है। अपने प्रश्न वह हवा में उछाले जा रहा था। फिर स्वयं बोल पड़ा मुख्यमन्त्री योगी की लोकप्रियता का ग्राफ तो बहुत तेजी से नीचे आ रहा है। हम लोग इसी बात को लेकर सर्वे करने निकले हैं। आप कहाँ से आये हैं। कौन सर्वे कर रहा है। इस तरह के और कई प्रश्न मैं पूछता पर वह तो उछलता हुआ उस ओर भागा चला गया जहाँ उसकी टोली के अन्य लोग खड़े थे। इतना स्पष्ट है कि कोई नया विमर्श उत्तर प्रदेश की हवा में घोलने की प्रक्रिया चल रही है। जहाँ उसने मुझे घेरा था उस स्थान से यही कोई सौ मीटर दूर उसकी टीम थी। तेज चलते हुए मैं उस ओर गया। गठीले सुसज्जित युवक-युवतियों को देखकर लगा कि कोई बड़ी एजेंसी इनके पीछे है। जिसको योगी आदित्यनाथ की छवि धूमिल करने का ठीका दिया गया होगा।
उसकी टीम की दो लड़कियों और एक लड़के के हाथों में कैमरे थे। शहीद पथ के किनारे एक बड़े मॉल से आते-जाते लोगों के मुँह की ओर बार -बार कैमरे घुमा कर ऐसे प्रश्न उछाले जा रहे थे। पूछने वाला अपनी ओर से कहता कि बिना कोर्ट कचहरी किसी को सजा कैसे दी जा सकती है। मुझे घेरने वाला वहाँ मेरी उपस्थिति से कुछ चकराया। फिर मेरी ओर बढ़ा चला आया। मुझसे कहलाना चाहा कि अयोध्या के दुष्कर्म काण्ड के कथित आरोपी के साथ जो हुआ वह ठीक नहीं है। इस तरह तो अपराध सिद्ध हुए बिना लोग बर्बाद कर दिये जाते हैं।
उसी दिन शाम होने तक कई रील देखने को मिलती रहीं कि योगी आदित्यनाथ के तेवरों के चलते उनकी सरकार की लोकप्रियता निरन्तर गिरती जा रही है। इस बीच लखनऊ में योगी आदित्यनाथ का विरोध करने वाले कई पोस्टर प्रमुख स्थानों पर देखने को मिले। एक पोस्टर में तो एक विपक्षी पार्टी की ओर से योगी आदित्यनाथ को चुनौती पूर्ण भाषा में आगाह किया गया। ऐसे कई पोस्टरों को पुलिस की ओर से उखाड़ कर फेंका भी गया। अनेक सजग लोगों ने इन पोस्टरों के सम्बन्ध में पुलिस को अवगत कराया। पोस्टर इतने आपत्तिजनक और भड़काऊ थे कि उनके विरुद्ध विधिक कार्रवाई करने का आग्रह भी प्रशासनिक अधिकारियों से किया।
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उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था के समक्ष चुनौतियां खड़ी करने के प्रयास शुरू किये गये हैं। ऐसा करने के पीछे किसी संगठन या एजेंसी का हाथ होने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता। मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ के दूसरे कार्यकाल को प्रभावी नहीं होने देने के उद्देश्य से किसी गहरे षडंयत्र की गन्ध आने लगी है। सरकारी एजेन्सियों को उत्तर प्रदेश में उत्पाती तत्वों की उपस्थिति की भनक मिल चुकी है। ऐसे समाचार पिछले कुछ समय से मिल रहे थे कि लखनऊ सहित प्रदेश के कई जिलों में उग्रवादी गतिविधियों से जुड़े लोगों की आवा-जाही हो रही है। इस सन्दर्भ में पुलिस ने ऐसे कुछ लोगों की राज्य के कुछ स्थानों से धर-पकड़ की है।
प्रदेश में उत्पाती घटनाओं में वृद्धि करने के साथ ही संचार तन्त्रों के माध्यम से राज्य के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ की छवि धूमिल करने के प्रयासों का परस्पर गहरा सम्बन्ध होने की आशंका निराधार नहीं लगती। सभी जानते हैं कि प्रचार माध्यमों का दुरुपयोग होना अब सामान्य बात हो गयी है। क्योंकि समाचार पत्रों और अधिकृत टीवी चैनलों के अतिरिक्त सोशल मीडिया के अनेक समूह संगठित अपराधियों और षडयंत्रकारियों की मंशा को भांपे बिना उनकी कठपुतली बन जाते हैं। धन के आधार पर आधारहीन बातों को उछालने के लिए अनैतिक संजाल अब नयी बात नहीं रह गयी।
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