आचार्य विष्णु हरि
हिन्दू आस्था को प्रतिबंधित करने और दमन करने की हेमंत सरकार की नीति न केवल बेपर्दा हो गयी है, बल्कि इस पर न्यायिक प्रश्न भी खड़ा हुआ है। झारखंड हाईकोर्ट ने झारखंड की हेमंत सरकार को न केवल बेनकाब किया है, बल्कि गंभीर आलोचना भी की है। हिन्दू आस्था को प्रतिबंधित करने और दमन करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने सीधे तौर पर कहा है कि हेमंत सरकार हिन्दू आस्था के साथ न तो खिलवाड़ कर सकती है और न ही प्रतिबंधित कर सकती है।
धार्मिक आस्था से संबंधित कार्यक्रम को करना एक मौलिक अधिकार है, अगर इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है, तो फिर संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने जैसा अपराध है। हेमंत सरकार को हाईकोर्ट ने हिन्दू आस्था के कार्यक्रम को रोकने के खिलाफ जवाब भी मांगा है। उचित और त्वरित जवाब नहीं मिलने पर जुर्माना का दंश झेलने को भी कहा है। झारखंड हाईकोर्ट का यह मतंव्य सीधे तौर पर साबित करता है कि हेमंत सरकार किसी न किसी प्रकार से हिन्दू आस्था के प्रति सिर्फ निष्ठुर ही नहीं बल्कि विद्वेश भी रखती है, दुश्मनी भी रखती है।
सच तो यह है कि देश में हिन्दुत्व और इससे जुड़ी हुई आस्था के खिलाफ बोलना, खिल्ली उड़ाना और प्रतिबंध लगाने की हवा बहुत तेज चलती है, सरकारें भी इसमें आगे रहती है। हिन्दुत्व के उभार और राजनीतिक जागरूकता के बाद भी सरकारों की यह आत्मघाती रणनीति और राजनीति चलती रहती है। अभी-अभी हिन्दुत्व की आग में छत्तीसगढ़ और राजस्थान की कांग्रेसी सरकारें राख हो गयी, फिर हेमंत सरकार अपने पैरों के नीचे की जमीन खोदने के लिए तूली हुई है।
हिन्दुत्व विरोधी ऐसी कौन सी करतूत और कौन से कारनामे रहें हैं हेमंत सरकार के, जिसके खिलाफ झारखंड हाईकोर्ट को आगे आकर मौलिक अधिकारों व संविधान का पाठ पढ़ाना पड़ा, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि आर्थिक जुर्माने की भी धमकियां देनी पड़ी है। वास्तव में हिन्दू आस्था को दमन करने का प्रश्न झारखंड राज्य के पलामू जिले से जुड़ा हुआ है, जहां पर सिर्फ एक नहीं बल्कि दो-दो हिन्दू धर्म की आस्था से जुड़े हुए कार्यक्रम पर हेमंत सरकार की टेढ़ी नजर रही है, प्रतिबंध वाली रणनीति रही है, हिन्दू आस्था को दमन करने जैसी चाल रही है। वास्तव में पलामू जिला हिन्दुत्व आस्था के प्रति सजग और सक्रिय स्थल रहा है जहां पर बड़े-बड़े धार्मिक आयोजन और प्रवचन होते रहे हैं। अभी-अभी बागेश्वर धाम सरकार के पीठाधीश्वर धीरेन्द्र शास्त्री का हनुमंत प्रवचन कार्यक्रम तय हुआ था। हनुमंत प्रवचन कार्यक्रम से जुड़ी हुई तैयारियां पूरी कर ली गयी थी। निजी भूमि पर प्रवचन कार्यक्रम होना था। आयोजक मंडल ने सभी वैधानिक और जरूरी तैयारियां पूरी कर ली थी, प्रशासन को कार्यकम से जुड़ी हुई सभी तैयारियां और सरकारी जरूरतों को पूरा करने का प्रारूप सामने रख दिया था। लेकिन प्रशासन ने धीरेन्द्र शास्त्री का प्रवचन कराने की अनुमति प्रदान नहीं किया। अनुमति नहीं देने का कारण भी नहीं बताया।
प्रशासन और अधिकारी ऐसे गंभीर प्रश्नों पर खुद के हाथ जलाना पंसद नहीं करते हैं। ये ऐसे प्रश्नों पर प्रतिबंध का हथियार तभी उठाते हैं जब सरकार की ऐसी मंशा होती है और ऐसा आदेश होता है। प्रशासन और अधिकारी तो सरकार के गुलाम होते हैं, यह सब कौन नहीं जानता होगा? इसलिए आस्था को दमित करने का आरोप सिर्फ स्थानीय प्रशासन और स्थानीय अधिकारियों पर नहीं डाला जा सकता है। आस्था को प्रतिबंधित करने की जानकारी हेमंत सरकार को कैसे नहीं होगी? इसी पलामू प्रमंडलीय क्षेत्र से हेमंत सोरेन के तथाकथित आर्थिक पार्टनर और पंसदीदा बिहारी दोस्त मिथलेश ठाकुर विधायक और मंत्री हैं। मिथलेश ठाकुर ने सरकार को ऐसी जानकारी कैसे नहीं दी होगी? सबसे बड़ी बात यह है कि झारखंड हाईकोर्ट के फटकार के बाद भी दोषी अधिकारियों के खिलाफ हेमंत सरकार की कार्रवाई शुन्य क्यों रही है? यह तथ्य बताता है कि आस्था दमन की करतूत अधिकारियों की नहीं बल्कि हेमंत सरकार की ही रही है।
सिर्फ धीरेन्द्र शास्त्री के हनुमंत कथा पर प्रतिबंध की बात नहीं है, बल्कि धर्माचार्य देवकीनंदन ठाकुर कार्यक्रम पर भी टेढ़ी नजर फेरी गयी थी, उनके कार्यक्रमों पर जान बुझकर कैंची चलायी गयी थी। आपराधिक खेल खेले गये थे। इस संबंध में झारखंड आंदोलनकारी और हेमंत सोरेन की पार्टी के ही नेता रवि शर्मा कहते हैं कि धीरेन्द्र शास्त्री और देवकीनंदन ठाकुर के कार्यक्रमों में कई प्रकार की बाधाएं खड़ी की गयी और ऐसा प्रतीत हुआ कि हेमंत सरकार हिन्दू आस्था को कुचलना चाहती है। डालटनगंज शहर में देवकीनंदन ठाकुर की विशाल और भव्य कथा हुई थी। कथा में प्रतिदिन लाखों की भीड़ जुट रही थी, पूरा शहर धर्म के रंग में रंगा हुआ था। सिर्फ झारखंड के ही श्रद्धालुओं की भीड़ नहीं जुटी थी, बल्कि बिहार, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के श्रद्धालुओं की भी भीड़ जुट रही थी।
कथा के अंतिम दिन पथ संचलन का कार्यक्रम था, जिसे यह कह कर प्रशासन ने नहीं होने दिया कि इससे कानून व्यवस्था बिगड़ जायेगी। दंगा हो सकता है। राजनीतिक कार्यक्रम और सामाजिक कार्यक्रम सहित आस्था से जुड़े कार्यक्रमों में सुरक्षा की जिम्मेदारी सुलभ कराना सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी होती है। सरकार और प्रशासन की यह जिम्मेदारी दिखी नहीं। देवकीनंदन ठाकुर की कथा के दौरान सैकड़ों महिलाओं के सोने की चैन और अन्य गहने शरीर से निकाल लिये गये। एक अनुमान के मुताबिक तीन सौ से अधिक महिलाओं के गहने लूटे गये, करीब तीन से पांच करोड़ रुपये के गहनें लूटे गये। पर एक भी चोर और उठायीगिर नहीं पकड़े गये।
झारखंड आंदोलन कारी रवि शर्मा कहते हैं कि जब पुलिस और प्रशासन मुकदर्शक बन गये, तब हमने महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी उठायी। करोड़ों के गहने लूट लिये गये पर एफआईआर दर्ज क्यों नहीं हुए? अगर यह बात झूठ थी, तब प्रशासन को खंडन करने के लिए आगे आना चाहिए था। एक-दो जगह नहीं बल्कि झारखंड के हर जिले में हेमंत की सरकार में ऐसी-ऐसी घटनाएं हुई हैं। ऐसी-ऐसी करतूतें हुई, जिसमें हिन्दू के प्रतीक चिन्हों का संहार हुआ है। पांकी थाने में मलेच्छों ने रामनवमी के समय झंडे जलाये, दंगा किये।
हजारीबाग और लोहरदगा में मलेच्छों की बर्बर भीड़ ने सरेआम हिन्दुओं के खून किये। हजारीबाग में हिन्दू बालक और लोहरदगा में हिन्दू युवक की बर्बर भीड़ ने हत्या कर दी। संथाल परगना में हिन्दू आस्था के प्रतीकों और कार्यक्रमों पर हिंसा हुई है। हिन्दू आस्था से जुड़े पथ संचलन में बाधा डाली गयी, प्रतिबंध लगाये गये। कहने की जरूरत नहीं है कि हेमंत सरकार मुस्लिम और ईसाइयों की समर्थक सरकार है। इसलिए धर्म परिवर्तन में जुड़े ईसाई पादरियों को संरक्षण मिलता है, रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों को बसाने में सक्रिय मुस्लिम संगठनों को संरक्षण और सहयोग मिलता है।
हेमंत सोरेन के लिए भाजपा के हारे-थके हुए नेता बरदान हैं। भाजपा पर दलबदलू, पादरी, दारू, मुर्गा और सुंदरी प्रवृति का कब्जा है। इसीलिए हेमंत सोरेन के खिलाफ आक्रोश सामने नहीं आ पा रहा है। हिन्दू आस्था पर प्रतिबंधों की रणनीति, रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठियों और धर्मातंरण के खेल में लगे पादरियों की करतूत के खिलाफ जोरदार आंदोलन चलता, तो फिर हेमंत सरकार की ढंग से पोल खुलता और उन्हें हिन्दुत्व की आग में राख होने का डर कायम होता।
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फिर भी हेमंत सरकार अपनी राजनीतिक मौत का आमंत्रण दे तो रही ही हैं। छत्तीसगढ़ में और राजस्थान में इसी तरह की कांग्रेसी सरकार खेल खेल रही थी और हिन्दू आस्था दमन कर रही थी। परिणाम सबकों मालूम है। हेंमंत सोरेन भी बघेल और गहलौत की तरह हिन्दुत्व की आग में राख बन सकते हैं। इसलिए हिन्दू आस्था के प्रतीकों का सम्मान करना भी हेमंत सोरेन की राजनीति भविष्य के लिए जरूरी है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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