प्रकाश सिंह
UP Election 2022: जिंदगी में लंबा सफर करने के लिए टिकट खरीदना पड़ता है, चाहे वह सफर बस से करनी हो या फिर रेल व हवाई जहाज से। बिना टिकट आप सफर नहीं कर सकते और करेंगे भी तो पकड़े जाने पर सजा भी हो सकती है। कुछ इसी तरह राजनीति में भी है। यहां अधिकतर नेता टिकट पार्टी से टिकट हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। वह खुद को पार्टी का वफादार, कद्दावर, जमीन से जुड़ा हुआ आदि इत्यादि उदाहरण देकर जनता के बीच जाते हैं। लेकिन जब उनका टिकट कटता है, तो उनकी ये सारी बातें धरी की धरी रह जाती हैं, और अपने वजूद की परवाह किए बिना टिकटार्थी से शरणार्थी बनने में कोई गुरेज नहीं करते। ऐसा ही नजारा इन दिनों यूपी विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) के दौरान लगभग हर राजनीतिक पार्टियों में देखा जा रहा है। इस समय पार्टियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती उनके अपने ही नेता बने हुए हैं। जिन नेताओं को टिकट नहीं मिला, वो अपनी ही पार्टी के प्रत्याशी को हराने में जुट गए हैं।
ऐसे में बड़ा सवाल है कि जो कल तक खुद को पार्टी का समर्पित नेता बता रहे थे, टिकट कटते ही उनका समर्पण कहां चला गया। इस बात को लेकर जनता में भी काफी आक्रोश देखा जा रहा है। लोगों का कहना है कि ऐसे स्वाथी नेता पार्टी के साथ साथ जनता को भी गुमराह करने की कोशिश करते हैं। लोगों का मानना है कि कोई भी पार्टी क्षेत्र से एक ही नेता को टिकट दे सकती है। ऐसे में उसे जिसपर सबसे ज्यादा भरोसा होता है, टिकट भी उसी को देती है। पार्टी के समर्पित नेताओं की जिम्मेदारी होती है कि वह पार्टी के फैसले का स्वागत करते हुए प्रत्याशी को जिताने में मदद करे। लेकिन भगोड़े और दलबदलू नेता इस मर्म से अनभिज्ञ होकर पार्टी प्रत्याशी को हाराने में जुटकर यह बताने का प्रयाश कर रहे हैं कि वह पार्टी के लिए कितना वफादार थे।
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फिलहाल पार्टी में रहते वफादार बने रहते। पार्टी के प्रत्याशी के विरोध में दूसरे दलों के नेता की मदद करके ये लोग जनता और पार्टी दोनों का विश्वास खो रहे हैं। इससे यह साबित होता है कि ये नेता पार्टी में केवल टिकट पाने के लिए जुड़े थे। पार्टी की नीतियां, नैतिकता से इनका कोई सरोकार नहीं था। शायद यही वजह है कि टिकट कटते ही ऐसे नेता टिकटार्थी से शरणार्थी बन गए हैं। मौका परस्त और स्वार्थ परस्त राजनीति का यह दौर काफी खतरनाक हो रहा है। यह भविष्य में राजनीति को और गर्त में ले जाएगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता ऐसे नेताओं को कितना भाव देती है।
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