राघवेंद्र प्रसाद मिश्र
लखनऊ: राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी स्थाई नहीं होती। यहां दोस्ती और दुश्मनी दोनों परिस्थिति पर निर्भर करती है। बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए देश की अधिकतर पार्टियां एक साथ खड़ी नजर आईं, ये वो दल थे, जो कभी एक-दूसरे की ध्रुव विरोधी हुआ करते थे। हालांकि इन पार्टियों का गठबंधन स्थायी नहीं रहा और चुनाव बाद फिर एक-दूसरे के विरोधी बन बैठे। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के सबसे कट्टर एक-दूसरे के ध्रुव विरोधी रही सपा-बसपा ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा था, लेकिन नतीजे जो आए उसका किसी को अंदाजा नहीं था। चुनाव बाद सपा-बसपा के रास्ते अलग हो गए। वहीं समाजवादी पार्टी वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव का बदला लेने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। वह ऐसे दलों के साथ गठबंधन कर रही है, जिनका वजूद केवल जाति पर टिकी है। वहीं यूपी विधानसभा चुनाव से पहले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल सिंह यादव (Akhilesh and Shivpal meeting) से गठबंधन करने को तैयार हो गए हैं।
अखिलेश यादव गुरुवार को अचानक चाचा शिवपाल सिंह यादव (Akhilesh and Shivpal meeting) से मिलने पहुंच गए। करीब 45 मिनट की मुलाकात के बाद उन्होंने फोटो के साथ ट्वीट करते हुए लिखा कि प्रसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जी से मुलाक़ात हुई और गठबंधन की बात तय हुई। क्षेत्रीय दलों को साथ लेने की नीति सपा को निरंतर मजबूत कर रही है और सपा और अन्य सहयोगियों को ऐतिहासिक जीत की ओर ले जा रही है।
#बाइसमेंबाइसिकल
प्रसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जी से मुलाक़ात हुई और गठबंधन की बात तय हुई।
क्षेत्रीय दलों को साथ लेने की नीति सपा को निरंतर मजबूत कर रही है और सपा और अन्य सहयोगियों को ऐतिहासिक जीत की ओर ले जा रही है। #बाइस_में_बाइसिकल pic.twitter.com/x3k5wWX09A
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) December 16, 2021
अखिलेश यादव के इस ट्वीट के बाद यह बात तो साफ हो गई कि आगामी विधानसभा चुनाव में सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली पार्टियों में एक नाम प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) का भी जुड़ गया है। गौरतलब है कि अखिलेश यादव चाचा शिपाल सिंह यादव (Akhilesh and Shivpal meeting) के साथ करीब चार साल बाद नजर आए है। क्यों आए हैं यह भी किसी से छिपा नहीं है। फिलहाल प्रसपा के सपा में विलय पर संशय अभी बरकरार है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि चाचा-भतीजे में रार खत्म हो गया है, मगर दरार अभी भी कायम है। क्योंकि गठबंधन और विलय में बड़ा फर्क होता है।
आज समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव जी ने आवास पर शिष्टाचार भेंट की। इस दौरान उनके साथ आगामी विधान सभा चुनाव 2022 में साथ मिलकर चुनाव लड़ने की रणनीति पर विस्तार से चर्चा हुई। pic.twitter.com/LH9CmvSXEd
— Shivpal Singh Yadav (@shivpalsinghyad) December 16, 2021
हालांकि दोनों नेताओं की मुलाकात और साथ मिलकर यूपी विधानसभा चुनाव लड़ने के एलान के बाद सपाई में काफी उत्साह है। वह इसे बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं। ऐसे में इस सवाल का जवाब तलाशना लाजिमी हो जाता है कि जिस तरह सपा छोटे-छोटे दलों से गठबंधन कर रही है, एसे में सीटों के बंटवारे के बाद उसके पास कितनी सीटें बचेंगी। यूपी विधान सभा चुनाव समाजवादी पार्टी कितने सीटों पर लड़ेगी।
बता दें कि सपा संरक्षक मुलायम सिंह के छोटे भाई अखिलेश सरकार में वर्ष 2012 से 2017 तक लोक निर्माण विभाग और सिंचाई मंत्री रहे हैं। वर्ष 2017 में अखिलेश यादव ने जब सपा की बागडोर संभाली तो शिवपाल ने सपा से न सिर्फ नाता तोड़ लिया, बल्कि वर्ष 2018 में उन्होंने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी नाम से अपनी अलग पार्टी भी बना ली। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में 224 सीटें जीतकर सरकार बनाने वाली सपा वर्ष 2017 में 47 सीटों पर सिमट गई थी। सपा की इतनी कम सीटें आने के पीछे परिवार का झगड़ा भी रहा।
जानें कब क्या क्या हुआ
मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर प्रदेश में सपा की सरकार बनवाने में शिवपाल का अहम रोल रहा है। शिवपाल हमेशा खुद को पार्टी में मुलायम के बाद का नेता मानते रहे। लेकिन 2012 में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवपाल धीरे-धीरे पार्टी में हाशिए पर होते चले गए और वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले ही उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया। जानते हैं घटनाक्रम के बारे में विस्तार से…
– 2 जून, 2016 में शिवपाल की अनुमति के बाद कौमी एकता दल के सपा में विलय कराने में अहम रोल निभाने वाले कैबिनेट मंत्री बाबू राम को अखिलेश यादव ने बर्खास्त कर दिया।
– अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा ने 25 जून को कौमी एकता दल के विलय को रद्द कर दिया। सार्वजनिक रूप से अपने फैसले को ठुकराए जाने के बाद शिवपाल यादव नाराज हो गए।
– 14 अगस्त को उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर जमीन हथियाने में सपा नेताओं की संलिप्तता की शिकायत मिलने के बाद शिवपाल ने पार्टी से इस्तीफा देने की धमकी दी थी।
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– 15 अगस्त को मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को आगाह किया था कि यदि शिवपाल इस्तीफा दे देंगे तो पार्टी टूट जाएगी।
– 17 अगस्त को कैबिनेट की बैठक में शिवपाल यादव शामिल नहीं हुए।
– 19 अगस्त को शिवपाल और अखिलेश मिलकर समाजवादी पार्टी एकता को प्रदर्शन करते हैं। इस दौरान शिवपाल यादव परिवार में किसी प्रकार के मतभेद को खरिज करते हुए अखिलेश की जमकर तारीफ करते हैं।
– 12 सितंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट की तरफ से उत्तर प्रदेश में अवैध खनन की सीबीआई जांच के अपने आदेश को बरकरार रखने के तीन दिन बाद अखिलेश यादव ने भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे खनन मंत्री गायत्री प्रजापति और पंचायती राज मंत्री राजकिशोर सिंह पर बड़ी कार्रवाई करते हुए बर्खास्त कर दिया।
– 13 सितंबर को अखिलेश यादव ने यूपी के मुख्य सचिव दीपक सिंघल को बर्खास्त कर दिया। दीपक सिंघल को शिवपाल यादव का काफी करीबी माना जाता था।
– 13 सितंबर को ही मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को सपा प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया और शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। इससे खफा अखिलेश यादव ने शिवपाल से सभी मंत्रालय छीन लिए।
– 14 सितंबर को मुलायम सिंह नाराज शिवपाल को दिल्ली बुलाते हैं और संकट का समाधान निकालने की कोशिश करते हैं।
– 15 सितंबर को शिवपाल ने यूपी कैबिनेट और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद यादव परिवार में तनाव चरम पर पहुंच गया और मुलायम सिंह दिल्ली से लखनऊ आ गए।
– 16 सितंबर को मुलायम सिंह ने शिवपाल के इस्तीफे को खारिज कर दिया।
– 20 सितंबर को शिवपाल ने अखिलेश के तीन समर्थकों को पार्टी से बाहर कर दिया।
– 22 सितंबर को सपा ने अखिलेश समर्थक उदयवीर सिंह को पार्टी से बर्खास्त कर दिया। बता दें कि उदयवीर ने मुलायम को पत्र लिखकर अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग की थी।
– 23 अक्टूबर को अखिलेश यादव ने शिवपाल और उनके तीन अन्य समर्थकों को पार्टी से बाहर कर दिया।
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