Pitru Paksha: पितृपक्ष का समय हमारे लिए अपने पूर्वजों को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने का एक पवित्र अवसर होता है। इन 16 दिनों में लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध जैसे rituals करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान हमारे पितर धरती पर आते हैं और हमारी श्रद्धा देखकर प्रसन्न होते हैं, हमें आशीर्वाद देते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन पितरों के भी अपने देवता हैं? जी हाँ, बिना उनके नाम लिए श्राद्ध का ritual पूरा नहीं माना जाता। आइए, आज जानते हैं पितरों के देवता के बारे में।
कौन हैं अर्यमा देव
पितरों के देवता का नाम है अर्यमा या अर्यमन। गरुड़ पुराण के अनुसार, वह ऋषि कश्यप और देवमाता अदिति के पुत्र हैं। अर्यमा को पितृलोक का राजा और न्यायाधीश माना जाता है। वही यह जानते हैं कि कौन सा पितृ किस कुल से संबंध रखता है। आकाश में दिखने वाली आकाशगंगा को उनके मार्ग का सूचक माना जाता है।

पितृपक्ष में क्यों है अर्यमा का महत्व
मान्यता है कि श्राद्ध के दौरान अर्यमा देव का नाम लेकर तर्पण करने से हमारा अर्पण सीधे हमारे पितरों तक पहुँचता है। वे पितरों को तृप्त करने वाले देवता हैं। उनकी कृपा से ही पितरों को तृप्ति मिलती है और वे हमें आशीर्वाद देते हैं।
कैसे करें अर्यमा का स्मरण
श्राद्ध करते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए- ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः।…ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय।
इसका अर्थ है: हे पितरों में श्रेष्ठ अर्यमा देव, आप इस तिल और जल से तृप्त हों। आपको स्वधा नमस्कार है। हे हमारे पूर्वजों, हमें मृत्यु के बंधन से मुक्त कर अमरता का मार्ग दिखाएं।
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क्या पुत्रियाँ भी कर सकती हैं श्राद्ध
एक बहुत ही महत्वपूर्ण और आधुनिक सवाल का जवाब है – हाँ! पितृ चाहे किसी भी योनि में हों, वे अपने पुत्र, पुत्री और पोते-पोतियों द्वारा किए गए श्राद्ध को स्वीकार करते हैं। यह कर्म पूरे कुल के कल्याण के लिए होता है।
पितृपक्ष सिर्फ एक ritual नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति प्यार, सम्मान और कृतज्ञता जताने का एक Beautiful तरीका है। अर्यमा देव की उपासना और पितरों का तर्पण करने से न सिर्फ उनकी आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि हमारे जीवन में भी सुख और समृद्धि का आगमन होता है। तो इस पितृपक्ष, पूरी श्रद्धा के साथ अपने पूर्वजों को याद करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
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