Diwali: आंधिया चाहे उठाओ

आंधिया चाहे उठाओ, बिजलियां चाहे गिराओ, जल गया है दीप तो, अंधियार ढलकर ही रहेगा। रोशनी पूंजी नहीं है, जो तिजोरी में समाए, वह खिलौना भी न, जिसका दाम हर…

Kavita: सच्चा समाजवाद

सच्चा समाजवाद एक अंधा, एक लंगड़ा, दोनों ने एक-दूसरे को पकड़ा। दोनों साथ-साथ चलने लगे, एक-दूसरे पर मरने लगे। बातों के बताशे फोड़ने लगे, राष्ट्रवाद का गला मरोड़ने लगे। उनमें…

Kavita: समरसता गीत

छोड़ विषमता की बातों को, हिंदू राष्ट्र अपनी पहचान; सामाजिक समरसता से ही, अपना भारत बने महान-2। कोटि हिंदु से बना है भारत, कोटि हिंदु अपनी पहचान; ध्यान रहे भारत…

Kavita: आ लौट चलें

एक दिन नाचते-नाचते पता लगा यह जो यहां आता है, कुछ सकुचाता, कुछ घबराता है, वह राजकुमार है, लुटेरे वंश की गद्दी का अकेला हकदार है। दिमाग खिल उठा, दिल…

Kavita: ज्यों निकल कर बादलों की गोद से

ज्यों निकल कर बादलों की गोद से थी अभी इक बूँद कुछ आगे बढ़ी, सोचने फिर-फिर यही जी में लगी आह क्यों घर छोड़ कर मैं यूँ कढ़ी। दैव मेरे…

Kavita: ओ गॉड!

गॉड ये कैसा खेल हो गया, पप्पू फिर से फेल हो गया। खूब सिखाया, खूब पढ़ाया, तोते-जैसा उसे रटाया। इधर भेजकर, उधर भेजकर, जगह-जगह नाटक करवाया। फिर भी क्यों बेमेल…

Kavita: चीजों को सुलझाना

चीजों को सुलझाना जिंदगी भर चलता रहेगा, आरंभ में दूध की बोतल खोजोगे खिलौनों की भीड़ में, फिर पंतग की उलझी हुई डोर सुलझाओगे जवानी में सुलझाते रहोगे रोजी रोटी…

Kavita: रग रग में पीड़ा बहती है

रग रग में पीड़ा बहती है, जो चिर जीवन तक रहती है। जगजीव, मनुष्य की देह सदा, क्षण क्षण पल प्रतिपल ढहती है।। कर्मों का फल तो मिला नहीं, इस…

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