Kavita: बाढ़त गर्मी छुटत पसीना

बाढ़त गर्मी छुटत पसीना, भीजत देह के कोना कोना! पारा चढ़त चुनावी गर्मी, भला दोस्त से दुश्मन होना। तीन जून तक बढ़ी है गर्मी, चार के भीजी खटिया बिछौना! वकरे…

Kavita: फिर भी खून बहाते हैं!

ना यादव ना विप्र की भूमि, फिर भी खून बहाते हैं! ईश्वर का वरदान मनुज तन, पर खुलकर ना जी पाते हैं। राजनीति की जातिवाद में, “सत्य” से “प्रेम” लड़ाते…

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