Poem: पप्पू ज्यादा बोल रहा है

बांहें अपनी खोल रहा है, जहर फिजां में घोल रहा है। माताजी उसको अब रोको, पप्पू ज्यादा बोल रहा है। अपनी ही धुन में रहता है, आंय-बांय कुछ भी बकता…

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