Poem: आ लौट चलें
आ लौट चलें एक दिन नाचते-नाचते पता लगा यह जो यहां आता है, कुछ सकुचाता, कुछ घबराता है, वह राजकुमार है, लुटेरे वंश की गद्दी का अकेला हकदार है। दिमाग…
आ लौट चलें एक दिन नाचते-नाचते पता लगा यह जो यहां आता है, कुछ सकुचाता, कुछ घबराता है, वह राजकुमार है, लुटेरे वंश की गद्दी का अकेला हकदार है। दिमाग…
क्या कहा भइया? हम नादान हैं, भोले हैं, दिमाग से पोले हैं। आज कागज फाड़ रहे हैं, कल कपड़े फाड़ेंगे। लेकिन भइया! सच तो यह है कि तुम नादान हो,…
निशाना लगाया अचूक, फिर भी साला गया चूक। आया कैसा भूचाल, जितने हम थे वाचाल, उतना है बुरा हाल। हम फेल हो गए, पटरी से उतरी रेल हो गए, टूटी…