Poem: जब रसोई में दाना न हो
जब रसोई में दाना न हो, छप्पन भोग बना दे। सोने को बिछौना न हो, पलकें बिछा दे। सिर पर छत न हो, आँचल ओढ़ा दे। रोने को कंधा न…
जब रसोई में दाना न हो, छप्पन भोग बना दे। सोने को बिछौना न हो, पलकें बिछा दे। सिर पर छत न हो, आँचल ओढ़ा दे। रोने को कंधा न…