पदम पति शर्मा
लगभग तेरह सौ साल पहले सन 815 में आचार्य शंकर (आदि शंकराचार्य) ने श्री काशी विश्वनाथ के आंगन में बुद्धि- ज्ञान की देवी माता सरस्वती की मूर्ति स्थापित की थी। कालांतर मे उस क्षेत्र का नामकरण सरस्वती फाटक हो गया था, जो पिछले दिनों निर्मित विश्वनाथ कॉरिडोर (धाम) में विलीन हो चुका है। लेकिन वहीं धाम का सरस्वती द्वार बन गया और उससे सटे उद्यान में माता सरस्वती विराजमान हो गईं जिनके भव्य मंदिर का निर्माण कुछ ही दिनों में पूर्ण हो जाएगा।
मां जिस पुराने स्थान पर विराज रही थीं उनके साथ संलग्न था इस नाचीज के पूर्वजों का ज्योतिष कार्यालय। जब काॅरिडोर के लिए भवनों का अधिग्रहण होने लगा तब हमारे मदन्नपूर्णा कुटुम्ब ने लाखों रुपयों की पेशकश ठुकरा कर इस आग्रह के साथ श्री काशी विश्वनाथ न्यास को दान कर दिया कि मां का भव्य मंदिर सरस्वती उद्यान में बने। सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तब यह भी भरोसा दिलाया था कि मंदिर ही नहीं बनेगा बल्कि आदि शंकराचार्य की मूर्ति भी उसमें स्थापित होगी।
माता की यह मूर्ति (विग्रह) किस कदर जागृत है, इसका ज्वलंत प्रमाण है उनका प्रगटीकरण। परिवार के बुजुर्गों ने जो बताया उसके मुताबिक लगभग 90 वर्ष पहले की बात है कि एक छात्र लगातार परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के बाद इतना हताश हुआ कि उसने माता सरस्वती को अपनी जीभ काट कर चढ़ा दी। बिना अन्न जल ग्रहण किये वह विद्यार्थी जब तीन दिन तक मां के समक्ष पड़ा रहा तब मंदिर के बगल में ही स्थित मकान में रहने वाली एक वृद्धा में मां सरस्वती आ गईं। वहां मौजूद श्रद्धालुओ की भीड़ को इंगित करते उन्होने कहा, “शंकर (पितामह भृगु सम्राट ज्योतिष सम्राट पं गौरी शंकर शास्त्री) को बुलाओ। एक शख्स दौड़ता हुआ पचास मीटर की दूरी पर स्थित आवास पर पहुंच कर जब उसने सारा किस्सा बताया तब दादा नंगे पांव चलते हुए आए और उस वृद्धा माता के चरणों में दंडवत हो गए। मां ने ओजस्वी वाणी में कहा, “शंकर इस विद्यार्थी को बताओ कि उसके भाग्य में और विद्या नहीं है। लेकिन उसे धन धान्य की कमी नहीं होगी। पितामह ने उस विद्यार्थी को उठाया और सरस्वती वंदना करने को कहा- आश्चर्य कि उसने सधे स्वर में माता की वंदना की। उसकी जीभ वापस आ चुकी थी।
हमारे चाचा दैनिक विश्वमित्र के पत्रकार- संपादक रमापति शर्मा (स्मृति शेष) बताते थे कि यह संपूर्ण प्रकरण उन दिनों प्रयागराज से प्रकाशित मित्र प्रकाशन की पत्रिका माया में छपा था। मैंने एक बार बचपन मे उन विद्यार्थी महाशय को देखा था घर में फल और मिठाई के साथ, जो समय बीतने के साथ बिहार के जमीदार हो चुके थे। पितामही ने मुझे उनके बारे में विस्तार से बताया था।
इनके अलौकिक प्रतापी तेज की ही महिमा है कि उनके मंदिर से चतुर्दिक तीन सौ मीटर के दायरे में एक से बढ कर एक हस्तियों ने देश विदेश में अपनी कीर्ति पताका फहरायी। चाहे वे महामहोपाध्याय उद्भट प्रकांड विद्वान शिक्षाविद रहे हों या चिकित्सक, ज्योतिषी, प्रशासनिक अधिकारी, उपन्यासकार, साहित्यकार, निबंधकार, संपादक, पत्रकार और राजनेता। मां ने यदि देश को महामहोपाध्याय दिये तो दिए कुलपति, प्रोफेसर और मूर्धन्य साहित्यकार आदि भी। ऐसा सदियों से हो रहा है। यहां मैं अपनी जानकारी के आधार पर उनका नामोल्लेख करना चाहूंगा। मैं जानता हूं कि काफी नाम इस सूची में छूटे होंगे लेकिन यह संख्या भी माता सरस्वती से संलग्न क्षेत्र में दीप्त आध्यात्मिक ज्योति सिद्ध करने लिए पर्याप्त है।
शुरुआत करते हैं शिक्षाविदों से
1 – महामहोपाध्याय: पं विद्याधर गौड़ और पं सीताराम शास्त्री ( डीन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)। उक्त दोनो महानुभावों के परिवार की महान विरासत रही है। सीताराम शास्त्री के पिता पं गुरू प्रसाद के समय से ही परिवार में बोलचाल की भाषा संस्कृत ही रही है। विद्याधर जी के पुत्रों ने वैदिक कर्मकांड, साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय अंशदान किया।
जहां तक वाइस चांसलरों का प्रश्न है तो मेरी जानकारी में दो नाम है। सर्वप्रथम युगल किशोर मिश्र (सुपौत्र प्रकांड विद्वान भगवत प्रसाद जी और सुपुत्र पं गोपाल मिश्र) आप राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के उप कुलपति रहें हैं। दूसरा नाम है पत्रकार, संपादक शिक्षाविद पं राम मोहन पाठक का जिन्होंने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा में इस सम्माननीय पद को सुशोभित किया।
माता की महिमा देखिए कि उसने आधुनिक पाणिनी कहे जाने वाले पं रामकुमार त्रिपाठी उर उनके शिष्य पं राम यत्न जैसे व्याकरणाचार्य को जन्म दिया। महामहोपाध्याय विद्याधर गौड़ के सुपुत्रों में दैवज्ञ वेदाचार्य पं वेणीराम और दौलत राम की कीर्ति पताका राष्ट्रीय स्तर पर फहरायी। यही स्तर पं. रामनाथ और उनके चिरंजीव पं श्रीनाथ जी का था। इन सभी की विरासत न जाने कितने कर्मकांडी संभाल रहे हैं।
हम शिक्षा विदों की बात करें तो उनकी एक लंबी कतार है। उनमें दर्शन शास्त्र के ज्ञाता प्रोफेसर उमेश दत्त शुक्ल, हिंदी के विद्वान प्रो. रामजी शर्मा, इतिहासकार प्रो राधेश्याम शर्मा, मां राजराजेश्वरी मठ के प्रमुख संत भारती के अनुज प्रो. पं. सुधांशु शेखर (संस्कृत), प्रो. वंशीधर त्रिपाठी, प्रो नंद किशोर पांडेय (हिन्दी) और प्रो बाल शास्त्री।
यदि हम चिकित्सकों की बात करें तो इनमें प्रमुख नाम है डा. त्रिलोकी नाथ दत्ता और उनके सुपुत्र डा. रजनीकांत दत्ता। डा. आत्माराम खत्री व उनके सुपुत्र डा. कामता प्रसाद सहगल उर्फ निक्कू बाबू। इनके भी चिरंजीव डा. अजीत सहगल की काशी के प्रमुख अस्थि रोग विशेषज्ञ के रूप में विशिष्ट पहचान है। डा. प्रह्लाद आनंद व उनके यशस्वी पुत्र डा. प्रकाश आनंद काशी के नामी फिजीशियन में शुमार हुआ करते थे। इसी तरह डाक्टर रजनीकांत दत्ता के तीन पुत्रों में ज्येष्ठ डा. अश्वनी दत्ता (पैथालाजिस्ट) की दूसरी लहर के दौरान कोरोना ने बलि ले ली। उनके अनुज अंजनी दत्ता (फिजिशियन) व डा. आशीष दत्ता (आर्थोपैडिक) के नाम उल्लेखनीय हैं। पं. लाल बिहारी शास्त्री प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य थे तो होम्योपैथिक डाक्टर के रूप में बद्रीनारायण बियाला की अलग पहचान थी।
ज्योतिष शास्त्र के जाने माने महारथियों की दष्टि से भी इस क्षेत्र की विशेष ख्याति रही है। सरस्वती द्वार के प्रहरियों में पिता-पुत्र की जोड़ी पं गौरीशंकर शास्त्री व दैवज्ञ पं. काशीराम शास्त्री को बतौर भृगु सम्राट-ज्योतिष सम्राट कहा जाता रहा था। इनके अलावा पं. द्वारिका प्रसाद शास्त्री व उनके पिता चुन्नीलाल की ख्याति राष्ट्रीय स्तर पर थी। इस विरासत को पं वेदमूर्ती शास्त्री वर्तमान में भी पूरी शिद्दत से संभाल रहे हैं। स्वनामधन्य कन्हैयालाल मिश्र रहे हों या स्वर्णपदक विजेता पंत्र देवकी नंदन धरड़ अथवा मुरलीधर सुयाल और दाऊ जी महाराज व उनक पटशिष्य कृष्णाराम की भी गणना महान ज्योतिषियों में की जाती रही।
जहां तक साहित्यकारों का सवाल है तो इस कड़ी में अनेक जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं। ऐय्यारी उपन्यास के प्रवर्तक बाबू देवकी नंदन खत्री व उनके सुपुत्र स्वाधीनता सेनानी पार्षद बाबू दुर्गा प्रसाद खत्री “बच्चे बाबू” के उपन्यास चंद्रकांता संतति, भूतनाथ आदि आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं। महा कवि रूपनारायण त्रिपाठी, निबंधकार शांति प्रिय द्विवेदी, मूर्धन्य उपन्यासकार कहानीकार द्विजेन्द्र नाथ मिश्र निर्गुण, रुद्र काशिकेय आदि की गणना आज भी देश के चोटी के दिग्गज हिन्दी के समर्पित प्रचारकों में की जाती है।
बताने की जरूरत नहीं कि प्रशासनिक अधिकारियों में रिजर्व बैंक के गवर्नर लक्ष्मी कांत झा और वेणी शंकर झा अग्रणी नाम हैं। यदि हम राजनेताओं की चर्चा करें तो उनमें सर्वप्रथम नाम है देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जिनको सरस्वती फाटक और लाहौरी टोला वासी बहादुर भैया के नाम से जानते हैं। हालांकि बहादुर भैया का जन्म तो मां गंगा के उस पार राम नगर में हुआ था। मगर यहीं माता सरस्वती के चरण कमल में रह कर उनकी शिक्षा दीक्षा हुई थी। इसकी भी एक रोचक कहानी हैं।
दरअसल लाल बहादुर शास्त्री को रामनगर से काफी दूर वाराणसी में मैदान स्थित हरिश्चंद्र इंटर कालेज में पढ़ाई करने के लिए घंटों की पदयात्रा करनी पड़ती थी। इस मेधावी गरीब छात्र को प्रायः कालेज आने में देर हो जाया करती थी। यह देख कर प्राध्यापक व हिंदी शार्ट हैंड के जनक पं निष्कामेश्वर मिश्र एक दिन बहादुर भैया को सरस्वती फाटक स्थित अपने आवास पर लाकर पत्नी से बोले, यह तुम्हारा आज से छठा पुत्र है। बहादुर भैया पर माता सरस्वती की कैसी असीम अनुकम्पा हुई, यह बताने की जरूरत नहीं है। दशकों तक शास्त्री ने यहीं रह कर शिक्षा ग्रहण करने के साथ ही राजनीति का ककहरा भी सीखा था।
इसे भी पढ़ें: रोजगार सृजन का माध्यम भी बनेगा ‘इंडिया सोलर’ व ‘ई-व्हीकल एक्सपो’
इसी क्षेत्र से अनेक पार्षदों के अलावा विधायक भी हुए, जिनमें पहला नाम चरणदास सेठ का है जो आधी सदी से भी ज्यादा समय तक नगर के शीर्ष फौजदारी वकील भी रहे थे और जिन्होने ही जनसंघ के चिंतक संस्थापकों में एक अंत्योदय के प्रणेता पंडित दीन दलाल उपाध्याय की साठ के दशक में ट्रेन से पटना सफर करने के दौरान मुगलसराय स्टेशन के यार्ड मे रहस्यमय मौत को लेकर हुई बैठी जांच के दौरान सीबीआई की ओर से सफल मुकदमा लड़ा था। बाद में जनसंघ पार्टी के टिकट पर आप शहर दक्षिणी के विधायक निर्वाचित हुए।
इसी क्षेत्र से 1984 में डाक्टर रजनीकांत दत्ता बतौर कांग्रेस प्रत्याशी विधायक चुने गए। जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि बाबू दुर्गा प्रसाद खत्री की गणना राष्ट्रीय स्तर के स्वाधीनता सेनानियों में की जाती थी। आपके ही लाहौरी टोला स्थित लहरी प्रेस से आजादी की अलख जगाती रणभेरी प्रकाशित हुआ करती थी। डाक्टर आत्माराम खत्री और बाबू गुलाब सिंह खन्ना भी प्रमुख कांग्रेसी नेता पार्षदों में शुमार थे।
माता सरस्वती के प्रताप से राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय स्तर के पत्रकार- संपादकों ने भी इस क्षेत्र में ही जन्म लिया था। जिनमें प्रमुख नाम डा राममोहन पाठक (चीफ रिपोर्टर आज व संपादक अभिज्ञान प्रकाश, पं दीनानाथ मिश्र, पं माधव मिश्र, बाल कृष्ण गोस्वामी, पं हरिशंकर उपाध्याय, सोमनाथ व्यास, शरणदास सेठ, राजकुमार खत्री, पदम फति शर्मा, शशिधर ईस्सर और महन्त राजनाथ तिवारी।
दरअसल इसमें कितने ही महानुभाव ऐसे हैं जिन पर विस्तार से पुस्तक लिखी जा सकती है। यह क्षेत्र हजारों साल से आबाद रहा है। जिस स्थान पर माता विराजमान हैं, वह कभी एक उद्यान था। कुछ वर्ष पहले नगर के तत्कालीन महापौर राम गोपाल मोहले के मार्ग दर्शन में पुरातत्व विभाग ने उत्खनन के दौरान बमुश्किल 15 फुट नीचे ईसा से एक हजार वर्ष पूर्व एक मंदिरों का शहर पाया था।
इसे भी पढ़ें: ‘द कश्मीर फाइल्स’ देखने के पहले दो शब्द
अस्तु यहां समय समय पर महान हस्तियों ने जन्म लिया होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है। मैंने तो जिनको देखा और जिनके बारे में सुना उनका ही नामोल्लेख किया है। लेकिन यह समझना मुश्किल नहीं कि मां सरस्वती स्वयं में एक लाइट हाऊस हैं और उनकी अपरम्पार महिमा और आलोक से पूरा क्षेत्र प्रतिभाओं से जगमग करता रहेगा। आप यदि वहां जाकर दर्शन नहीं कर सकते तो घर बैठे सपरिवार माता के सोशल मीडिया पर दर्शन से स्वयं को निहाल कीजिए।
(लेखक धार्मिक विद्वान हैं)