Narendra Bhadoria
नरेन्द्र भदौरिया

RSS-BJP Conflict: जीवन में प्रतिज्ञा का बड़ा महत्व होता है। प्रतिज्ञा से बधा हुआ व्यक्ति कभी अपने कर्तव्य को विस्मृत नहीं करता। अयोध्या नरेश दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम ने ऋषियों और समाज के सज्जन-वृन्द का अपमान देखकर प्रतिज्ञा की थी- निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह। सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥

पहले ऋषि विश्वामित्र के आश्रम फिर चित्रकूट में प्रवास की अवधि में श्रीराम को अच्छी तरह पता चल चुका था कि देवभूमि भारत में असुरों का प्राबल्य बढ़ रहा है। चित्रकूट के बाद दण्डकारण्य में ऋषियों की हड्डियों के ढेर देखे तो वह विचलित हो उठे। उन्होंने दोनों भुजायें उठाकर प्रण किया कि इस धरा को निशिचरों-असुरों से विहीन करके ही दम लूंगा। उन्होंने यदि यह प्रतिज्ञा पूर्ण न की होती तो उन्हें आज मानव समाज परमेश्वर का अवतार न मानता।

गंगा और शान्तनु के पुत्र देवव्रत ने अपने पिता को सत्यवती के प्रेम में आतुर देखकर स्वयं यावतजीवन ब्रह्मचर्य के पालन का व्रत लिया था। उनकी यह प्रतिज्ञा भीष्म अर्थात दृढ़ थी। इसलिए इस अपराजेय योद्धा को सम्मान देने के लिए देवकी नन्दन श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के रण में शस्त्र न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा त्याग दी थी। श्रीकृष्ण जब रथ का पहिया उठाकर पितामह की ओर झपटे तो उन्होंने धनुष बाण रथ पर रखकर प्रणाम करते हुए कहा- हे वासुदेव आपने तो भक्त का मान रखने के लिए स्वयं की प्रतिज्ञा त्याग दी। पितामह को स्वयं श्रीकृष्ण ने यह सम्मान दिया। जिसकी चर्चा सर्वत्र होती है।

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स्वामी विवेकानन्द ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के हृदय की वेदना को पहचान कर आजन्म सेवावृती बनने की प्रतिज्ञा की थी। भारत माता बेड़ियों में जकड़ी थीं। भारत माता की सन्ततियां स्वाभिमान की भावना को विस्मृत कर चुकी थी। अपनी संस्कृति और संस्कारों से समाज विरत होता जा रहा था। स्वामी रामकृष्ण ने उनसे कहा था- जब माँ के आंसू नेत्रों से निरझर गिर रहे हों तो क्या किसी सपूत को अपनी चिन्ता में डूबे रहना शोभा देगा। स्वामी विवेकानन्द को अपने जीवन के मर्म की सच्ची अनुभूति हो गयी थी।

महाराणा प्रताप ने देखा कि वीरों की भूमि राजस्थान के अनेक राजघराने अपनी लाडली बेटियों को मुगलों के हरम तक पहुँचा रहे हैं। बेटियों का यह अनादर देखकर उनका हृदय कराह उठा। उन्होंने अकबर की चुनौती स्वीकार की। प्रण किया कि चाहे जो मूल्य चुकाना पड़े- भारत माता का माथा नहीं झुकने देंगे। क्षत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी माता जीजाबाई और समर्थ गुरु रामदास के समक्ष भारत की माटी को माथे लगाते हुए प्रतिज्ञा की थी कि विदेशी सल्तनतों की सिंहासन की चूरें हिला देंगे। उन्हें कभी चैन से नहीं बैठने देंगे। हिन्दवी साम्राज्य की स्थापना करके वीर शिवा ने हर मोर्चे पर विजयश्री का वरण किया। क्रूर मुसलिम शासक औरंगजेब को उसकी हर चाल पर ऐसी मात दी कि हर बार उसका हृदय कांप उठा।

भारत के अनगिन क्रान्तिवीरों के इतिहास को कितना ही छिपाया जाय इस माटी का कण कण उनके बलिदान की गाथा सुनाता रहेगा। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने क्रान्तिवीरों की बलिदानी भावना का सम्मान करते हुए स्वयं भी प्रण लिया था कि वह अंग्रेजों को बल पूर्वक भारत से खदेड़कर मानेंगे। उन्हें प्राणोंत्सर्ग करना पड़ा। पर वह अनन्तकाल तक अमरत्व के शिखर पर भारत माता के ध्वज के वाहक बने रहेंगे। सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, राम प्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आजाद, असफाक उल्लाह, महावीर सिंह सहित हजारों वीरों को भारत माता के प्रति अगाध प्रेम और समर्पण के कारण बलिवेदी पर चढ़ना पड़ा। भगत सिंह सहित तीनों वीर 24-24 वर्ष के थे जब उन्हें मिथ्या साक्ष्यों के आधार पर फांसी दी गयी। उनके शवों को टुकड़ों में काटा गया। फांसी की सजा से पहले उनपर क्षमा-याचना के लिए दबाव डाला गया था। राष्ट्र भक्ति की प्रतिज्ञा से बधे वीर भला दया की भीख मांगते हैं।

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सृजन 1925 में हुआ। तभी प्रतिज्ञा के महत्व पर चर्चा हुई थी। जो प्रतिज्ञा उस समय रची गयी उसमें बाद में परिवर्तन हुआ। नाविन्य प्रतिज्ञा से संघ का प्रत्येक स्वयंसेवक अपने को आजन्म आबद्ध रखता है। स्वयंसवेक जो प्रतिज्ञा लेते हैं उसमें कहा जाता है- सर्व शक्तिमान श्री परमेश्वर तथा अपने पूर्वजों का स्मरण कर मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि अपने पवित्र हिन्दु धर्म, हिन्दु संस्कृति तथा हिन्दु समाज का संरक्षण कर हिन्दु राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति करने के लिए मैं संघ का घटक बना हूँ। संघ का कार्य मैं प्रामाणिकता से, निस्वार्थ बुद्धि से तथा तन-मन-धन पूर्वक करूंगा। और इस व्रत का मैं आजन्म पालन करूंगा। इस प्रतिज्ञा से आबद्ध स्वयंसेवकों की विराट सेना भारत राष्ट्र मंल सजग प्रहरी के रूप में निशिवासर इदं राष्ट्राय के भाव से जीवन जी रही है।

संघ के सरसंघचालक का पद सभी स्वयंसेवकों के लिए वस्तुत: प्रेरक और उपदेशक का होता है। निर्लिप्त भाव से डॉ. मोहन भागवत ने एक सम्बोधन में जो कुछ कहा वह उनके हृदय की पीड़ा को अभिव्यक्त करता है। संघ की एक धारणा है कि स्वयंसेवक के चिन्तन और मन की वेदना को सरसंघचालक तक पहुँचने में देर नहीं लगती। 2024 के आम चुनाव में भाजपा को अनपेक्षित परिणाम मिले। वस्तुत: प्रत्येक स्वयंसेवक का मन चुनाव के पूर्व से ही व्यथित था। चुनाव संचालन की पूरी प्रक्रिया को देखने वाले समीक्षक अब मान रहे हैं कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने पूरी शक्ति लगाकर काम किया। तद्यपि भाजपा और सरकार के निकटस्थ अनेक उत्तरदायी अधिकारी आत्ममुग्धता की स्थिति में सहज बने रहे। प्रतिपक्ष ने जो प्रहार और छल किये उनको उत्तर देने वाले या तो अपरिपक्व थे या फिर उन्होंने भी चुनावी प्रतिस्पर्धा को हल्के में लिया।

कहा जाता है कि दिल्ली की राह उत्तर प्रदेश से होकर जाती है। इस राज्य के मतदाताओं को तब बड़ा अचरज हुआ जब बड़ी संख्या में अयोग्य, निष्क्रिय और अपने कुर्तों पर अकर्यमण्यता के छींटे लिए प्रत्याशी उतार दिये गये। बहुत से प्रत्याशियों का नाम सुनते मतदाता बिदक रहे थे। जिन्होंने अपने पिछले कार्यकाल में समाज विरोधी गतिविधियों में भाग लेकर यह सिद्ध कर दिया था कि जनप्रतिनिधि बनने की दक्षता उनमें नहीं है। उन्हें भला मतदाता कैसे स्वीकार कर लेते। यह बात भाजपा के नेतृत्व की समझ से बाहर होना विचित्र था।

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सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने मणिपुर की समस्या को बहुत गम्भीरता से लिया। उन्होंने सरकार से पूछा कि एक वर्ष से मणिपुर हिंसा से पीड़ित होकर कराह रहा है। इस समस्या का समाधान नहीं हो पाना गम्भीर चिन्ता का विषय है। सरकार में बैठे उत्तरदायी लोगों के लिए यह कथन बड़ा घाव दे गया होगा। सभी जानते हैं कि 2024 के चुनाव को लेकर अन्तरराष्ट्रीय शक्तियां सक्रिय थीं। भारत में स्थिर सरकार काम करती रहे यह विदेशी शक्तियों को सहन नहीं होता। कुछ समय पहले भारत की अर्थव्यवस्था को छल पूर्वक गहरी चोट पहुँचायी गयी। इस षडयन्त्र में भारत के कुछ पत्रकार और अधिकारियों के सम्मिलित होने की आशंका प्रकट की गयी थी। पूरे परिणामों की प्रतीक्षा अभी करनी पड़ेगी। चुनाव से पहले एक विदेशी धनाड्य ने घोषणा की थी कि वह भारत में स्थिर सरकार नहीं बनने देगा। इसके लिए उसने हजारों करोड़ की राशि सुरक्षित करने की बात कही थी। इन बातों पर मोदी का ध्यान अवश्य गया होगा। सम्भवत: निर्मल हृदय से वह देश के मतदाताओं पर अक्षय सेवा के बदले निष्कपट प्रेम की अपेक्षा कर रहे होंगे।

चुनाव परिणाम आने से पहले प्रतिपक्ष के कुछ दलों के नेताओं की बाँछें अचानक खिल उठी थीं। उन्होंने चुनाव जीतने के लिए अनेक छल किये। सरकार को परिणाम आने के बाद ही सही इस ओर ध्यान देना चाहिए। वस्तुत: यदि चुनाव की पवित्रता को प्रभावित करने के लिए करतब किये गये हैं तो उसके लिए आयोग और न्यायालय की शरण में जाना चाहिए। भविष्य में ऐसी बातें न हों इसके प्रावधान भी लोकतन्त्र बचाने के लिए आवश्यक है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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