कोशिश करो कि बस बच जाएं,
इतनी सी भावनाएं।
कि युद्ध की विभीषिका के बीच,
जब चल रही हों दनादन गोलियां।
तोपों से बरस रही हो आग,
खंडहर में तब्दील हो चुके हों शहर।
घरों में कैद हो जाएं ज़िन्दगियां,
नर मुंडों से पटी हो धरती।
मिट्टी का रंग हो जाए लाल।।
लिखा जा रहा हो पलायन का सबसे दुखद इतिहास,
बम के धमाकों से तय की जा रही हों राष्ट्र की सीमा।
तब एक बच्चे की किलकारी सुन,
हो जाए युद्ध विराम की घोषणा।
इतनी तो भावना बचाई ही जा सकती है,
इतनी तो कोशिश की ही जा सकती है।
– सजल
इसे भी पढ़ें: पूनम की अग्नि परीक्षा
इसे भी पढ़ें: वर्षा-विलासिनी