मीनाक्षी दीक्षित

नाम बताओ, हिन्दू और मुसलमान अलग हो जाओ। कलमा सुनाओ, नहीं आता, सीधे सिर में गोली मार दी और मात्र एक नहीं हिन्दू होने की पहचान कर इस प्रकार 26 हिन्दू पुरुषों की उनकी पत्नियों, बच्चों और परिवार के सामने वीभत्स हत्या कर दी गई। विगत 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुए इस आतंकी हमले ने देश को हिलाकर रख दिया।आतंक का इससे घृणित रूप और क्या हो सकता है? किसी को केवल इसलिए मार देना कि उसकी जीवन पद्धति अलग है- ये पाशविकता है, जघन्य अपराध है, क्रूरता की पराकाष्ठा है, अधर्म है। यह पहला हमला नहीं है, दशकों से चल रहा है। मजहब के नाम पर बने देश की ओर से भेजे गए आतंकियों द्वारा धर्म के नाम पर क़त्ल-ओ गारद करना केवल दो देशों के बीच जमीन की लड़ाई नहीं हो सकती।

इस आतंकवाद की प्रवृत्ति मजहबी है, जिसका समूल उच्छेदन होना चाहिए किन्तु छद्म धर्म निरपेक्षता की अफीम चाटकर जीने वाली हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था ने कभी आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई को धर्म और अधर्म के बीच युद्ध समझ कर लड़ना उचित नहीं समझा। पहलगाम आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस परम्परा को पहली बार बदलने का प्रयास किया है और ऑपरेशन सिन्दूर के नाम से लेकर प्रधानमंत्री के उद्बोधन तक आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध को धर्म युद्ध की तरह लड़ने का प्रयास परिलक्षित होता है। यही बदलते हुए भारत का प्रमाण है।

हिन्दू धर्म में वीरता, शौर्य, शक्ति, सामर्थ्य, बुद्धिमता, कौशल, समर्पण और विजय के प्रतीक हैं। बजरंगबली हनुमान जो अपनी देह पर सिन्दूर मले हैं। असुरों का संहार करने वाली जगद्जननी माँ भवानी के मस्तक पर सिन्दूर सुशोभित है। सनातनी लोकजीवन में विवाहिता महिलाएं अपनी मांग सिन्दूर से सजाती हैं जो उनके जीवन में सौभाग्य का कारक माना जाता है। पाणिग्रहण संस्कार और तदुपरांत विवाहित जीवन में किसी भी हिन्दू स्त्री के लिए सिन्दूर से पवित्र और प्रिय कुछ नहीं होता। सिन्दूर में वीरता है, शौर्य है, समर्पण है, विवेक है, साहस है और स्नेह की कोमल भावनाएं हैं। पहलगाम आतंकियों के विरुद्ध आरम्भ अभियान को दिया गया नाम “ऑपरेशन सिन्दूर” सनातन की धारा से निकला है और आतंक के विरुद्ध धर्मयुद्ध की घोषणा करता है।

Pahalgam Attack

आश्चर्यजनक रूप से इस बात को वृहद हिन्दू समुदाय के स्थान पर वामपंथी, लिबरल, सेक्युलर विचारधारा ने पहचाना और इसे “पितृसत्तात्मक व्यवस्था” की पहचान बताकर इसका उपहास किया। सोशल मीडिया विशेष रूप से एक्स पर कई हैंडल इस नाम के विरोध में सक्रिय दिखे और इसे बदलने की बात की। स्वागत योग्य है कि प्रधानमंत्री ने अपने उद्बोधन में, “ऑपरेशन सिन्दूर न्याय की अखंड प्रतिज्ञा है” का मन्त्र देकर वामपंथी गैंग के इस विमर्श पर पानी फेर दिया।

श्ह पहली बार है जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने संकल्पबद्ध होकर आतंकवादियों और उनके पीछे खड़े लोगों को पृथ्वी के किसी भी भू भाग में जाकर दण्डित करने की बात कही जिसकी प्रेरणा स्वाभाविक रूप से प्रभु राम की प्रतिज्ञा “निसिचर हीन करौं महि-भुज उठाए प्राण कीन्ह” से प्राप्त होती दिखाई देती है। ऑपरेशन सिन्दूर की पूरी प्रक्रिया में देह पर लाली लसे पवनसुत का विवेक, संयम और पराक्रम पहचाना जा सकता है। धर्मयुद्ध में धर्म की स्थापना हेतु दोषी को ही दण्डित करना है इसलिए दोषियों की पहचान, उनके ठिकानों की पहचान, उनके साथियों की पहचान करके मात्र उन्हीं पर प्रहार किया गया। ऑपरेशन सिन्दूर की चर्चा करते हुए रक्षामंत्री ने “जिन्ह मोहिं मारा तिन्ह मैं मारे” कहकर पूरे ऑपरेशन की व्याख्या मानस की एक चौपाई के एक चतुर्थांश से कर दी।

सेना द्वारा ऑपरेशन पर जारी पहले वीडियो में पार्श्व संगीत के रूप में वाद्य यंत्रों पर बज रहे शिव तांडव स्तोत्र का प्रयोग किया गया। स्वाभाविक रूप से इससे लिबरल, सेक्युलर,अर्बन नक्सल आदि को गहरी चोट पहुंची। इसके ठीक अगले दिन जारी वीडियो में, रामधारी सिंह दिनकर की कविता का उपयोग किया गया- “जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है।”सेना ने ये दोनों वीडियो डीजीएमओ स्तर की अपनी प्रेस वार्ताओं के आरम्भ में दिखाए। पहले दिन शिव तांडव स्तोत्र से तिलमिलाए बैठे एक लिबरल श्रेणी के पत्रकार ने दूसरे दिन अपना आपा खो दिया और और प्रश्नोत्तर में प्रश्न पूछा- आज आप रामधारी दिनकर की ये कविता लेकर आए हैं, कल आपने शिव तांडव स्तोत्र सुनाया था, आखिर आप इस तरह से क्या सन्देश देना चाहते हैं? प्रश्न का उद्देश्य भांपते हुए एयर मार्शल अवधेश कुमार भारती ने, गोस्वामीजी की मानस से ही उत्तर दिया, “विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत, बोले राम सकोप तब, भय बिनु होय न प्रीति” और आगे जोड़ा समझदार के लिए इशारा काफी है।

India Pakistan attack 2025

प्रधानमंत्री के संबोधन ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत ने हिन्दू समाज को रीढ़ विहीन करने वाले अधूरे वाक्य “अहिंसा परमो धर्म: “ को पूर्ण रूप में स्वीकार करने का निर्णय लिया है “अहिंसा परमो धर्म:- धर्म हिंसा तथैव च” प्रत्येक सनातनी को इसका मर्म समझकर इसे अंगीकार करना चाहिए।

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इस पूरे प्रकरण के दौरान पहलगाम पर चुप्पी साधकर और भारत की कार्यवाही को बार-बार भारत-पाक, हिन्दू- मुस्लिम, कुछ आतंकियों के कारण मुस्लिमों से घृणा क्यों जैसे विमर्श चला कर पटरी से उतारने का असफल प्रयास करते रहे पूरे लिबरल, सेक्युलर, अर्बन नक्सल गैंग को इस बात की पहचान हो चुकी है कि अब भारत आतंकवाद के विरुद्ध अपनी लड़ाई को धर्मयुद्ध की तरह देख रहा है, जिसमें धर्म की विजय सुनिश्चित है। पूरे खेमे में छटपटाहट है। ये गैंग जल्द ही कोई सामाजिक वितंडा खड़ा करने का प्रयास करेगा। अतः आने वाले समय में समाज के स्तर पर कार्य करने वाले लोगों को विशेष सावधानी की आवश्यकता है।

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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