नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य संघर्ष के बाद एक बार फिर सिंधु जल संधि को लेकर तनाव गहराता नजर आ रहा है। पाकिस्तान ने भारत सरकार से आग्रह किया है कि वह इस संधि को स्थगित करने के फैसले पर दोबारा विचार करे।

पाकिस्तान के जल संसाधन सचिव सय्यद अली मुर्तज़ा ने भारत के जल शक्ति मंत्रालय को एक औपचारिक पत्र भेजा है, जिसमें कहा गया है कि भारत द्वारा सिंधु जल संधि के प्रावधानों पर रोक लगाने से पाकिस्तान के कई हिस्सों में खरीफ की फसलों के लिए जल संकट उत्पन्न हो गया है। उनका कहना है कि यदि यह स्थिति बनी रही, तो पाकिस्तान की कृषि और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा।

पीएम मोदी ने दी थी चेतावनी

पिछले सप्ताह राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट शब्दों में कहा था, “पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत की ओर से की गई सैन्य कार्रवाई सिर्फ रोक दी गई है, लेकिन अगला कदम पाकिस्तान के व्यवहार पर निर्भर करेगा।

प्रधानमंत्री ने यह भी दोहराया कि यह युग युद्ध का नहीं है, लेकिन आतंकवाद के लिए भी कोई स्थान नहीं है। यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत ने सीमापार आतंकवादी ठिकानों पर निर्णायक कार्रवाई की है।

पाकिस्तान की प्रतिक्रिया और चेतावनी

पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने भारत को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर भारत ने पानी की आपूर्ति को बाधित किया तो दोनों देशों के बीच 2021 में हुआ संघर्ष विराम समझौता खतरे में पड़ सकता है। डार ने कहा, “हम शांति के पक्षधर हैं, लेकिन यदि भारत हमारी जीवनरेखा—पानी—को रोकता है, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।”

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क्या है सिंधु जल संधि

सिंधु जल संधि वर्ष 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी, जिसमें सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का पानी पाकिस्तान को और रावी, ब्यास और सतलुज नदियों का पानी भारत को देने का प्रावधान है। हाल के वर्षों में भारत ने बार-बार चेतावनी दी है कि वह इस संधि के प्रावधानों की समीक्षा कर सकता है, खासकर जब सीमा पार से आतंकवाद को बढ़ावा दिया जाता है। सरकार की ओर से अभी तक पाकिस्तान के पत्र पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की नीति अब ‘जल कूटनीति’ के जरिए पाकिस्तान पर दबाव बनाने की हो सकती है।

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