नई दिल्ली: ज्ञानवापी मस्जिद विाद की आंच अब विदेशों तक पहुंच चुकी है। एक तरफ जहां हिंदू समाज के लोग इस विवाद से दूर रहने में सबके भलाई समझ रहे हैं, वहीं भारत के मुसलमानों के साथ मुस्लिम देश भी एकजुटता दिखाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शान में गुस्ताखी करने में लग गए हैं। वह यह भूल कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में वह भारत का विरोध कर रहे हैं। जबकि दूसरे देशों के आंतरिक मामले में दूसरे देशों को हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए। एक दूसरे का सम्मान करना सभी देशों का दायित्व बनता है, लेकिन मुस्लिम देश इस तरह की गुस्ताखी अक्सर करते रहते हैं। हालांकि हिंदुत्व की अलख भारत में जो जली है उसकी तपिश अब विरोधी देशों में देखने को मिल रहा है। वैश्विक हल्के में हल्के से बवाल से विश्वगुरु के पसीने छूट गए। इसी से पता चलता है कि ज्ञानवापी में सैकड़ों साल से फव्वारा क्यों है?
दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मात्र व्यक्ति नहीं हैं, वे दुनियां में भारत का चेहरा व विश्व पटल पर 135 करोड़ लोगों के प्रतिनिधि हैं। क़तर और कुवैत में उनकी फोटो पर जूते के चिन्ह के साथ प्रदर्शित दीवाल एक राष्ट्र का, उसके 135 करोड़ जनता का घोर अपमान है। किसी देश में ऐसा सार्वजनिक अभद्र आचरण बेहद गंभीर व अंतरराष्ट्रीय मानकों के विपरीत है। पिद्दी से देश कतर तो छोड़िए पूरे अरब देशों की मिलकर भी ऐसी हैसियत नहीं कि इस तरह की हिमाकत कर सकें। ये किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं की जा सकता, लेकिन भारत ने बर्दाश्त ही नहीं किया अपितु स्पष्टीकरण दिया और एक समर्पित प्रवक्ता से सार्वजनिक माफीनामा लिखवा दल से निलंबित भी कर दिया।
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विडंबना देखिए कि कतर वह देश है जिसने एमएफ हुसैन को नागरिकता दी, जिसने हिन्दू देवी देवताओं की नग्न पेंटिंग बनाई और माफी भी नहीं मांगी। खैर उस समय सत्ता कतर समर्थकों के पास थी तो शिकायत भी नहीं कर सकते लेकिन आज तो सर्वशक्तिमान की सत्ता है जो किसी की धौंस में नहीं आता (प्रचारित तो यही किया जाता है)। वैसे भी भारत के आतंरिक मामले में किसी तरह का दखल किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। पिछले कुछ वर्षों से आम जन में यह धारणा बनी थी कि अब दुनिया का कोई भी देश हमारे राष्ट्र के साथ इस तरह का अव्यवहारिक नजरिया भी नहीं रख सकता लेकिन यंहा तो पिद्दी से देश ने हमें घुटनों पर ला दिया। इस प्रकरण में कोई कूटनीति भी हो तो भी बहुत सी धारणाएं ध्वस्त हो गई।
आज गांधी परिवार जरूर अपना रुख स्पष्ट करने में असमर्थ है, लेकिन इसी परिवार की एक नेता इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री रहीं। वो कैसी भी नेता थीं लेकिन अरब तो छोड़िए अमेरिका के दबाव के आगे भी उन्होंने घुटने नहीं टेकें। विश्व पटल पर सभी को साफ संदेश दिया कि देश हमारा है, फैसले भी हम ही लेंगे।
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