Narendra Bhadoria
नरेन्द्र भदौरिया

भारत विखण्डन के बाद स्वतन्त्रता मिलने पर उत्तर प्रदेश सहित देश के प्राय: सभी राज्यों में करोड़ों हेक्टेयर भूमि नजूल (Nazul land) के नाम पर सरकारी रिकॉर्ड (अभिलेखों) में अंकित थी। यह भूमि कहाँ से आयी इसकी जानकारी सामान्यतया जनमानस को नहीं है। यह भूमि प्राय: उन राष्ट्रभक्तों की है जिन्होंने मुगलों और अंग्रेजों के कालखण्ड में राष्ट्र के प्रति अपनी भक्ति और धर्म के प्रति अपनी अटूट आस्था का त्याग नहीं किया। इसके कारण उनकी सम्पत्ति छीनकर मुगलों और अंग्रेजों ने उन्हें दीन-हीन बना दिया।

भारत में जब बाबर ने मुगल सत्ता स्थापित की तब एक अरबी शब्द नज़ल का प्रादुर्भाव हुआ। यह शब्द अरबी भाषा का है। इसका अर्थ है राजा के अधिकार वाली सम्पत्ति। इसी शब्द से नजूल शब्द का चलन उर्दू भाषा में हुआ। बाबर ने यह नीति बनायी कि भारत के रजवाड़ों और हिन्दु समाज के जिस किसी सैनिक या व्यक्ति ने मुगल सेना का विरोध किया उसे भूमि सहित सारी सम्पत्ति अधिग्रहीत कर ली जाय। इस तरह अनेक हिन्दु राजाओं और हिन्दु समाज के देशभक्तों को भिखारी बनाने का अभियान चला। इस अभियान का उद्देश्य था कि समाज का कोई भी वर्ग मुगल शासकों का विरोध करने का विचार तक न करे। जो सम्पत्ति अधिग्रहीत की जाती थी, उसे नजूल की सम्पत्ति नाम दिया गया। मुगल शासक ऐसी सम्पत्तियों को मुसलिम राज दरबारियों और विदेश से यहाँ लाकर बसाये जा रहे इस्लामी लोगों में बांटते रहे।

बाबर के बाद हुमायूं ने इसे जारी रखा। फिर हुमायूं के बेटे अकबर ने इस नीति में कुछ बदलाव करके और विस्तार किया। इसके अनुसार नजूल के अन्तर्गत अधिग्रहीत की गयी भूमि को अफगानिस्तान तथा अन्य देशों से बड़ी संख्या में मुसलिम युवाओं को लाकर उन्हें अमीर बनाया गया। आने वाले मुसलमानों को मसजिद और निवास के लिए ऐसी भूमि और भवन आवन्टित किये जाने लगे। अकबर के बाद जहांगीर, शाहजहाँ ने इसके आधार पर बड़ी संख्या में भारत आने के लिए मुसलमानों को आकर्षित किया। इस तरह भारत में मुसलिम जनसंख्या बढ़ाई जाने लगी। ऐसे युवकों से मुगल सेना के दबाव में हिन्दु परिवारों की लड़कियों को निकाह करने के लिए विवश किया जाता।

शाहजहाँ के बेटे औरंगजेब ने हिन्दु धर्म तथा उससे जुड़े विभिन्न पन्थों- सिखों, बौद्धों, जैनियों, आर्य समाजियों, सिन्धियों आदि पर इस्लाम मजहब अपनाने के लिए क्रूरता करनी प्रारम्भ कर दी। उसके पूर्ववर्ती मुगल शासक मुख्यतया अपनी सत्ता का विरोध करने अथवा युद्ध में भाग लेने वाले राजाओं और सैनिकों की सम्पत्ति अधिग्रहीत किया करते थे। पर औरंगजेब ने भारत के इस्लामीकरण के लिए व्यापक अभियान चलाया। उस कालखण्ड के इस्लामी इतिहासकारों की मानें तो पूरे देश में 70 लाख से अधिक सनातनी मतावलम्बियों ने अपने प्राण न्यौछावर करना अथवा सम्पत्तिहीन होना स्वीकार किया पर हिन्दु धर्म की अपनी मान्यताओं का त्याग नहीं किया।

इस प्रकार औरंगजेब ने अपने पूर्ववर्ती मुगलिया शासकों की तुलना मंह कई गुना नजूल सम्पत्ति को अपने शासन के अधीन कर लिया। इस प्रक्रिया में औरंगजेब ने 15 लाख से अधिक हिन्दुओं, सिखों आदि का संहार अपने 50 वर्षों के शासनकाल में किया। औरंगजेब की मृत्यु 03 मार्च, 1707 ईस्वी में हुई थी। कुछ लोगों को भ्रान्ति है कि औरंगजेब एक योद्धा था। वस्तुत: अपने भाइयों और पिता शाहजहाँ की हत्या के अतिरिक्त उसने कभी कोई वीरता नहीं दिखायी। यह सही है कि क्रूरता की दृष्टि से उसने सबसे घृणास्पद आचरण दर्शाया। अपने भाई दाराशिकोह की हत्या करके उसका सीना चीरकर हृदय निकलवाया फिर उसे जेल में बन्द पिता शाहजहाँ के मुंह में ठुंसवाकर कहा- यह तुम्हारे लिए सर्वोत्तम उपहार है। इतना करने के बाद भी उसे सन्तोष नहीं हुआ और विष भरा प्याला पिलाकर हत्या कर दी।

मुगलों के बाद अंग्रेजों को उनकी यह नीति अच्छी लगी। देश भक्त भारतीयों को सम्पत्ति विहीन करने का व्यापक अभियान अंग्रेजों ने चलाया। इसीलिए नजूल कानून बना रहा। अंग्रेजों ने 1857 के स्वातन्त्र्य समर में पराजित होने के बाद 1858 में फिर से अपनी शासन व्यवस्था स्थापित की। तब ऐसे सभी राजाओं, सैनिकों और समाज के उन लोगों की सम्पत्तियां हड़पनी प्रारम्भ कर दीं जो 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में सक्रिय थे। इस प्रकार मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक भारत के करोड़ों राष्ट्रभक्तों को सम्पत्ति विहीन किया जाता रहा।

अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद गांधी-नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस सत्तारूढ़ हुई। उस समय भारत के बहुतांश लोगों ने अपेक्षा की थी कि उनके पूर्वजों की सम्पत्ति और भूमि का स्वमित्व उन्हें लौटाया जाएगा। कुछ सामाजिक-धार्मिक संगठनों की मांग पर उनसे कहा गया कि अपने स्वामित्व और उत्तराधिकार से सम्बन्धि अभिलेख प्रस्तुत करें। इतनी दीर्घ अवधि के अभिलेख प्रस्तुत करना किसी के लिए सम्भव नहीं था। इसलिए राष्ट्रभक्तों के वंशजों को निराश होकर बैठ जाना पड़ा। स्वतन्त्र भारत की कांग्रेस सरकारों ने मुगलों और अंग्रेजों के शासनकाल में सम्पत्ति के स्वामी बने बाहरी लोगों (मुगलों और अंग्रेजों के चाकरों-चापलूसों) से कभी नहीं पूछा कि उन्हें भारत में नजूल सम्पत्ति का स्वामी किस आधार पर बनाया जाता रहा। इस्लामी और ईसाई संगठनों को लाखों एकड़ भूमि देश के विभिन्न राज्यों में दी गयी।

मुगलों ने तो हिन्दु समाज के लोगों की सम्पत्ति हड़पने के साथ बड़ी संख्या में उनकी पहिचान बदल दी थी। जिन्होंने इस्लाम स्वीकार नहीं किया था उन्हें उस समय सिर पर मैला ढोने, गन्दगी साफ करने जैसे काम सौंपकर नीच कहकर सम्बोधित किया गया। शेष समाज से कहा जाता रहा कि वह ऐसे नीच लोगों से सभी सामाजिक सम्बन्ध तोड़ लें। अन्यथा उन्हें भी सम्पत्ति छिन जाने का दण्ड भोगना पड़ेगा। इस प्रकार भारत में छुआछूत का प्रसार मुगलों ने बड़े पैमाने पर करके सामाजिक विद्वेष और विभेद खड़े कर दिये। अपनी पहिचान और सम्पत्ति बचाने के लिए समाज में ऐसे लोग भी खड़े होने लगे जो मुगलों से रोटी-बेटी का सम्बन्ध स्थापित करने में गर्व की अनुभूति करते थे।

स्वतन्त्र भारत में नजूल का दुरुपयोग

भारत में 1947 से कांग्रेस का शासन लगभग 60 वर्षों का रहा। इस अवधि में कांग्रेस नेतृत्व ने नजूल सम्पत्तियों का दुरुपयोग शुरू कर दिया। इसके माध्यम से अपने स्थायी वोट-बैंक की व्यवस्था करने का लालच उनके सिर पर सवार हो गया। इसी आधार पर राष्ट्रभक्तों से मुगलों और अंग्रेजों द्वारा छीनी गयी नजूल भूमि मुसलमानों और ईसाइयों को प्रसन्न करने के लिए वितरित की जाती रही। इन्दिरा गांधी और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में प्रत्येक राज्य में दसियों हजार हेक्टेयर नजूल भूमि इन दो अल्पसंख्यक समुदायों के संगठनों के सुझावों पर वितरित की गयी। कांग्रेस की इस अनीति का अनुकरण मुसलिम और ईसाई समुदायों के मतदाताओं को लुभाने के लिए कई क्षेत्रीय दलों ने बड़े पैमाने पर किया। इसी का परिणाम है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडीशा, तमिलानाडु, केरल, आन्ध्र प्रदेश, दिल्ली और पूर्वोत्तर भारत के सात राज्यों राज्यों में ईसाई ओर मुसलिम संगठनों को अपना व्याप बढ़ाने में बड़ी सहायता मिली। अल्पसंख्यक कहे जाने वाले इन दो समुदायों के संगठनों और लोगों के पास अकूत सम्पत्ति पहुँचा दी गयी।

सबसे विचित्र बात यह है कि ऐसी सरकारों ने अल्पसंख्यक के नाम पर केवल इस्लाम और ईसाइयत को मानने वाले समाज को महत्व दिया। जबकि सिख, सिन्धी, जैन, आर्य समाज और जनजातीय समुदायों को कोई महत्व नहीं दिया गया। जिन जातियों को अनुसूचित अथवा जनजातीय कहा जाता है उनका बलिदान भारत की संस्कृति और राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा के प्रति अप्रतिम रहा है। उन्हें इससे पूरी तरह वंचित रखा गया। नेहरू सरकार को पूज्य डॉक्टर भीमराव अम्बेदकर, डॉ राममनोहर लोहिया, अटल विहारी वाजपेयी आदि के नेतृत्व में 20 से अधिक राजनेताओं ने सुझाव दिया था कि नजूल सम्पत्ति का उपयोग राष्ट्र भक्त सम्पत्तिहीन परिवारों तथा सेना के प्राणोत्सर्ग करने वाले योद्धाओं के परिवारों को पुनर्वासित करने के लिए किया जाना चाहिए।

विभाजन के समय जो परिवार पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्रों से सब कुछ लुटाकर भारत आये थे उन्हें पुनर्वासित करने के उद्देश्य से भी ऐसा सुझाव डॉ अम्बेदकर, केएम मुन्शी, सम्पूर्णानन्द और सरदार पटेल ने दिया गया था। पर तब नेहरू सरकार को बापू (गांधी) ने ऐसा करने से मना कर दिया था। उन्होंने तो सरदार पटेल को बुलाकर अपना क्षोभ प्रकट करते हुए कहा था कि जो मुसलमान भारत में अपनी सम्पत्ति छोड़कर गये हैं वह भूमि भी उन हिन्दु परिवारों को नहीं देनी चाहिए जो पाकिस्तान से भारत आये हैं।

गांधी जी का विचार था कि जिन्ना ने उन्हें आश्वस्त किया है कि उनके देश में जो हिन्दु रहना चाहते हैं उन्हें पूरी सुरक्षा दी जाएगी। वस्तुत: गांधी को पता चल चुका था कि जिन्ना और उनके समर्थकों के संकेत पर ही पाकिस्तान में रहने वालों हिन्दुओं को संहार और सम्पत्ति तथा बेटियों-महिलाओं की लूट का सामना करना पड़ा है। फिर भी वह इस मत के थे कि जो सम्पत्ति मुसलमानों के पास थी उसे पाने का अधिकार किसी हिन्दु को नहीं मिलना चाहिए।

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गांधी की इच्छा का आदर करते हुए दिल्ली सहित उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में आये हिन्दु शरणार्थियों को अनेक वर्षों तक अपने पैरों पर खड़े होने के लिए घोर संघर्ष और संकट झेलने पड़े थे। कश्मीर से जब शेख अब्दुल्ला और फारुख अब्दुल्ला की नीतियों के कारण कश्मीरी हिन्दुओं को खदेड़ा गया तो ऐसे पाँच लाख से अधिक परिवारों के लोगों को अपने संसाधनों पर देशभर में शरण खोजनी पड़ी। उस समय इन्दिरा सरकार ने गांधी और नेहरू की पूर्ववर्ती नीतियों को स्वीकार करते हुए कश्मीरी हिन्दुओं को पुनर्वासित करने पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया। ऐसे कश्मीरी पण्डित कहे जाने वाले हिन्दुओं को घोर यातनाएं सहने के बाद निष्कासित करते हुए सब कुछ लूट लिया गया था। भारत में अनेक राज्यों में हिन्दुओं के साथ ऐसे अत्याचार फिर प्रारम्भ हो गये हैं। पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडीसा, केरल, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, पूवोत्तर भारत, उत्तर प्रदेश के जिन जिलों में मुसलिम और ईसाई समाज की बहुलता हो जाती है वहाँ से हिन्दुओं को बलात खदेड़ दिया जाता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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