थोथा उड़ाना पड़ता है। उड़ाते समय ध्यान रखना होता है कि आँखों की किरकिरी न बनने पाये। भारतीय लोकतन्त्र का महासमर पूर्ण हुआ। देश की18वीं लोकसभा के परिणामों में भाजपा के पलड़े में इस बार अपेक्षा से अधिक थोथा निकला। दलदार के धान्य का ढेर फिर भी बड़ा रहा। दिल्ली में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा गठबन्धन की सरकार बन गयी। इस सरकार के बनते ही वाशिंगटन तक आँधियों ने रुख बदल लिया। अमेरिकी चाचा नहीं चाहते थे कि भारत में मोदी फिर से सत्तारूढ़ हों। इच्छा पूरी नहीं होने पर नये षडयंत्र का पहला पाँसा राष्ट्रपति जो बाइडन ने फेंका। उन्होंने अपने सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन को मोदी सरकार को धमकाने के लिए दिल्ली भेजा।
जेक सुलिवन का रवैया कई वर्षों से भारत विरोधी रहा है। वह 17 और 18 जून 2024 को नयी दिल्ली में थे। पहले उनकी भेंट भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से हुई। इसमें सुलिवन डोभाल के समक्ष बौने सिद्ध हुए। जेक तब विदेश मन्त्री एस जयशंकर से मिले। सुलिवन भारत सरकार को चेतावनी देने आये थे कि यदि वह अमेरिका के बताये रास्ते पर नहीं चला तो गम्भीर परिणाम सामने आ सकते हैं। ऐसा क्या हो सकता है इसको लेकर अमेरिका ने अपने पत्ते इस यात्रा से पहले खोल दिये थे। अमेरिका में खालिस्तानी आतंकी सिख फॉर जस्टिस के सरगना गुरपतवन्त पन्नू को संरक्षण मिल रहा है। वह पहले कनाडा में ट्रूडो सरकार द्वारा संरक्षित था। अब अमेरिका ने एक नयी चाल चली है। एक भारतीय को गिरफ्तार किया गया है। अमेरिकी सरकार का कहना है कि उसने रहस्योद्घाटन किया है कि पन्नू को मारने के लिए दिल्ली के एक बड़े सरकारी अधिकारी ने योजना बनायी है। इसी षडयंत्र के बहाने सुलिवन को भारत सरकार को दबाव में लेने के लिए भेजा गया। दो दिन की यात्रा पूरी करके सुलिवन को खाली हाथ लौटना पड़ा।
अमेरिकी चाल को भारत के प्रधानमन्त्री मोदी बहुत दिनों से परख रहे हैं। अमेरिका ने कुछ अन्य देशों के साथ मिलकर भारत के आम चुनाव को मोदी के विरुद्ध प्रभावित करने के लिए प्रयास किये। इस आशय के समाचार संसार के विभिन्न देशों की पत्र-पत्रिकाओं में अनेक गुप्तचर एजेंसियों के सूत्रों से छप रहे हैं। अमेरिका की नाराजगी नरेन्द्र मोदी से इस बात को लेकर है कि उन्होंने मना करने पर भी रूस से सम्बन्ध प्रगाढ़ बनाये रखे। यूक्रेन के साथ रूस के युद्ध के कारण अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबन्धों की घोषणा की। भारत से कहा गया कि वह रूस से तेल का आयात न करे। यह युद्ध 20 फरवरी, 2014 को प्रारम्भ हुआ था। मई 2014 में मोदी ने पहली बार भारत की सत्ता सम्भाली थी। प्रधानमन्त्री बनते ही उन्होंने अमेरिकी दबाव को नहीं माना। दो कार्यकाल बीत जाने के बाद भी मोदी ने अमेरिकी संकेतों पर थिरकने से मना कर दिया।
अमेरिका शक्ति और धन में कई दशक से सर्वोच्च बना है। पर अब उसकी धाक घटती जा रही है। पाकिस्तान जैसे देश के प्रधानमन्त्री रहे इमरान खान से तनिक सी चूक हो गयी थी। वह पहले चीन जाकर जिनपिंग से गुप्त समझौता कर आये थे। फिर मास्को पहुँचकर व्लादिमीर पुतिन से हाथ मिला लिया। इस्लामाबाद लौटे तो अमेरिकी संकेत पर उनकी सरकार चली गयी। इमरान जेल पहुँच गये। पर बाइडन चिढ़े बैठे हैं कि वह मोदी को डरा पाने में अब तक असफल सिद्ध हो रहे हैं। पिछले दो कार्यकाल में मोदी ने रक्षा उत्पादन बढ़ाने में बड़ी सफलता प्राप्त की। इसके बल पर भारत सैन्य हथियारों की बिक्री करने वाला देश बन गया। अमेरिका का कहना है कि मोदी ने रूस से बहुत बड़ी मात्रा में तेल का आयात किया। इससे अपनी घरेलू आवश्यकता की पूर्ति की। इसके साथ ही भारत से तेल और हथियार दोनों का निर्यात शुरू हो गया।
मोदी सरकार की यह सफलता अमेरिका के गले नहीं उतर रही। अमेरिकी एजेंसियों का कहना है कि भारत निकट भविष्य में कई अति प्रभावी युद्धक विमान और मिसाइलें बड़े पैमाने पर बनाकर निर्यात करने की तैयारी कर चुका है। भारत ने अपने सम्बन्धों का विस्तार तेजी से किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन के दूत जेक सुलिवन का दिल्ली से निराश होकर लौटना चाचा को बहुत खल रहा है। इस बीच मोदी के सन्दर्भ में अमेरिका का मानना है कि वह रूस, चीन और सऊदी अरब के साथ सम्बन्धों से और शक्ति अर्जित कर रहे हैं। चीन ने रूस के साथ मिलकर सऊदी अरब को अमेरिका से निकटता भंग करने के लिए मना लिया है। इसमें भारत के नरेन्द्र मोदी की संलिप्तता भांपते हुए बाइडन का पारा चढ़ा हुआ है।
दुनिया में इस बात को लेकर बड़ी हलचल है कि इन्हीं तीन देशों के कारण सऊदी अरब ने अमेरिका के साथ पेट्रो डॉलर सम्बन्धी 50 साल पुराना समझौता तोड़ दिया है। इस समझौते का नवीनीकरण जून, 2024 में होना था। 1974 से प्रभावी पेट्रो डॉलर पैक्ट के चलते ओपेक देश अपने तेल का भुगतान डॉलर में ही लेते आ रहे थे। सऊदी अरब की अगुवाई में यह समझौता हुआ था। अचानक मिले इस झटके से बाइडन की सत्ता हिल गयी है। अब सऊदी अरब डॉलर के स्थान पर विभिन्न देशों से किस मुद्रा में भुगतान लेना है यह अपने सम्बन्धों के आधार पर तय करेगा।
नरेन्द्र मोदी ने जब नवगठित 18वीं लोकसभा के प्रथम सत्र में गरज कर कहा कि मुझे सब पता चल चुका है जिस तरह इको सिस्टम बदला गया उसकी जानकारी मुझे है। एक एक कर सबको बताऊंगा। उनके शब्दों की अनुगूँज दिल्ली से 12 हजार किमी से अधिक दूर वाशिंगटन में बैठे बाइडन की कुर्सी तक सुनायी पड़ी। नवम्बर, 2024 में बाइडन को भी चुनाव समर में उतरना है। बाइडन इससे पहले दिल्ली के सत्ता शीर्ष पर बदलाव चाहते थे। मोदी के इतने तीखे स्वरों को भारत के बहुतांश लोग नहीं भाँप सके। ऐसे लोग तब समझे जब अमेरिकी रक्षा सलाहकार जेक सुलिवन 18 जून को दिल्ली पहुँचे।
सुलिवन की भारत यात्रा पूरी तरह मोदी को चेतावनी देने के लिए थी। पर यहाँ भारत के विदेश मन्त्री जयशंकर के मुँह से खरी-खोटी सुननी पड़ी। बिना संकोच किये जयशंकर ने कहा अमेरिका को यह बात समझ लेनी चाहिए कि उसकी हड़कबाजी के दिन बीत चुके हैं। दुनिया में सत्ता का एक ही शीर्ष चिर काल तक स्थिर नहीं रह सकता। कूटनीति के विशेषज्ञ मानते हैं कि बाइडन का दूत दिल्ली में यह बताने आया था कि यदि भारत की नयी सरकार ने अमेरिकी पंजे से भयभीत रहते हुए अनुकरण करने की नीति नहीं अपनायी तो वह खालिस्तान के समर्थकों को उकसाने के साथ पड़ोसी देश पाकिस्तान को भी टकराव के लिए प्रेरित कर सकता है। भारतीय सीमा में पाकिस्तान की ओर से आतंकी गतिविधियों का बढ़ना इसी की परिणिति मानी जा रही है। अमेरिकी दूत की धमकी के उत्तर में अजीत डोभाल, भारत के विदेश मन्त्री और उससे अधिक प्रधानमन्त्री मोदी की प्रतिक्रिया प्रभावी मानी जा रही है।
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली से ऑस्ट्रिया जाने से पहले मास्को में पुतिन से भेंट की। इस भेंट ने बाइडन की चिन्ता को और गहरा कर दिया। रूस अब भारत में छह नये परमाणु रिएक्टर लगाने जा रहा है। वह भारत से सारा व्यापार भारतीय रुपये में करता रहेगा। भारत ने रूस को कई तरह के रक्षा उपकरण और हथियारों की बिक्री जारी रखने का निश्चय किया है। भारत ने रूस के दो बड़े शहरों में नये वाणिज्य दूतावास खोलने की स्वीकृति दी है। जिसका रूस में व्यापक स्वागत हुआ है। पुतिन ने मोदी के साथ लम्बी एकान्त वार्ता की।
इसे भी पढ़ें: सागरमाथा के साथ अंग्रेजों ने राधानाथ सिकदर से किया अन्याय
मोदी और पुतिन के बीच वार्ता में बदलते अमेरिकी तेवर की चर्चा न हुई हो ऐसा नहीं हो सकता। पुतिन के समक्ष बैठकर मोदी ने यूक्रेन समस्या का शान्तिपूर्ण हल निकालने का सुझाव दिया। यूक्रेन में अस्पताल पर रूसी सेना के हमले पर चिन्ता जतायी। मोदी की यात्रा पूरी होते ही सऊदी अरब की ओर से अमेरिका को जो झटका मिला उसने सारे संसार के समक्ष अमेरिकी नेतृत्व के बौनेपन को सिद्ध कर दिया। विदेश मामलों के विशेषज्ञ अब इस बात को लेकर गम्भीर चिन्तन में लगे हैं कि भारत में चुनाव को प्रभावित करने के लिए अमेरिका के साथ और कौन से देश गुप्त अभियान में लगे थे।
भारत के कुछ मित्र देशों की गुप्तचर एजेंसियों ने मोदी सरकार को बताया है कि भारत के किन प्रतिपक्षी दलों को विदेशी फण्डिंग से लाभ पहुँचाया गया। प्रथम दो चरणों के मतदान के बाद भारत में सत्ता परिवर्तन के लिए विदेशी हस्तक्षेप प्रारम्भ हो गया था। जिसे चुनाव के बीच में मोदी सरकार रोक नहीं पायी। इन सूचनाओं के कारण ही प्रधानमन्त्री मोदी ने रोष भरी भाषा में संसद में कहा था कि उन्हें सब पता चल चुका है कि चुनाव के समय और बाद देश का वातावरण बदलने के लिए किन लोगों ने भारत के मामलों में हस्तक्षेप किया। बदलती परिस्थितियों में मोदी सरकार का तीसरा चरण बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होने वाला है। इसीलिए मोदी विदेशी नेताओं से सम्बन्धों को गति देने में जुट गये हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
इसे भी पढ़ें: लोकतन्त्र को उजाड़ने का हठ