ख्याति प्राप्त पर्वतारोही पद्मश्री संतोष यादव (Mountaineer Padmashree Santosh Yadav) 5 अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) के स्थापना दिवस के समारोह की मुख्य अतिथि थीं। एक महिला, साथ में खिलाड़ी और उससे भी महत्वपूर्ण यह कि यदुकुल समाज से। तीन विशिष्ट क्षेत्रों का प्रतिधित्व कर रहीं संतोष यादव (Mountaineer Padmashree Santosh Yadav) का संघ के सबसे बड़े मंच पर होना, स्वाभाविक है कि रजानीतिक पंडितों और खासतौर पर मीडिया के लिए चौंकाने वाला तो है ही।
हालांकि अपने संबोधन में सरसंघ चालक मोहन भागवत ने स्पष्ट भी कर दिया कि आरएसएस (Rashtriya Swayamsevak Sangh) के कार्यक्रम में महिलाओं की भागीदारी डॉक्टर साहब (डॉक्टर हेडगेवार) के वक्त से ही हो रही है। अनसूइया काले से लेकर कई महिलाओं ने आरएसएस के कार्यक्रमों में हिस्सेदारी ली। वैसे भी हमें आधी आबादी को सम्मान और उचित भागीदारी तो देनी ही होगी।
आज के इस समारोह और घटना को लेकर राजनीति और समाज में विश्लेषण के लिए स्थापित लोग अपने अपने ढंग से इस पर लिख रहे हैं, लेकिन यहां संतोष यादव (Mountaineer Padmashree Santosh Yadav) और आज संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) के सबसे बड़े मंच पर उनकी सहभागिता को ठीक से समझने की जरूरत है। बीते कई दशकों में भारत की राजनीति में आये जातिवाद के एक स्थायी भाव ने सभी को चिंतित किया है। विशेष रूप से यादव और मुस्लिम समीकरण के आधार पर होने वाली राजनीति ने प्रत्यक्ष रूप से हिन्दू समाज का बहुत नुकसान किया है। यादव जिसे सनातन संस्कृति यदुकुल के रूप में सम्मान देती है, उस समाज का हिन्दू समाज से रजानीतिक रूप से कटना ठीक नहीं।
यह बड़ी चिंता बन कर उभरने वाला ऐसा विषय है जिसका समाधान बहुत आवश्यक है। हरियाणा के रेवाड़ी ज़िले की रहने वाली संतोष यादव दो बार एवरेस्ट फ़तह करने वाली पहली महिला हैं। संतोष यादव की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़ उनकी इस उपलब्धि को 1994 के गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में शमिल किया गया था। 54 साल की यादव को साल 2000 में पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है।
संतोष यादव को वर्ष 2009 में यदुकुल शिरोमणि सम्मान के एक कार्यक्रम में यदुकुल शिरोमणि समागम के आयोजक कालीशंकर ने गोरखपुर में सम्मानित किया था। आजकल काली शंकर और सपा के निवर्तमान सांसद चौधरी सुखराम सिंह के सुपुत्र मोहित यादव संयुक्त रूप से पूरे प्रदेश में यदुकुल शिरोमणि समागम के आयोजन कर रहे हैं। गोरखपुर और वाराणसी में ये आयोजन हो चुके हैं। अगला आयोजन प्रयाग में प्रस्तावित है। उल्लेखनीय यह है कि चौधरी सुखराम सिंह यादव का परिवार आजकल भाजपा के निकट है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो एक कार्यक्रम में मोहित यादव को भाई के रूप में संबोधित कर चुके हैं।
उत्तर प्रदेश में खुद को यादव राजनीति का मसीहा मानने वाले शिवपाल सिंह यादव ने भी यदुकुल सम्मेलन शुरू कर दिया है। स्वाभाविक है कि यादव राजनीति के लिए नया परिवेश बनाने की कवायद चल रही है। यह संदर्भ लेना इसलिए आवश्यक लगता है, क्योंकि आज संतोष यादव को संघ के मंच पर रहना केवल एक सामान्य घटना नहीं है। निश्चित रूप से इसके पीछे बड़ी रणनीति है। इस आयोजन में संतोष यादव के संबोधन पर गौर कीजिए।
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वह कहती हैं कि पहले संघ के काम के बारे में जानें फिर उसके बारे में राय बनाएं। पूरे विश्व के समाज से मैं अनुरोध करना चाहती हूं कि वह आए और आरएसएस की कार्यप्रणाली को उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों को समझे। कल से जब से मैं नागपुर में आई हूं, आरएसएस के एक-एक कार्य को देख रही हूं। वह इतना शोभनीय है और इतना प्रभावित करने वाला है कि सनातन संस्कृति को लेकर विश्वास और पुख्ता हो जाता है। कई बार हम किसी चीज़ के बारे में बिना जाने उसके विरोध में बातें करते हैं।
मुझे याद है एक बार मैं जेएनयू में पर्यावरण के उद्बोधन में बच्चों से बात कर रही थीं। तब एक बच्चे ने सवाल किया कि हमें रामचरित मानस या भगवत गीता पढ़ने के लिए क्यों कहा जाता है? तब मैंने कहा कि- किसने कहा? मैंने तो चर्चा नहीं की। फिर मेरे मन में एक सवाल उठा। मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने इसे पढ़ा है उसने कहा- नहीं। तब मैंने कहा कि जब आपने पढ़ा ही नहीं है तो इसके प्रति द्वेष क्यों।
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सनातन संस्कृति ये नहीं सिखाती बिना किसी चीज़ को जाने उसके विरोध में राय बनाई जाए। जो काम पुरुष कर सकता है, वो सब काम मातृशक्ति भी कर सकती है, लेकिन जो काम महिलाएँ कर सकती हैं, वो सब काम पुरुष नहीं कर सकते। महिलाओं के बिना समाज की पूर्ण शक्ति सामने नहीं आएगी। संतोष यादव की इस बात को बल देते हुए मोहन भागवत ने भी कहा कि हमें महिलाओं के साथ समानता का व्यवहार करने और उन्हें अपने निर्णय स्वयं लेने की स्वतंत्रता देकर सशक्त बनाने की आवश्यकता है। जो सब काम मातृ शक्ति कर सकती है वह सब काम पुरुष नहीं कर सकते, इतनी उनकी शक्ति है और इसलिए उनको इस प्रकार प्रबुद्ध, सशक्त बनाना, उनका सशक्तीकरण करना और उनको काम करने की स्वतंत्रता देना और कार्यों में बराबरी की सहभागिता देना अहम है।
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संघ के आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में संतोष यादव की उपस्थिति और उनके वक्तव्य का विमर्श अभी लंबा चलेगा लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि इस सामाजिक संतुलन की रणनीति के परिणाम किस रूप में मिलते हैं, यह देखने लायक होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक का निजी विचार हैं)