Mahashivratri 2023: महादेव को भोलेनाथ कहा जाता है, क्योंकि वह भक्तों की पूजा से बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं। करुणा उनके हृदय से निकलती है। ऐसे में शुद्ध मन और पूरे विधि-विधान से उनकी पूजा निश्चित रूप से फल देती है। इस शिवरात्रि (Mahashivaratri) पर 30 साल के बाद भगवान शिव की पूजा का विशेष योग बन रहा है। दरअसल इस बार शिवरात्रि (Mahashivaratri) शनिवार को को है। शिव प्रदोष होने के कारण भगवान शिव की पूजा विशेष फलदाई होगी।
महाशिवरात्रि 2023 (Mahashivaratri) तिथि
पंचांग के आधार पर हर साल फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि होती है।
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि का शुभारंभ: 18 फरवरी, रात 08:02 बजे से
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि की समाप्ति: 19 फरवरी, शाम 04:18 बजे पर
महाशिवरात्रि 2023 (Mahashivaratri) के शुभ समय
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 05:15 बजे से सुबह 06:06 बजे तक
अभिजित मुहूर्त: दोपहर 12:13 बजे से दोपहर 12:58 बजे तक
अमृत काल: दोपहर 12:02 बजे से 01:27 बजे तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:28 बजे से 03:13 बजे तक
निशिता मुहूर्त: रात 12:09 बजे से देर रात 01:00 बजे तक
सर्वार्थ सिद्धि योग: शाम 05:42 बजे से अगली सुबह 06:56 बजे तक
महाशिवरात्रि 2023 निशिता काल पूजा मुहूर्त
18 फरवरी, रात 12:09 बजे से देर रात 01:00 बजे तक
महाशिवरात्रि 2023 दिन का चौघड़िया
शुभ-उत्तम मुहूर्त: सुबह 08:22 बजे से सुबह 09:46 बजे तक
चर-सामान्य मुहूर्त: दोपहर 12:35 बजे से दोपहर 02:00 बजे तक
लाभ-उन्नति मुहूर्त: दोपहर 02:00 बजे से दोपहर 03:24 बजे तक
अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त: दोपहर 03:24 बजे से शाम 04:49 बजे तक
महाशिवरात्रि 2023 रात्रि का चौघड़िया
लाभ-उन्नति मुहूर्त: शाम 06:13 बजे से शाम 07:49 बजे तक
शुभ-उत्तम मुहूर्त: रात 09:24 बजे से रात 10:59 बजे तक
अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त: रात 10:59 बजे से देर रात 12:35 बजे तक
लाभ-उन्नति मुहूर्त: 19 फरवरी सुबह 05:21 बजे से सुबह 06:56 बजे तक
महाशिवरात्रि का महत्व
भागवत कथा प्रवक्ता, ज्योतिषी और वास्तुशास्त्री आचार्य राजेन्द्र तिवारी ने बताया कि शिव और शक्ति के मिलन के महापर्व को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। जगत में प्रकृति और पुरुष के बीच के संबंध को परिभाषित करता है और इससे हमें यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि हमें अपनी प्रकृति को तनिक भी नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। क्योंकि वह माता स्वरूप होकर जीवन में हमारा पालन-पोषण करती हैं।
शिव पुराण के अनुसार, जो भक्त महाशिवरात्रि पर जीवधारी जितेंद्रिय रहकर और निराहार बिना जल ग्रहण किए शिव आराधना करते हैं, उन्हें समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि के व्रत से कई गुना पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
देवों के देव महादेव और माता पार्वती के मिलन का यह दिन अत्यंत ही पवित्र और पावन होता है। इस दिन निराहार रहकर भगवान शिव की उपासना करने का महत्व है। भगवान शिव ने ही जगत की रक्षा के लिए हलाहल विष का पान किया था और वह नीलकंठ हो गए थे। शिव और शक्ति के एकात्म रूप अर्धनारीश्वर की अवधारणा हमें अपने जीवन में आत्मसात करनी चाहिए।
शिवरात्रि के पर्व को भगवान शिव और माता पार्वती के विवाहोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। परम कल्याणकारी सदाशिव और परम कल्याणकारिणी मां पार्वती के पवित्र मिलन को परिभाषित करता महाशिवरात्रि का त्योहार हमें जीवन में सबकुछ प्रदान करने का सामर्थ्य को दर्शाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की एकसाथ पूजा करने से जन्म जन्मांतर के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
महाशिवरात्रि पूजा का शुभ मुहूर्त और पारण का समय
आचार्य राजेन्द्र तिवारी ने बताया कि वैसे तो महाशिवरात्रि की पूजा पूरे दिन और चारों पहर होती है। लेकिन इस दिन निशीथ काल में पूजा का समय रात्रि 12:10 से रात्रि 1:01 तक रहेगा। वहीं व्रत का पारण अगले दिन 19 फरवरी को सुबह 6:57 से दोपहर 3:25 तक किया जा सकेगा। यदि आप प्रहर के आधार पर पूजा करना चाहते हैं तो, प्रथम प्रहर सायंकाल 6:14 से रात्रि 9:25 तक रहेगा। द्वितीय प्रहर रात्रि 9:25 से मध्य रात्रि 12:36 तक रहेगा। तृतीय प्रहर मध्य रात्रि 12:36 से प्रातः काल 3:47 तक रहेगा और चतुर्थ प्रहर 3:47 बजे से 6:57 बजे तक रहेगा।
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महाशिवरात्रि व्रत नियम
महाशिवरात्रि के व्रत से एक दिन पूर्व एक ही समय भोजन करना चाहिए और शिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान ध्यान करके व्रत करने का संकल्प ग्रहण करना चाहिए। मन ही मन भगवान शिव से अपनी मनोकामना कहनी चाहिए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करनी चाहिए।
आचार्य राजेन्द्र तिवारी ने बताया महाशिवरात्रि का व्रत पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ करना चाहिए। इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इस दिन सुबह के बाद संध्याकाल में पुन: स्नान करें और शिवजी के मंदिर जाकर पूजा करें। महाशिवरात्रि पर रात्रिकाल में भी पूजा करने का महत्व है और फिर अगले दिन स्नान के बाद व्रत का पारण किया जाता है। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि व्रत का पारण चतुर्दशी तिथि समाप्त होने के पूर्व ही कर लें।
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