Lucknow News: पंच तत्व में संतुलन के साथ ही उन्हें यदि प्रदूषण से मुक्त रखने और उनके उपयोग का संयम रखा जाए तो हमारा समाज और हम सभी सुख, शांति और समृद्धि का जीवन सकेंगे। उक्त विचार पंच तत्व और लाइफ कार्यक्रम के समापन के मौके पर अध्यक्षता कर रहे लोक भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बृजेंद्र पाल सिंह ने व्यक्त किया। उन्होंने कहा, आकाश में ही हम स्थिर हैं, हमारे चारों ओर आकाश व्याप्त है। आकाश में ही सूरज, चंद्रमा, तारे, आकाश गंगा और अनंत निहारिकायें स्थित हैं। हम जो कुछ सोचते हैं, विचार करते हैं, वह सूक्ष्म तरंगों के रूप में आकाश में समाहित होकर सुरक्षित रहता है। हम जो भी स्वर निकालते हैं, बोलते हैं वह सब आकाश में सुरक्षित है।

आकाश स्वच्छ रहे इस हेतु हमारे पूर्वजों ने ध्यान की साधना सिखाई, जिससे हम अपने विचारों को संयमित रख सकें। हमें आराधना का मार्ग दिखाया, जिसके माध्यम से हम सद विचार और सद वाणी से आकाश को सुन्दर बनाये रख सकें। आकाश अनंत है और उसमें नाद ब्रह्म का घोष निरन्तर होता रहता है। जिसे हम ‘प्रणव’ या ‘ओम’ नाद के रूप में जानते हैं। उसके ध्यान से हम आकाश के साथ एकात्म हो सकते हैंI

वायु के बारे में प्रकाश डालते हुए उन्होंने कि वायु की उत्पत्ति आकाश से हुई है अतः यदि आकाश स्वच्छ व स्वस्थ रहेगा तो उससे उत्पन्न होने वाली वायु भी सुखद होगी। शुद्ध वायु के लिए प्रकृति ने हमें वृक्षों का उपहार दिया, अतः वायु की शुद्धता और स्वच्छता के लिए अधिकाधिक पेड़ लगाएं। जैसे प्रथ्वी और शरीर में प्रकृति ने 72 प्रतिशत पानी होना सुनिश्चित किया है उसी प्रकार 6 प्रतिशत वायु तत्व के लिए प्रथ्वी के 72 प्रतिशत भू भाग पर पर हरियाली होना आवश्यक हैI

अग्नि के बारे में प्रकाश डालते हुए कहा, अग्नि तत्व का प्रादुर्भाव वायु से हुआ है। वायु के स्वच्छ स्वस्थ्य होने से अग्नि भी संतुलित रहेगी। अग्नि से ताप है, प्रकाश है और ऊर्जा है, जिससे हमारी प्रथ्वी की समस्त प्रकृति संचालित होती है, जिसका संतुलन हरियाली और स्वच्छ वायु से होता है। अतः हम अवश्य स्तर तक हरियाली सुरक्षित रखें और कोई ऐसी गतिविधि न करें जिससे वायु प्रदुषित होती हो। उसके संतुलन के लिए हमारे ऋषियों नें हमे यज्ञ का विधान दिया हैI
इस क्रम में बताया कि जल तत्व की उत्पत्ति अग्नि तत्व से हुई है। अतः समुचित जल हेतु अग्नि तत्व का संतुलन आवश्यक है, जिसका साधन यज्ञ के रूप में हमारे पूर्वजों ने हमें पहले से ही दिया है। हमारे शरीर में जहाँ 72 प्रतिशत जल तत्व है तो प्रथ्वी पर भी 72 प्रतिशत जल है। जो निश्चित है, न कम होता है न अधिक। उसकी पंच तत्वों की उपस्थित के अनुरूप उसके रूप में परिवर्तन आता है। कभी पानी, कभी बादल तो कभी बर्फ के रूप में वह उपलब्ध रहता है और उसका भी एक समुचित चक्र है। उसके चक्र में व्यवधानों से कभी अति वर्षा जो जल प्रलय का रूप लेती है। कभी सूखा और कभी बर्फबारी जो पृथ्वी को हिम युग में ले जा सकती है। अतः हमें सुखी और समृद्धि के लिए जल के संतुलित स्वरूप का बने रहना आवश्यक है। इस हेतु प्रदूषण मुक्त वातावरण, हरियाली युक्त धरती चाहिए, जो हमारा दायित्व है। इसके साथ ही जल का इष्टतम उपयोग और भूगर्भ जल भरण भी आवश्यक है। जिसके लिए शोषण नहीं दोहन का सिधांत हमारे पूर्वजों ने हमें दिया है।

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इसी तरह पृथ्वी तत्व का उद्भव जल से हुआ है। इसलिए पृथ्वी के लिए जल ही जीवन है। पृथ्वी सगंधा है। पृथ्वी अन्न पूर्णा है। अतः पृथ्वी अपने गुणों से युक्त रखकर सम्पूर्ण प्रकृति का पोषण स्वस्थ्य विधि से निरन्तर करती रहे, जिसमें मानव जीवन भी सम्मिलित है। इसलिए पृथ्वी का स्वस्थ्य रहना अर्थात पोषकता से वह परिपूर्ण बनी रहे य़ह हमारा दायित्व है। पिछले वर्षों में मनुष्य ने उसे असंतुलित किया है। रसायनिक उर्वरकों और कीट नाशक रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से भूमि की उर्वरता को हमने क्षीण किया है, साथ ही जैव विविधता को बहुत हानि पहुँचाई है। इसके लिए प्रकृति ने पहले से ही हमें गौ रूपी वरदान दिया हुआ है। जिस पिछले कुछ वर्षों से हम भूल गए हैं। यदि हम अपना और अपने समाज का भविष्य उज्जवल देखना चाहते हैं, तो हमें गौ पालन, गौ वंश संवर्धन और गौ आधारित प्राकृतिक खेती के मार्ग पर चलना ही होगा।

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