सूरज बाहर, तारे बाहर,
पवन अगन जल चंदा बाहर।
महल अटारी, नौकर चाकर,
धन-दौलत का धंधा बाहर।
बप्पा बाहर अम्मा बाहर,
नाना-नानी-मम्मा बाहर।
बेटी-बेटा भगनी भाई,
कामी और निक्कमा बाहर।
वेद उपनिषद पोथी बाहर,
होती बातें थोथी बाहर।
पंडित और पुजारी बाहर,
कभी न होत उजारी बाहर।
मंदिर बाहर, ग्रन्थ है बाहर,
तीर्थ धाम बहु पंथ बाहर।
तन में बैठा मन का घोड़ा,
फिरता रहता जग में बाहर।
– सतीश सृजन
इसे भी पढ़ें: मुनिया कॉलेज जाना चाहती थी
इसे भी पढ़ें: बहुत उदास मन