आचार्य विष्णु हरि सरस्वती
आज मैंने योग नहीं चिंतन किया। जब नरेन्द्र मोदी से लेकर करोड़ों लोग योग कर रहे हैं तब मैं चिंतन कर रहा था। आखिर क्यों? योग पर मेरी समझ थोड़ी दूसरी है, आपके लिए नकरात्मक जैसा है। पर मैं वर्तमान में जीता हूं, वास्तविकता में सक्रिय रहता हूं। योग गुरु रामदेव रामलीला मैदान से सलवार शमीज पहन कर यानी औरत बन कर भाग गया था। उसने भूख हड़ताल की थी पर चौबीस घंटे के पहले ही उसकी हालत खराब हो गयी थी। स्वास्थ्य को देखते हुए पुलिस ने रामदेव की भूख हड़ताल तोड़वा दी थी।
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योग के महता मैंने बहुत सुनी है पर महता के अनुसार गुण और शक्ति किसी योगकर्ता में मैंने नहीं देखी। जिस प्रकार सर्प में मनी होती है, उस पनी को पाने के लिए दुनिया में लाखों लोग स्वाहा हो गये पर आज तक दुनिया में एक भी मनी नहीं मिली। धर्म के लिए लड़ने वाले जितने भी योद्धा थे उनमें से कोई योगकर्ता नहीं थे। हिन्दुत्व के लिए लड़ने वाले कोई नामी-गिरामी योगकर्ता नहीं रहे हैं। सभी सामान्य लोग रहे हैं। योगकर्ता हिन्दुत्व के लिए लड़ने की शक्ति क्यों नहीं दिखा पाते? इसके विपरीत आप मुसलमानों को देख लीजिये। एक मुसलमान खड़ा होकर सैकड़ों योगकर्ता और हिन्दुत्व के प्रहरियों का सामना कर लेता है। मदरसे का एक मुस्लिम बच्चा दर्जनों गुरुकुल के बच्चे को सीधे रौंद डालता है। अगर आपको विश्वास नहीं है तो पांच मुस्लिम बच्चों के सामने दर्जनों गुरुकुल के बच्चे को खड़ा कर दो, सभी गुरुकुल के बच्चे मार खाकर लौट आयेंगे।
शक्ति दिगाम में होती है। जब दिमाग में किसी चीज के प्रति संघर्ष की भावना व क्षमता नहीं होगी तो फिर लाख योग कर लो, कोई लाभ नहीं है। इसीलिए मैंने आज योग नहीं कर इस पर चिंतन किया कि भारत को कैसे इस्लाम का घर बनने से रोका जाये, जिहादी और हिंसक लोगों से भारत को कैसे बचाया जाये। मैं बहुत बड़ा विद्वान नहीं हूं। पर वर्तमान परिस्थितियों में चिंतन करने का प्रयास करता हूं।
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