Important information: सनातन धर्म में सूतक और पातक नाम से दो परंपराएं प्रचलित हैं। किसी के भी घर-परिवार में कोई शांत हो जाते हैं या स्वर्ग चला जाता है तो उस परिवार या घर में सूतक लग जाता है। मृतक के जितने भी खून के रिश्ते के बंधु बांधव होते हैं, उनक सभी के घरों में सूतक माना जाता है। क्या होता है या सूतक और कितने समय तक का होता है। जानिए इस संबंध में संक्षिप्त जानकारी।

क्या होता है सूतक और पातक

सूतक का संबंध जन्म-मरण के कारण हुई अशुद्धि से है। जन्म के अवसर पर जो नाल काटा जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया के दौरान जो हिंसा होती है, उसमें लगने वाला दोष या पाप प्रायश्चित के रूप में पातक माना जाता है। इस तरह मरण से फैली अशुद्धि से सूतक और दाह संस्कार से हुई हिंसा के दोष या पाप से प्रायश्चित स्वरूप पातक माना जाता है।

जिस तरह घर में बच्चे के जन्म के बाद सूतक लगता है उसी तरह गरुड़ पुराण के अनुसार परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु होने पर लगने वाले सूतक को ‘पातक’ कहते हैं। सूतक और पातक की परिभाषा इससे अलग भी है। जैसे व्यक्ति की मृत्यु होने के पश्चात गोत्रज तथा परिजनों को विशिष्ट कालावधि तक अशुचित्व और अशुद्धि प्राप्त होता है, उसे सूतक कहते हैं। अशुचित्व अर्थात अमंगल और शुद्ध का विपरित अशुद्धि होता है।

कब-कब लगता है सूतक

जन्म काल, ग्रहण काल, स्त्री के मासिक धर्म का काल और मरण काल में सूतक और पातक का विचार किया जाता है। सभी के काल में सूतक के दिन और समय का निर्धारण अलग-अलग होता है।

सूतक-पातक का समय

मृत व्यक्ति के परिजनों को 10 दिन तथा अंत्यक्रिया करने वाले को 12 से 13 दिन (सपिंडीकरण तक) सूतक पालन कड़ाई से करना होता है। मूलत: यह सूतक काल सवा माह तक चलता है। सवा माह तक कोई किसी के घर नहीं जाता है। सवा माह अर्थात 37 से 40 दिन। 40 दिन में नक्षत्र का एक काल पूर्ण हो जाता है। घर में कोई सूतक (बच्चा जन्म हो) या पातक (कोई मर जाय) हो जाय 40 तक का सूतक या पातक लग जाता है।

ऐसा भी कहा जाता है कि सात पीढ़ियों पश्चात 3 दिन का सूतक माना जाता है, लेकिन यह निर्धारित करना कठिन है। मृतक के अन्य परिजन (मामा, भतीजा, बुआ इत्यादि परिजन) कितने दिनों तक सूतक का पालन करें, यह संबंधों पर निर्भर है तथा उसकी जानकारी पंचांग व धर्मशास्त्रों में दी जाती है। लेकिन जिसका संबंध रक्त से है उसे उपर बताए नियमों अनुसार ही चलना होता है।

जन्म के बाद नवजात पीढ़ियों को हुई अशुचिता 3 पीढ़ी तक 10 दिन, 4 पीढ़ी तक 10 दिन, 5 पीढ़ी तक 6 दिन गिनी जाती है। एक रसोई में भोजन करने वालों के पीढ़ी नहीं गिनी जाती है। वहां पूरा 10 दिन तक का सूतक होता है। प्रसूति नवजात की मां को 45 दिन का सूतक रहता है। प्रसूति स्थान 1 माह अशुद्ध माना जाता है। इसीलिए कई लोग अस्पताल से घर आते हैं तो स्नान करते हैं। पुत्री का पीहर में बच्चे का जन्म में 3 दिन का, ससुराल में जन्म दे तो उन्हें 10 दिन का सूतक रहता है।

मरण के अवसर पर दाह संस्कार में इत्यादि में हिंसा होती है। इसमें लगने वाले दोष या पाप के प्रायश्चित के स्वरूप पातक माना जाता है। जिस दिन दाह संस्कार किया जाता है, उस दिन से पातक के दिनों की गणना होती है। न कि मृत्यु के दिन से। अगर किसी घर का सदस्य बाहर है तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है उस दिन तक उसके पातक लगता ही है। अगर 12 दिन बाद सूचना मिले तो स्नान मात्र से शुद्धि हो जाती है।

अगर परिवार की किसी स्त्री का गर्भपात हुआ है तो जितने माह का हुआ है उतने दिन का ही पातक सुतक माना जाता है। तथा घर का कोई सदस्य मुनि, बृम्हचारी संन्यासी है उसे जन्म मरण का सूतक नहीं लगता है। किंतु उसका ही मरण हो जाने पर उसका एक दिन का पातक लगता है।

हम किसी की भी शवयात्रा में जाने से एक दिन, मुर्दा छूने को 3 दिन और मुर्दे को कन्धा देने वाले को 8 दिन की अशुद्धि मानी जाती है। घर में कोई आत्मघात करले तो 6 माह का पातक माना जाता है। छह माह तक वहां भोजन और जल ग्रहण नहीं किया जा सकता। वह मंदिर नहीं जाता और न ही उस घर का द्रव्य मंदिर में चढ़ाया जाता है।

इसी तरह घर के पालतू गाय, भैंस, घोड़ी, बकरी इत्यादि को घर में बच्चा होने पर 1 दिन का सूतक परंतु घर से दूर-बाहर जन्म होने पर कोई सूतक नहीं रहता। बच्चा देने वाली गाय, भैंस और बकरी का दूध, क्रमशः 15 दिन, 10 दिन और 8 दिन तक अशुद्ध रहता है।

सूतक-पातक के नियम

-सूतक और पातक में अन्य व्यक्तियों को स्पर्श न करें।

-कोई भी धर्मकृत्य अथवा मांगलिक कार्य न करें तथा सामाजिक कार्य में भी सहभागी न हों।

-अन्यों की पंगत में भोजन न करें।

-किसी के घर न जाएं और ना ही किसी भी प्रकार का भ्रमण करें। घर में ही रहकर नियमों का पालन करें।

-किसी का जन्म हुआ है तो शुद्धि का ध्यान रखते हुए भगवान का भजन करें और यदि कोई मर गया है तो गरुढ़ पुराण सुनकर समय गुजारें।

-सूतक या पातक काल समाप्त होने पर स्नान तथा पंचगव्य (गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का मिश्रण) सेवन कर शुद्ध हो जाएं।

-सूतक पातक जनन एवं मृत्यु की अवधि में देव शास्त्र गुरु, पूजन प्राक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं सभी वर्जित होती है।

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जिस व्यक्ति या परिवार के घर में सूतक-पातक रहता है, उस व्यक्ति और परिवार के सभी सदस्यों को कोई छूता भी नहीं है। पुर्ण रुप से वहां का अन्न-जल भी ग्रहण नहीं करना चाहिए देवता का स्पर्श दान, पूजन सभी परिवार के भी मंदिर एवं किसी के घर भी नहीं जा सकता है और न किसी का भोग चरणामृत या भोग प्रसाद नही ग्रहण करना चाहिए। अवश्य ही सभी को पालन करना चाहिए।

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