विपक्षी गठबंधन इंडिया (I.N.D.I.A) की तीसरी बैठक हाल ही देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले महानगर मुंबई में संपन्न हुई। विपक्षी गठबंधन की ये तीसरी बैठक थी। पहली बैठक जून में पटना में, जबकि दूसरी बैठक जुलाई में बेंगलुरु में हुई थी। जहां इसे इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस (इंडिया) (Indian National Development Inclusive Alliance) नाम दिया गया। तीन बैठकों के बाद भी विपक्ष तीन सवालों से लगातार मुंह चुरा रहा है या फिलवक्त वो इन सवालों का जवाव ढूंढ नहीं पाया है। पहला प्रश्न यह है कि प्रधानमंत्री पद का चेहरा कौन? दूसरा प्रश्न है, सीट बंटवारा कब तक? और अंतिम एवं तीसरा प्रश्न है कि गठबंधन का संयोजक कौन?
मुंबई बैठक में एक बार फिर ये भाव उभरकर आया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए गैर भाजपाई दलों की एकता ही एकमात्र उपाय है। विपक्ष की तीसरी बैठक में तीन संकल्पों पर सहमति बनी। इंडिया के सभी दल लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ेंगे। सीट शेयरिंग के बारे में सभी दल जल्द ही सहमति से फैसला लेंगे। सभी पार्टियों के नेताओं से कहा गया कि वह सहयोगी दलों को कितनी सीटें दे सकते हैं, इस पर जल्द से जल्द अपना पक्ष रखें। इंडिया के नेता पूरे देश में एक साथ रैली करेंगे। विपक्षी गठबंधन की तीसरी बैठक से हासिल क्या हुआ ये कह पाना तो कठिन है, लेकिन जुड़ेगा भारत जीतेगा इंडिया, जैसा नारा जरूर तय हो गया।
इंडिया गठबंधन की ये सबसे बड़ी चुनौती इस समय चल रही है। कैमरे के सामने सभी एकजुट होने का दावा जरूर कर रहे हैं, लेकिन अंदर खाने काफी कुछ चल रहा है। उन तमाम गतिविधियों की वजह से ही अब तक कई चीजों पर आम सहमति बनती नहीं दिख रही है। सबसे पहले इंडिया को ये तय करना था कि उसका संजोयक कौन बनने जा रहा है। कोई बहुत बड़ा सवाल नहीं था, इस पर ज्यादा विवाद भी नहीं होना था। लेकिन 26 पार्टियों वाला ये विशाल कुनबा इस सवाल का जवाब भी नहीं खोज पाया। संयोजक के नाम पर एक राय न होने की वजह साफ है कि विभिन्न नेताओं की महत्वाकांक्षाओं में टकराव है। वैसे तो सभी नेता कहते रहे हैं कि वे इस पद हेतु दावेदार नहीं हैं, किंतु वास्तविकता ये है कि कांग्रेस येन केन प्रकारेण अपना संयोजक बनाना चाहती है, किंतु आम आदमी पार्टी जैसे छोटे दल भी कांग्रेस की अगुआई में काम करने के इच्छुक नहीं हैं।
इंडिया गठबंध के संयोजक के रूप में सबसे पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम चल रहा था। उनकी तरफ से क्योंकि इस विपक्षी एकता की रूपरेखा रखी गई। उन्होंने ही शुरुआत में कई नेताओं से मुलाकात कर सियासी पिच खड़ी करने की तैयारी की, ऐसे में उन्हें ये मौका मिल सकता था। लेकिन जब तक ये अटकलें और ज्यादा जोर पकड़ती, नीतीश ने मुंबई बैठक से पहले ही साफ कर दिया कि उन्हें इस पद की कोई लालसा नहीं है। वे तो किसी भी पद की उम्मीद में नहीं बैठे हैं। उन्हें तो बस विपक्ष को एकजुट करना है। जबकि असलियत यह है कि नीतीश कुमार संयोजक बनने के लिए लालायित हैं। लेकिन अंदरूनी तौर पर बिहार सरकार में ही उनके सहयोगी लालू प्रसाद यादव उनके नाम पर तैयार नहीं हैं। लालू नीतीश को राष्ट्रीय नेता बनते नहीं देखना चाहते।
इसी कड़ी में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम ने जोर पकड़ना शुरू किया। सूत्रों से यहां तक खबर मिलने लगी कि मुंबई बैठक में मल्लिकार्जुन खड़गे को ये अहम जिम्मेदारी दे दी जाएगी। लेकिन ऐन वक्त पर पता चला कि मुंबई बैठक में संयोजक का एलान नहीं किया जाएगा। एक परेशानी ये भी है कि यदि मल्लिकार्जुन खड़गे या नीतीश संयोजक बनते हैं, तो ये शरद पवार खेमे को ये नागवार गुजरेगा। अभी तक हो रही देरी को लेकर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया गया है, किसी तरह का कारण भी सामने नहीं आया है। इसी वजह से जानकार मान रहे हैं कि अंदरूनी झगड़ों से बचने के लिए अब तक इंडिया गठबंधन के संयोजक का एलान नहीं किया गया है। एक के नाम पर मुहर लगने का मतलब है, दो अन्य का नाराज होना। इस स्थिति से लगातार बचने के चलते नाम के एलान से भी खुद को दूर रखा जा रहा है। ऐसे में इंडिया के लिए संयोजक तय करना मुश्किल होता जा रहा है।
इंडिया गठबंधन के साथ चेहरे को लेकर भी दुविधा खड़ी हो रही है। चेहरे से मतलब है कि पीएम मोदी के खिलाफ किसे विपक्ष अपना पीएम उम्मीदवार दिखाने वाला है। अब ये सवाल भी अपने आप में बड़े सियासी तूफान को जन्म दे सकता है। इस बारे में अनेक राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भले ही पचास से ज्यादा नेता इंडिया की बैठक में शामिल होते हैं, किंतु जब मोदी के मुकाबले के लिए किसी को सामने लाने का सवाल उठता है तब एक खालीपन महसूस होने लगता है। गठबंधन में ये डर भी देखा जा रहा है कि संयोजक को प्रधानमंत्री पद का चेहरा मान लिए जाने से पूरा मुकाबला इकतरफा हो जाएगा, क्योंकि चेहरे और व्यक्तित्व के मामले में प्रधानमंत्री मोदी पूरे विपक्ष पर भारी पड़ते हैं।
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संयोजक के नाम पर आम राय और विपक्ष का चेहरा कौन होगा के अलावा ऐसी ही परेशानी सीटों के बंटवारे को लेकर है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने बैठक में ये मांग कर डाली कि इस मुद्दे पर तत्काल फैसला किया जाए। लेकिन उनकी बात अनसुनी कर दी गई। जिस तरह की जानकारी अंदरखाने से आई हैं उनके अनुसार कांग्रेस संयोजक और सीट बंटवारे को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव तक टालना चाहती है। दरअसल उसे उम्मीद है कि वह कर्नाटक की तरह से ही उक्त तीनों राज्य जीतने जा रही है। और तब संयोजक और सीट बंटवारे के निर्णय में उसका हाथ ऊपर रहेगा। इस प्रकार भले ही राहुल गांधी कितनी भी उदारता दिखाते हुए विपक्षी एकता के प्रति समर्पण भाव व्यक्त करें, किंतु गठबंधन का स्वरूप नेचुरल कम आर्टिफिशियल ज्यादा नजर आ रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो ये मजबूरी से उपजी जरूरत है। यही वजह है कि मोदी विरोध के नाम पर एक साथ बैठने के बाद भी नेता और सीटों के बंटवारे पर निर्णय नहीं हो पा रहा।
सीटों के बंटवारे को जिस तरह से कांग्रेस टरका रही है, उसकी वजह से भी अविश्वास बरकरार है। आम आदमी पार्टी जिस प्रकार से दबाव बना रही है उससे बाकी पार्टियां भी परेशान हैं, क्योंकि केजरीवाल की महत्वाकांक्षा प्रधानमंत्री बनने की है, जिसे न कांग्रेस भाव देगी, न ही ममता बनर्जी और नीतीश कुमार। जिन तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव आगामी महीनों में होने जा रहे हैं, उनमें आम आदमी पार्टी जिस प्रकार से पैर पसार रही है, उससे कांग्रेस परेशान है। लेकिन केजरीवाल को रोकने का साहस भी नहीं बटोर पा रही। ऐसा लगता है संसद के विशेष सत्र की घोषणा ने गठबंधन को रुको, देखो और फिर आगे बढ़ने के लिए बाध्य कर दिया है।
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मुंबई में हुई बैठक के पहले जो माहौल बनाया गया उसे देखकर लग रहा था कि उसमें ठोस निर्णय होंगे, किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ और पांच सितारा होटल में बैठकर गरीबी और बेराजगारी पर केंद्र सरकार की आलोचना कर बैठक खत्म हो गई। एक देश एक चुनाव की चर्चाओं ने विपक्षी गठबंधन की चुनौतियां को बढ़ाने का काम किया है। जिस तरह से देश की राजनीति तेजी से करवट ले रही है, ऐसे में देश की जनता के समक्ष अपनी विश्वसनीयता और साख कायम रखने के लिए विपक्ष को इन सवालों का जवाब जल्द ढूंढ लेना चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)