Holi 2023: सबकों एक रंग में रंगने वाला पर्व होली के त्योहार (holi festival) में अब कुछ दिन शेष रह गए हैं। होली की तैयारी पूरे देश में देखी जा रही है। होली ऐसा त्योहार (Festival of Holi) है देश के लगभग हर हिस्से में मनाया जाता है। इसे दिलों को जोड़ने वाला त्योहार भी कहा जाता है। क्योंकि इस दिन लोग सारी कड़वाहट भूलकर एक-दूसरे को रंग गुलाल लगाते हैं और गले मिलते हैं। वहीं इस बने स्वादिष्ट पकवान रंग का मजा और बढ़ा देते हैं। होली (holi festival) की रौनक हर जगह देखने को मिलती है, लेकिन हम यहां भारत के उन राज्यों के शहरों के बारे में बता रहे हैं, जहां यह पर्व नहीं मनाया जाता। इसके पीछे सदियों पुरानी मान्यताएं हैं, जिसका निर्वाहन अभी भी लोग कर रहे हैं। वैसे इस बार होली 8 फरवरी को मनाई जाएगी।
उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग शहर
देवभूमि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में दो ऐसे गांव हैं, जहां पर होली का पर्व नहीं मनाया जाता है। बताया जाता है कि इन दोनों गांवों में लगभग 150 वर्षों से होली (holi festival) नहीं मनाई गई है। रुद्रप्रयाग के क्विली और कुरझान गांव के लोगों का मानना है कि यहां स्थित देवी त्रिपुर सुंदरी को शोर-शराबा नहीं पसंद है। बताते चलें कि रुद्रप्रयाग में अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के मिलन के चलते इसे संगम स्थल भी कहा जाता है। लेकिन यहां पर रहने वाले लोग देवी त्रिपुर सुंदरी नाराज न हो जाएं इसलिए शोर-शराबे वाले त्योहारों को नहीं मनाते।
गुजरात का बनासकांठा जिला
देश का गुजरात अपने आप में ऐसा है जहां आपको अलग तरह कल्चर देखने मिलता है। गुजरात रंगीला राज्य होने के बावजूद भी यह के बनासकांठा जिले का एक गांव ऐसा है, जहां होली (Festival of Holi) वाले दिन सन्नाटा रहता है। बनासकांठा जिले के रामसन गांव में होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है। जानकारों की मानें तो इस गांव में करीब 200 वर्षों से होली का त्योहार (holi festival) नहीं मनाया गया है। बताया जाता है कि इस गांव को कुछ संतों ने श्राप दे दिया था, जिसके चलते यहां के लोगों ने होली का त्योहार मनाना बंद कर दिया। लोगों को डर है कि अगर वह होली का त्योहार मनाएंगे, तो संतों के श्राप के चलते कुछ अनहोनी हो सकती है।
तमिलनाडु
वैसे तो दक्षिण भारत में बहुत कम लोग होली का त्योहार मनाते हैं। वहीं उत्तर भारत में होली की धूम रहती है। हर वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया जाता है। जबकि इसी दिन दक्षिण भारत के लोग मासी मागम का स्वागत करते हैं। इसे एक पवित्र दिन माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन पूर्वज नदियों, तालाब और पानी के टैंकों में डुबकी लगाने के लिए धरती पर आते हैं।
इसे भी पढ़ें: कब है होली जानें सही डेट और होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
झारखंड का बोकारो जिला
इसी तरह झारखंड के बोकारो जिले में एक गांव ऐसा है जहां होली त्योहार नहीं मनाया जाता है। बताया जाता है कि दुर्गापुर नाम के इस गांव में करीब 100 वर्षों से होली नहीं मनाई गई है। लोगों का कहना है कि होली के दिन इस गांव के राजा के बेटे की मृत्यु हो गई थी। उसके बाद होली वाले दिन ही राजा की भी मौत हो गई। कहा जाता है कि मरने से पहले राजा ने अपनी प्रजा से होली का त्योहार न मनाने को कहा था। इसके बाद से इस गांव में होली का त्योहार मनाना बंद हो गया। वहीं अगर इस गांव के लोगों को होली खेलनी होती है तो वह दूसरे गांवों में चले जाते हैं।
इसे भी पढ़ें: नागालैंड और त्रिपुरा में बीजेपी को पूर्ण बहुमत