मातृभाषा वैयक्तिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि का बोध कराती है। समाज को स्वदेशी भाव-बोध से सम्मिलित कराते हृए वैश्विक धरातल पर राष्ट्रीय स्वाभिमान की विशिष्ट पहचान दिलाती है। किसी भी देश का विकास तभी संभव है, जब उसके पास एक सशक्त भाषा हो। हिंदी एक सशक्त भाषा है। इसकी ताकत पूरा विश्व मानता है। वर्तमान में 40 से अधिक देशों के विश्वविद्यालयों में हिंदी के पाठ्यक्रम के तहत भाषा के अलावा, भारतीय संस्कृति, इतिहास, समाज आदि के बारे में पढ़ाया जाता है। उत्तरी अमेरिका में 125 से ज्यादा हिंदी पढ़ाने वाले केंद्र हैं, जबकि रूस में 7 हिंदी शोध संस्थान हैं। अमेरिका के येन विश्वविद्यालय में वर्ष 1815 से हिंदी पढ़ाई जाती है। इसका मतलब है कि विश्व मंच पर हिंदी सदियों पहले से ही विराजमान है। हिंदी भारत की अत्यंत प्राचीन भाषा ‘संस्कृत’ की उत्तराधिकारिणी है। विश्व के लगभग सौ से भी ज्यादा देशों में हिंदी का या तो जीवन के विविध क्षेत्रों में प्रयोग होता है अथवा उन देशों में हिंदी के अध्ययन एवं अध्यापन की सम्यक व्यवस्था है। चीनी भाषा के बाद हिंदी विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाती है, और जो भाषा जितने ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाएगी, उसकी जिम्मेदारियां भी उतनी ही बढ़ जाती है।
हिंदी के महान साहित्यकार महावीर प्रसाद द्विवेदी ने वर्ष 1912 में कहा था कि देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता और उपयोगिता आज भी सिद्ध है और भविष्य में ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में ये विश्व की सबसे समृद्ध भाषा होगी। यानी आज से लगभग 110 वर्ष पूर्व हमारे लेखकों को ये पता था कि हिंदी, तकनीक के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने में सक्षम है। वैसे देखा जाए तो सचमुच, आज हिंदी के अच्छे दिन हैं। लाल किले की प्राचीर से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक। मगर सही मायनों में तकनीक की ताल पर हिंदी ने अपनी सधी चाल चल दी है। वह आज इतराती हुई चली है। नई पीढ़ी के साथ कदमताल करते हुए। फैशनेबल हिंदी, नई पीढ़ी के पास नए अंदाज में पहुंचती है। उसके अग्रदूत हिंदी की परंपरागत बिरादरी के लोग नहीं हैं। वे भी नहीं हैं, जो हिंदी सेवा के नाम पर अपने अलग टापू बना लेते थे। वे भी नहीं हैं, जो इसके कम पाठक-वाचक होने का रोना रोते रहते हैं। वे तकनीकी संस्थानों, प्रबंधन के संस्थानों तथा ऐसे क्षेत्रों से निकले युवा हैं, जिन्होंने तकनीक के साथ आधुनिक सूचना माध्यमों के जरिये हिंदी की लोकप्रियता को नये आयाम दिये हैं।
आज से पंद्रह साल पहले जब हम हिंदी के भविष्य पर विचार करते थे, तो अनेक लोग कहते थे कि हिंदी का भविष्य तो उज्ज्वल है, लेकिन हमारी लिपि पर बड़ा संकट मंडरा रहा है, क्योंकि उस वक्त मोबाइल यूजर्स अपने संदेश भेजने के लिए रोमन लिपि पर निर्भर रहते थे। लेकिन आज यह समस्या हल हो चुकी है। हिंदी के लिए सबसे उत्साहजनक बात ट्विटर पर उसका बढ़ता प्रयोग है। आज प्रोफेसर, डॉक्टर, नेता, अभिनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, खिलाड़ी सभी हिंदी मं् भी ट्वीट करते हैं और इनका अनुसरण अन्य लोग करते हैं। यह अनुप्रयोग हिंदी के लिए नई संभावनाएं पैदा करेगा। पिछले कुछ वर्षों में हिंदी के इस्तेमाल के दो और नए स्थान देखने को मिले हैं। ये हैं डीटीएच और क्रिकेट के स्कोर बोर्ड। ये दोनों स्थान हमारे सामने हिंदी को नए रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। डीटीएच ने किसी भी चैनल के हिंदी में अनुवाद की सुविधा दे रखी है। पहले क्रिकेट की हिंदी में कमेंट्री निश्चित समय तक ही होती थी, लेकिन अब पूरा खेल हम हिंदी में सुन सकते हैं। इसके साथ ही डिस्कवरी, नेशनल जियोग्राफिक और एनिमल प्लेनेट जैसे चैनल हिंदी के दर्शकों का ज्ञानवर्द्धन कर रहे हैं। सर्वे एजेंसी स्टैटिस्टा ने वर्ष 2019 में अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि इंटरनेट की दुनिया में अंग्रेजी का दबदबा है। अंग्रेजी भाषा में 10 मिलियन वेबसाइट्स हैं और 53 प्रतिशत लोग पूरी दुनिया में इंटरनेट पर अंग्रेजी का इस्तेमाल करते हैं। इंटरनेट पर पूरी दुनिया में चाइनीज भाषा की उपस्थिति सिर्फ 16 फीसदी है, जबकि चाइनीज बोलने वालों की संख्या 1.3 बिलियन है। लेकिन चार वर्षों के बाद आज ये दावा गलत साबित होता दिख रहा है।
अगर हम आंकड़ों में हिंदी की बात करें तो 260 से ज्यादा विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। 64 करोड़ लोगों की हिंदी मातृभाषा है। 24 करोड़ लोगों की दूसरी और 42 करोड़ लोगों की तीसरी भाषा हिंदी है। इस धरती पर 1 अरब 30 करोड़ लोग हिंदी बोलने और समझने में सक्षम हैं। 2030 तक दुनिया का हर पांचवा व्यक्ति हिंदी बोलेगा। यूएई और फिजी जैसे देशों में हिंदी को तीसरी राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। हिंदी की देवनागरी लिपि वैज्ञानिक लिपि मानी जाती है, ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में 18 हजार शब्द हिंदी के शामिल हुए हैं, और सबसे बड़ी बात कि जो तीन साल पहले अंग्रेजी इंटरनेट की सबसे बड़ी भाषा थी, अब हिंदी ने उसे पीछे छोड़ दिया है। गूगल सर्वेक्षण बताता है कि इंटरनेट पर डिजिटल दुनिया में हिंदी सबसे बड़ी भाषा है। गूगल, सेंसस इंडिया और आईआरएस की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार इंटरनेट पर हिंदी की लोकप्रियता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इंटरनेट पर हिंदी पढ़ने वालों की संख्या हर साल 94 फीसदी बढ़ रही है, जबकि अंग्रेजी में 17 फीसदी। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में हिंदी में इंटरनेट उपयोग करने वाले, अंग्रेजी में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों से अधिक हो जाएंगे। एक अनुमान के मुताबिक 2023 तक 24 करोड़ लोग इंटरनेट पर हिंदी का उपयोग करने लगेंगे। 2023 तक 8.7 करोड़ लोग डिजिटल पेमेंट के लिए हिंदी का उपयोग करने लगेंगे, जबकि 2016 में यह संख्या सिर्फ 2.2 करोड़ थी। सरकारी कामकाज के लिए 2016 तक 2.4 करोड़ लोग हिंदी का इस्तेमाल करते थे, जो 2023 में 9.9 करोड़ हो जाएंगे। 2016 में डिजिटल माध्यम में हिंदी समाचार पढ़ने वालों की संख्या 5.5 करोड़ थी, जो 2023 में बढ़कर 14.9 करोड़ होने का अनुमान है।
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तकनीक में हिंदी का प्रसार तेजी से बढ़ा है। साथ ही इंटरनेट के बढ़ते उपयोग की वजह से पूरी दुनिया एक ग्लोबल विलेज में तब्दील हो गई है। डिजिटल तकनीक ने विश्वभर में संचार क्रांति में अभूतपूर्व परिवर्तन ला दिया है। ऐसे में हिंदी में विज्ञान संचार की काफी संभावनाएं हैं, जिससे देश की बहुसंख्य हिंदी आबादी को विज्ञान की समझ उन्हीं की भाषा में दी जा सके। वैज्ञानिक जागरूकता के लिए भी हिंदी काफी प्रभावी रूप में उपयोगी है। ऑनलाइन और डिजिटल संचार माध्यम में निहित अपार संभावनाओं की वजह से यह विज्ञान संचार के किए काफी उपयोगी साबित हो सकती है। डिजिटल माध्यमों के सही उपयोग से युवा वर्ग के बीच विज्ञान का लोकप्रियकरण किया जा सकता है, साथ ही विज्ञान को सरल और सहज तरीके से जनसामान्य तक पहुंचाया जा सकता है।
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वर्तमान और आने वाला समय हिंदी का है। बस कुछ दकियानूसी और अदूरदर्शी सोच वाले ही हिंदी के प्रति नकारात्मक भाव व्यक्त कर रहे हैं। आज के समय में न तो हिंदी की सामग्री की कमी है और न ही पाठकों की। हिंदी का एक मजबूत पक्ष यह भी है कि यह अर्थव्यवस्था की भाषा बन चुकी है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी उपयोगिता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। मशहूर साहित्यकार और स्वतंत्रता सेनानी मौलाना हसरत मोहानी ने भी कहा था कि हिंदी जैसी सरल भाषा दूसरी नहीं है। इसलिए हम सबको ये प्रण लेना चाहिए कि भारतीय एकता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हम सभी हिंदी भाषा के प्रचार एवं प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। हमें भारत को सिर्फ बीपीओ और आउटसोर्सिंग के जरिए तकनीकी विश्व शक्ति नहीं बनाना है, बल्कि उसे एक ज्ञान समाज में तब्दील करना है। तकनीक, भारत में सामाजिक परिवर्तनों तथा आर्थिक विकास का निरंतर चलने वाला जरिया बन सकती है, और हिंदी भाषा की इसमें बड़ी भूमिका होने वाली है।
(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक हैं।)