यूपी सहित 5 राज्यों का रण शुरू होने में एक हफ्ते का प्रचार शेष रह गया है। दस फरवरी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश से मतदान शुरू हो रहा है। गोवा और उत्तराखंड मे 14 फरवरी को वोट डाले जाएंगे। जबकि पंजाब में 20 फरवरी को मतदान होना है। मणिपुर में तीन मार्च तक दो चरणों में वोट पड़ेंगे। उत्तर प्रदेश के चुनाव सात चरणों में 7 मार्च तक होने हैं। इस बार प्रचार अभियान का नजारा बदला हुआ है। डिजिटल प्रचार पर जोर है, अखिलेश और जयंत प्रेस कान्फ्रेंस कर रहे हैं। अमित शाह, जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ सहित भाजपा के नेता घर-घर जाकर सम्पर्क कर रहे हैं। मायावती अब जाकर चुनाव मैदान में सक्रिय होने जा रही हैं। वे न जाने किस रणनीति के तहत यह चुनाव लड़ रही हैं, यह स्पष्ट नहीं है। प्रियंका समेत कांग्रेस के तमाम दिग्गज चुनाव मैदान से नदारद हो चुके है। ले देकर सपा और भाजपा के बीच मुकाबला दिख रहा है।
यूपी के चुनाव आगामी राजनीति की दशा और दिशा तय करेंगे। यह इस चुनाव से स्पष्ट हो जाएगा कि अब जाति की राजनीति का बोलबाला होगा कि धर्म की गोलबंदी रहेगी। किसान और युवा किस हद तक नाराज है यह भी पता चलेगा। भाजपा ने अपना ट्रंप कार्ड चल दिया है। मोदी की डिजिटल रैलियां शुरू हो चुकी हैं। अखिलेश इस मोर्चे पर पिछड़े हुए है। इस बार एक नया ट्रेंड देखने लायक है, एक सीनियर आईएएस और सीनियर आईपीएस ने वीआरएस लेकर राजनीति की राह पकड़ी। दोनों को भाजपा ने टिकट देकर चुनाव मैदान में उतार दिया। क्या यह उचित है? क्रिकेट की तर्ज पर आला अफसरों के लिए क्या कूलिंग पीरियड का प्रावधान नहीं होना चाहिए। यह तो सरासर बेइमानी हुई। ब्यूरोक्रेसी में नेतागिरी का चलन बढ़ रहा है। यह प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है।
यह चुनाव मोदी बनाम अखिलेश न हो इसके लिए भाजपा लो प्रोफाइल मेन्टेन कर रही है, बल्कि वह योगी बनाम अखिलेश पर ज्यादा जोर दे रही है। पश्चिम बंगाल की हार के बाद भाजपा ने शायद यही सीखा है। अगर यूपी में नतीजे मनमाफिक न रहे तो इसे मोदी के खिलाफ जनादेश न समझा जाए, यही उसकी रणनीति है। स्वतंत्र देव सिह के बाद स्मृति ईरानी ने नेताजी के प्रति सार्वजनिक रूप से आदर भाव प्रदर्शित किया है। नेताजी का आशीर्वाद कभी-कभी भाजपा को तो फलता है, लेकिन सपा के दारुण दुख का कारण बन जाता है। सपा से बीजेपी में आईं अपर्णा को टिकट नहीं मिला। इससे बेहतर तो यही रहता कि परिवार में बनीं रहतीं। दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम। अब क्या होगा, राम जानें।
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यूपी का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, यह तो आगामी दस मार्च को पता चल ही जाएगा। लेकिन सीएम योगी कैराना और मुजफ्फरनगर की गर्मी भुलाकर शिमला की ठंड दिलाने का एलान जरूर कर रहे हैं। समूची भाजपा राग कैराना और मुजफ्फरनगर आलाप रही है। यही एकमात्र विकल्प बचा है। वैसे चुनाव जब आगे अन्य इलाकों में पहुंचेगा तो मुद्दे भी बदलेंगे और बोली भी। ओबीसी, दलित और ब्राह्मण पर खासा जोर है। साधू-संत तक अपनी जाति बताने लगे हैं। अच्छी बात है, अब न कहिएगा, जाति न पूछो साधु की। बहुत कानाफूसी चली, दिल्ली दरबार और लखनऊ के बीच छिडी जंग को लेकर, देखिए नतीजे क्या आते है?
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मायावती को लेकर सस्पेन्स बरकरार है, वे जरूर कोई धमाका करने वाली हैं। प्रियंका तो बीच लड़ाई से वाक ओवर देती नजर आ रही हैं। उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। यही हाल गोवा और मणिपुर का भी है। पंजाब में दिलचस्प जंग होगी। कांग्रेस सत्ता में वापसी कर सकती है। उसका शिरोमणि अकाली दल व बसपा से सीधा मुकाबला है। यह चुनाव तय करने वाले है कि दिल्ली के अलावा आम आदमी पार्टी का क्या भविष्य है। वह पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में ताल ठोक रही है। उधर तृणमूल कांग्रेस भी पश्चिम बंगाल की सरहदों को लाघ कर अन्य राज्यों में अपने प्रभाव को दर्शाना चाहती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)