(disaster natural) एक डरावने अध्ययन ने हमें दुनिया के सबसे बड़े ग्लेशियरों में से एक के तेजी से पिघलने के बारे में सचेत किया है। ग्लेशियरों के पिघलने के उच्च जोखिम और वैश्विक समुद्र स्तर के लिए खतरे के कारण थ्वाइट्स को “प्रलय का दिन ग्लेशियर” कहा जाता है। पीपल पत्रिका के अनुसार, थ्वाइट्स ग्लेशियर फ्लोरिडा/गुजरात राज्य के आकार के बराबर है और दुनिया भर में समुद्र के स्तर में वृद्धि में अंटार्कटिका (temperature of Antarctica) की भागीदारी का लगभग पांच प्रतिशत हिस्सा है। पिछले छह महीनों के दौरान अचानक पिघलने की हुई घटना, के कारण थ्वाइट्स ग्लेशियर प्रति वर्ष 1.3 मील (2.1 किलोमीटर) तक पीछे हट गया है। यह पिछले एक दशक में वैज्ञानिकों द्वारा देखी गई दर से दोगुना है।
प्रो. भरत राज सिंह ने अपने “पुस्तक- ग्लोबल वार्मिंग-कारण, प्रभाव और उपचार” 2015 के पृष्ठ 60-61 में पहले ही उल्लेख किया है कि ग्लेशियर अपने पतन के चरण में हैं और यह अपरिहार्य है। हम स्थिति को उलट नहीं सकते। (disaster natural) थ्वाइट्स ग्लेशियर जिसे ‘बर्फ की नदी’ या ‘डूम्सडे ग्लेशियर’ के रूप में भी जाना जाता है, अपने पतन के प्रारंभिक चरण में है, जो लगभग अपरिहार्य है। आधा दर्जन ग्लेशियर तेजी से समुद्र में बर्फ डंप कर रहे हैं, जो समुद्र के स्तर में लगभग 4 फीट की वृद्धि देगा, और यह आकड़ा, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय-इरविन में एग्लेशियोलॉजिस्ट एरिक रिग्नॉट और नासा के जेट प्रोपल्शन में प्रयोगशाला के अध्ययन के अनुसार पाया गया। रिग्नॉट और उनकी टीम ने मई 2014 में जो आकड़े एकत्र किया था, वह उन्हें उपग्रहों और हवाई जहाजों के माध्यम से छह (6) पश्चिम अंटार्कटिक ग्लेशियरों (temperature of Antarctica) और बड़े पैमाने पर बर्फ के नीचे के इलाके में परिवर्तन की तस्वीरों से उपलब्ध कराया गया था।
उन्होंने पाया कि ग्लेशियर फैल रहे हैं और डंपिंग से समुद्र में बर्फ के द्रव्यमान मात्रा में सिकुड़न हो रही है। साथ ही, समुद्र में प्रक्षेपित होने वाले प्रत्येक हिमनद के हिस्से को गर्म समुद्र के पानी से नीचे से पिघला जा रहा है, जैसा कि चित्र में दिखाया गया है, जो अधिक पतले और तेज प्रवाह के दुष्चक्र की ओर जाता है, और स्थानीय इलाके में कोई बाधा नहीं है। ग्लेशियरों की वापसी, शोधकर्ताओं ने भूभौतिकीय अनुसंधान पत्रों में रिपोर्ट की है।
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रॉबर्ट व लार्टर, एक समुद्री भू भौतिकीविद्, जिन्होंने अपने वर्तमान 2021 के अध्ययन में कहा कि, “थ्वाइट्स आज वास्तव में अपने नाखूनों से पकड़ रखा है, और हमें भविष्य में समय के छोटे पैमाने पर बड़े बदलाव देखने की उम्मीद करनी चाहिए। यहां तक कि एक साल से अगले साल तक- एक बार जब ग्लेशियर अपने विस्तार से पीछे हट जाए।
क्या होगा जब थ्वाइट्स विघटित हो जाएंगे?
नए अध्ययन ने हमें दुनिया के सबसे बड़े ग्लेशियरों में से एक के तेजी से विघटन के बारे में सचेत किया है। इंटरनेशनल थ्वाइट्स ग्लेशियर कोलैबोरेशन ने 2020 में जारी एक अनुमान में कहा था कि अगर 70,000 वर्ग मील (1,12,000 वर्ग किलोमीटर) में फैला “डूम्सडे ग्लेशियर” पूरी तरह से घुल जाता है, तो इससे जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के स्तर में चार प्रतिशत की वृद्धि होगी। उन्होंने आगे कहा था कि इसके अचानक गिरने से समुद्र का स्तर 25 इंच और बढ़ जाएगा।
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थ्वाइट्स ग्लेशियर के ढहने से दक्षिणी लुइसियाना और मिसिसिपी को तबाह करने की क्षमता है। प्रभाव न्यूयॉर्क में भी महसूस किया जाएगा, लेकिन लॉस एंजिल्स बच जा सकता है। वैज्ञानिकों को डर है कि थ्वाइट्स ग्लेशियर एक दिन आसपास के ग्लेशियरों को अस्थिर कर सकता है और अंततः वैश्विक समुद्र के स्तर में 11 फीट की वृद्धि को ट्रिगर कर सकता है और वैश्विक समुद्र तटों को हमेशा के लिए बदल देगा। यही नहीं, यह जलवायु पैटर्न को बिल्कुल बदल देगा और आज हम जिस भयावह जलवायु परिवर्तन दुस्वारियों का सामना कर रहे हैं, उससे भी बदतर हो जाएगा। जैसे, भारी बारिश, उच्च तीव्रता वाले चक्रवात की आवृत्ति और तेजी व अधिक बर्फ का गिरना आदि-आदि।
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यह न केवल दहशत पैदा करेगा बल्कि बुनियादी ढांचे, जीवन और प्रजातियों आदि को भी भारी नुकसान पहुंचायेगा। भारत में भी न्यूयॉर्क के तर्ज पर, तटीय क्षेत्र के डूबने के साथ-साथ भूस्खलन और हिमस्खलन तथा हिमालय की बेल्ट में भी बुरी तरह से जन-मानस, बुनियादी ढांचे व जीवन को भारी नुकसान से बचाया नहीं जा सकता है, उन्हें मैदानी इलाकों में विस्थापित करना ही अनिवार्य होगा।
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(लेखक पर्यावरणविद हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)