नई दिल्ली। रामचरित मानस में कहा गया है कि ‘भय बिन होत ना प्रीत।’ यह आज के दौर में भी प्रासंगिक है। इस समय देश कोरोना महामारी की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। लेकिन अच्छी बात यह है कि 1 मई से 18 वर्ष से ऊपर वालों के लिए शुरू होने वाले वैक्सीनेशन के रजिस्ट्रेशन के लिए युवाओं में काफी उत्साह देखा जा रहा है। बता दें कि 1 मई से 18 वर्ष अधिक उम्र वालों को वैक्सीन लगाई जानी है। इसके लिए बुधवार को शाम 4 बजे से रजिस्ट्रेशन कराने की शुरुआत हो गई है। अफवाहों के चलते पहले जहां लोग वैक्सीन लगवाने से कतरा रहे थे, वहीं इस बार रजिस्ट्रेशन कराने को लेकर काफी उत्सुक नजर आ रहे हैं। आलम यह है कि 1 घंटे के भीतर 35 लाख लोगों ने टीकाकरण के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करवा लिया है। टीकाकरण के इस फेज में 18—44 वर्ष के बीच के लोगों को टीका लगेगा।
लापरवाही ने संकट में डाला
देश में कोरोना महामारी का संकट बीते वर्ष 2020 में आया। केंद्र सरकार इस महामारी को भांपते हुए सभी जरूरी कदम उठाए। देश में लंबे समय तक लाकडॉउन लगाया गया, जिसके चलते काफी हद तक उद्योग धंधे चौपट हुए, कई लोग बेरोजगार हुए। लेकिन इसका नतीजा यह रहा कि भारत कोराना वायरस से इस जंग में जीत की तरफ तेजी से आगे बढ़ा। ऐसा लगने लगा था कि देश कोरोना वायरस के कहर से उबर चुका है, चीजे धीरे—धीरे करके सामान्य होने लगी। जीवन पटरी पर लौटने लगा था कि कोरोना वायरस का दूसरा स्ट्रेन आ गया। वहीं लोग पहले की तरह इस महामारी के खतरे और अपनी भूमिका को दरकिनार करते हुए इसे संभालने का जिम्मा सरकार पर छोड़ दिया। नतीजा आज सबके सामने है। कोरोना के खिलाफ जीती हुई जंग देश हारता नजर आ रहा है।
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इलाज के लिए जंग लड़ रहे लोग
कई असमय काल के गाल में समा कई, लाखों जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं। बीमारों के परिजन अपनो को इलाज दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। तो वहीं कुछ कोरोना की जगह सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ गुस्सा जता रहे हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि इस महामारी के फैलाव के लिए जितनी जिम्मेदार सरकार है उससे कही ज्यादा दोषी आम जनमानस है। सरकार बार—बार लोगों ने अनुरोध करती रही कि जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं। लेकिन लोगों को लग रहा था कि महामारी से बचाने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की है। दवाई और अस्पताल की व्यवस्था सरकार कर ही देगी। लेकिन सबने यह भूल की कि व्यवस्था आखिर कितनी। नतीजा अस्पताल में जगह नहीं है, सबको दवा नहीं उपलब्ध हो पा रही है। महामारी से ज्यादा लोग दवा की किल्लत, आक्सीजन की कमी और इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं।
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