जिसे भारतवर्ष नाम दिया गया था, उसे अब भारतीय उप महाद्वीप के नाम से परिभाषित किया जाता है। यह अलग बात है कि बहुत से लोग वर्तमान भूखण्ड (32,87,263 वर्ग किमी) को भारतवर्ष शब्द से पहचानने में गर्वानुभूति करते हैं। प्रचीन शास्त्रों में भारत के लिये भारतवर्ष, आर्यावर्त जैसे नाम उल्लिखित मिलते हैं। पृथ्वी का यह भूखण्ड ही सनातन हिन्दु संस्कृति का उद्गम स्थल है। हजारों वर्षों के अन्वेषण और शोध से देव तुल्य ऋषियों और मुनियों ने इस संस्कृति को विकसित किया। वैदिक साहित्य में इसका विशद उल्लेख है।
काल के अनेक थपेड़े सनातन संस्कृति के समक्ष चुनौती बनकर खड़े होते रहे। दूसरी शताब्दी से लेकर सातवीं शताब्दी तक जितनी चुनौतियां आयीं उनका समना शौर्य और बुद्धिमत्ता से सहजता पूर्वक होता रहा। बाद के कालखण्ड में बाहर से आये हिंसक और लम्पट समूहों ने सनातन हिन्दू धर्म पर बड़ी चोट की। भीषण रक्तपात हुये, लूट-घसोट और अनाचार हुये। हिन्दु समाज को विपन्नता की स्थित में पहुँचाने के यत्न होते रहे। संघर्ष करने वाले कभी थके तो नहीं पर समाज के विखण्डन को रोक पाना सहज नहीं रह गया।
इस्लाम और फिर ईसाइयत के प्रवेश ने भारत के सनातन हिन्दू समाज पर बड़े गहरे घाव किये। हिंसा और छल कपट के माध्यम से इस संस्कृति को समाप्त करने की कुचेष्टाएं प्रारम्भ हुईं। जिसके परिणाम स्वरूप भारत को हर प्रकार से तोड़ने में इस्लाम और ईसाइयत को सफलता मिलने लगी। जिस क्षेत्र में भी हिन्दू बलहीन हुआ उस क्षेत्र को संस्कृति के साथ भारत से विलग करने में इन्हें सफलता मिलती रही। नौ बार भारतवर्ष खण्डित हुआ। अन्तिम विखण्डन 1947 में हुआ। यह विखण्डन मूलत: धार्मिक मान्यताओं के आधार पर हुआ।
पाकिस्तान को भारत से दो हिस्सों (पूर्वी और पश्चिमी) में विलग करते हुये एक देश बनाया गया। फिर 1971 में पूर्वी पाकिस्तान, बांग्लादेश के रूप में एक अलग देश बनकर विश्व मानचित्र पर प्रकट हुआ। भारत में इस्लाम के अपवित्र आगमन ने 54 करोड़ लोगों को मुसलमान बना दिया। आज यह आबादी भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश तीनों देशों में बसी हुई है। इन तीनों देशों की सम्पूर्ण मुसलिम जनसंख्या के पूर्वज सनातन हिन्दू थे। अब यह सनातन हिन्दू संस्कृति के प्रचण्ड शत्रु बनकर उभरे हैं।
भारत के विखण्डन के समय 1947 में शेष बचे भारतीय भूभाग में महात्मा गॉधी और उनके प्रिय शिष्य जवाहर लाल नेहरू की जोड़ी ने तीन करोड़ 20 लाख मुसलमानों को आग्रह पूर्वक भारत में बने रहने के लिये रोक लिया था। इनसे कहा था कि वह धार्मिक बंटवारे को स्वीकार न करें। हिन्दु समाज के साथ रहें। कांग्रेस के नेता हिन्दु समाज को इस बात के लिये सहमत कर लेंगे कि वह मुसलमानों के साथ भेदभाव नहीं करें। भारत के हिन्दुओं ने यह देखते हुए भी कि पाकिस्तान के दोनों हिस्सों में साढ़े चार करोड़ हिन्दुओं के साथ भीषण अत्याचार हिन्सा हो रही है। उन्हें बलात हिन्दू धर्म छोड़ने के लिए विवश किया जा रहा है। तदपि हम भारत में रह रहे मुसलमानों के साथ समानता और आत्मीयता का व्यवहार करते रहेंगे। प्रारम्भ में संसार ने सनातन हिन्दुओं के इस स्नेहपूर्ण आचरण की बड़ी सराहना की। हिन्दुओं को भी लगा कि भारत में रहने के लिये सहमत हुए मुसलमान उनके प्रति कभी वैमनस्य का वर्ताव नहीं करेंगे। पर यह भ्रम टूटने में देर नहीं लगी।
छल, कपट और जोर के बल पर हिन्दुओं का मतान्तरण बहुत तीव्रता से प्रारम्भ हो गया। इतना ही नहीं बांग्लादेश और पाकिस्तान दोनों देशों से बड़ी संख्या में घुसपैठ करके मुस्लिम जनसंख्या को भारतीय सीमाओं में वहॉ की सरकारों ने ढकेलना प्रारम्भ कर दिया। भारत के जनसंख्या संतुलन को बिगाड़ने के इस क्रम का परिणाम यह हुआ कि 2023 तक भारत में मुसलिम जनसंख्या 21 करोड़ 32 लाख से अधिक पहुंच गयी। जबकि पाकिस्तान और बंग्लादेश में मुसलमानों की जनसंख्या क्रमश: 17 और 16 करोड़ है।
भारत के सम्बन्ध में कहा जा रहा है कि अगले सात से 10 वर्षों के भीतर संसार की सर्वाधिक मुसलिम जनसंख्या वाला देश भारत हो जाएगा। भारत के दो राजनीतिक नेताओं महात्मा गॉधी और जवाहर लाल नेहरू को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने सनातन हिन्दू संस्कृति के प्राकट्य स्थल में मुसलिम जनसंख्या को प्रचण्ड रूप में पनपने का सुन्दर अवसर दिया। भारत के मुसलमान इस प्रयास में पूरी तत्परता से लगे हैं कि इस देश को कैसे इस्लाम का सबसे बड़ा गढ़ बनाने का संकल्प पूरा करें। इसके लिए मतान्तरण सबसे बड़े अस्त्र के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। लव जिहाद के माध्यम से हिन्दू समाज की लड़कियों को फंसाने के साथ ही उन्हें बल और छल पूर्वक घोर यातना ग्रहों में ढकेला जा रहा है।
यह जानते हुये भी बड़ी संख्या में हिन्दू लड़कियां इनके चंगुल में फंस रही हैं। ऐसे हिन्दू अभिभावक कभी लाचार होकर, तो कभी कुचक्र में फंसकर समझौते के लिये बाध्य किये जाते हैं। लड़कियों को फंसाने वाले गिरोह अपने आकाओं से भारी धनराशि प्राप्त करते हैं। विभिन्न राज्य सरकारों के प्रयत्न इतने लचर है कि इस सामाजिक बीमारी को रोकना अब तक सम्भव नहीं हो सका। भारत के कई राजनीतिक दलों के नेता इस षडयंत्र में इस्लाम के पक्षधर बने हुए हैं। यही कारण है कि लव जिहाद जारी है।
भारत के बाजार में धर्म बिकता है
तसलीमा नसरीन बांग्लादेश की एक बड़ी लेखिका हैं। उन्होंने एकबार लिखा था कि बांग्लादेश में धर्म खरीदा जाता है। यह बात उन्होंने वहॉ शेष बचे 32 लाख हिन्दुओं के सन्दर्भ में कही थी। विभाजन के समय बांग्लादेश में 37 प्रतिशत से अधिक हिन्दू थे, जो अब ऊंगलियों पर गिनने भर को बचे हैं। उनकी बेटियां छीन ली गईं या फिर उनके परिवारों को मामूली धन देकर खरीद लिया गया। रोजी रोटी का ऐसा संकट पैदा किया जाता रहा कि निर्धन हिन्दुओं को अपना धर्म बेचने के लिए विवश होना पड़ा। अब यह रोग भारत में फैल गया है।
बांग्लादेश से प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में पलायन करके मुसलमान और हिन्दू भारत की सीमा में प्रवेश कराये जाते रहे हैं। भारतीय क्षेत्र का बंगाल राज्य इस त्रासदी का प्रत्यक्ष उदाहरण है। बंगाल राज्य के 23 जिलों में से 13 जिलों का संतुलन मुसलमानों के पक्ष में हो चुका है। इनमें से नौ जिले पूरी तरह से मुसलिम बाहुल्य हो चुके हैं। असम राज्य की स्थिति भी कुछ इसी तरह है। असम में 35 जिले हैं, जहॉ की साढ़े तीन करोड़ जनसंख्या में से 40 प्रतिशत जनसंख्या मुसलिम हो चुकी है। भारत के दो राज्यों की जनसंख्या के संतुलन को बांग्लादेश की सरकार ने पूरी तरह बिगाड़ दिया है।
बांग्लादेश और पाकिस्तान दोनों देशों से घुसपैठ करके आये मुसलमानों ने उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और जम्मू तक का जनसंख्या संतुलन बिगाड़ा है। उत्तर प्रदेश के नौ जिलों में मुसलिम जनसंख्या तेजी से बढ़ी है। यहॉ राजनीतिक पलड़ा झुकाने में अब मुसलमान प्रबल शक्ति बन चुके हैं। बंगाल में मुसलमानों की उग्रता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। जिन क्षेत्र में हिन्दु जनसंख्या में न्युन हैं वहॉ से उन्हें या तो खदेड़ दिया जाता है या फिर बल पूर्वक उन्हें मतान्तरित करके मुसलिम बना दिया जाता है। इस क्रम को रोकने की बजाय अधिकांश राजनीतिक दल सहायक की भूमिका निभाते आ रहे हैं।
ईसाइयत का प्रभाव
भारत में अंग्रेजी शासन स्थापित होने से पहले ही ईसाई मिशनरियों का आगमन प्रारम्भ हो गया था। ब्रिटेन के साथ पुर्तगाल, फ्रांस जैसे यूरोपिये देशों से ईसाइकरण में निपुण जत्थे भारत आने लगे थे। यह प्रभाव अंग्रेजी शासन व्यवस्था विस्तार के साथ प्रचण्ड हो गया। 1947 में जब भारत विभाजन हुआ और अंग्रेजों को यहां से भागना पड़ा तब केवल 76 लाख ईसाई भारत में रह गये थे। वस्तुत: यह गोरी चमड़ी के अंग्रेज नहीं थे। अपितु हिन्दुओं को मतान्तरित करके मिशनरियों द्वारा ईसाई बनाये गये थे। अंग्रेजी शासन हटा किन्तु महात्मा गॉधी और उनके उत्तराधिकारियों ने अंग्रेजों को पूरी सुविधा देने का आश्वासन दिया। जिससे कि वह अपने रिलीजन का प्रचार प्रसार बढ़ाते रहें। अमेरिका और यूरोपिये देशों की सरकारों ने मिशनरियों का भरपूर साथ दिया।
भारत की सरकारों पर पश्चिमी देशों ने यह दबाव बनाये रखा कि यदि भारतीय सरकारों ने मिशनरियों के काम अर्थात ईसाइकरण में बॉधा डाली तो भारत पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि पश्चिम की सरकारों के धन और राजनीतिक बल की छाया में भारत में हिन्दुओं के मतान्तरण का ईसाई कुचक्र तेजी से चल पड़ा। ईसाई मिशनरियों ने 2023 तक पॉच करोड़ से अधिक हिन्दुओं का मतान्तरण करने में सफलता पायी है। किन्तु घोषित तौर पर केवल दो करोड़ 80 लाख ईसाइयों का संख्याबल दर्शाया जाता है। यह संख्या उन ईसाइयों की है जिन्होंने ईसाई रिलीजन स्वीकार करने के साथ नाम परिवर्तन कर लिया है। जिनका नाम पूर्ववत हिन्दू रखने की छूट इसलिए दी जाती है, ताकि समाज में कोई हंगामा न खड़ा हो। साथ ही उन्हें हिन्दुओं को मिलने वाली आरक्षण जैसी सुविधाएं मिलती रहें। उन्हें क्रिप्टो क्रिश्चियन कहते हैं।
भारत की संसद में क्रिप्टो क्रिश्चियन की जनसंख्या के बारे में 2013 से पहले दो बार आंकड़े प्रस्तुत किये गये। तब यह जनसंख्या साढे चार करोड़ से अधिक बतायी गयी थी। 2023 तक इसमें बड़ी बृद्धि हो चुकी है। ईसाइकरण ने पूर्वोत्तर भारत के राज्यों नगालैंड, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय में जनसंख्या सन्तुलन बिलकुल उलट दिया है। यहां के जनजातीये मूलत: हिन्दु समाज के अंग रहे हैं। इनमें 30 से 86 प्रतिशत लोगों को मान्तरित कर ईसाई बना दिया गया है। विचित्र बात यह है कि यहां के अनेक ईसाई समूह उग्रवादी स्वरूप अपनाये हुए हैं। रक्तपात करके अपनी मांगे मनवाने में इन्हें संकोच नहीं होता।
मतान्तरण के लिए भी बल प्रयोग करते हैं। गैर ईसाइयों की भूमि हड़पने के साथ वन विभाग और सरकारी भूखण्डों को हथियाने में अग्रणी रहते हैं। सरकारी विधानों को मानने से इनकार करते हैं। ऐसा बल प्रयोग केरल, तमिलनाडु, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश जैसे राज्यों में भी देखा जाता है। केरल, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा जैसे समुद्र तटीय राज्यों में बहुत तीव्र गति से ईसाइकरण हुआ है। पर इनके आंकड़े घोषित नहीं किये जाते। संसार की ईसाई शक्तियां भारत को भविष्य का ईसाई देश मानने की हठधर्मिता पर टिकी हैं। उनका प्रयास है कि भारत में कोई सरकार इतनी स्थिर और सशक्त न हो जो मतान्तरण रोकने का साहस बटोर सके।
धनी और शिक्षित हिन्दू भी मातान्तरण की ओर
कुछ लोग यह भ्रम पाले रहते हैं कि निर्धन और अशिक्षित समाज के लोग मतान्तरण के भ्रम में आसानी से आ जाते हैं। भारत में आस्था की दृष्टि से तीन प्रकार में हिन्दुओं को बाटा जा सकता है। ऐसे हिन्दु जो आस्था की दृष्टि से दृढ़ प्रतिज्ञ हैं। दूसरे प्रकार के हिन्दु जो सुविधा पर केंदित रहते है, धार्मिक आस्था और मान्यतायें उनके लिए दूसरी प्राथमिकता बन चुकी है। सुविधा के निमित्य आस्था को ठुकराने में इन्हंि देर नहीं लगती। तीसरे प्रकार के हिन्दु पूरी तरह नास्तिक अथवा अधार्मिक जीवन शैली अपना चुके हैं। यह ऐसा वर्ग है जो हिन्दू धर्म को छोड़ चुका है। साथ ही इस्लाम और ईसाइयत का पक्षधर है। बाद के दोनों वर्ग धन और शिक्षा में कम नहीं हैं।
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इन दोनों वर्गों के लोग रोटी-बेटी के सम्बन्ध ही नहीं अधर्म पर चलने वाली किसी भी कुरीति के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। ऐसे लोगों का मतान्तरण इस्लाम और ईसाइयत दोनों के एजेंट बड़ी आसानी से करा लेते हैं। इनका उदाहरण देकर पढ़े लिखे और धनी अन्य वर्गों को आकर्षित करने में सहायता मिलती है। यही कारण है कि इस्लाम और ईसाइयत हिन्दू धर्म के जनसंख्या बल को तीव्रता से निगल रहे हैं।
भारत में मतान्तरण की गति को कम करने के सारे प्रयास अब तक विफल रहे हैं। इसका कारण यह है कि मतान्तरण के विरोध में सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का साथ कुछ हिन्दू संगठन ही देते हैं। सरकारों ने कभी साथ नहीं दिया। भाजपा की सरकारों के दो कार्यकालों के समय कोई पग इस दिशा में नहीं उठा। निश्चित रूप से मतान्तरण के विरोध में समाज को जागृत करने के साथ ही कठोर विधान बनाने की आवश्यकता है। तभी भारत की सनातन हिन्दू संस्कृति की रक्षा का संकल्प पूरा हो सकेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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