सनातन वैदिक प्रत्येक हिन्दू के लिए सिर की शिखा प्राण के समान है। सनातन संस्कृति का यह प्राणतत्व हम हिंदुओं ने कैसे क्षीण कर लिया है, अब इस पर चिंतन जरूरी है। विश्व में शिखा के महत्व को जान लेने वाले इसे बड़े गर्व से अपनाने लगे हैं। शिखा की महत्ता और इसका महाविज्ञान हमारे पूर्वज जान रहे थे। पश्चिमी नकल और हमारी पराधीन मानसिकता ने हमे इसको समझने नहीं दिया। जिस पर गर्व करना था उसे ही काट कर हम खुद को प्रगतिशील बताने लगे।
शिखा का महत्त्व विदेशी जान गए हिन्दू भूल गए। सनातन जीवनधर्म का छोटे से छोटा सिद्धांत, छोटी-सी-छोटी बात भी अपनी जगह पूर्ण और कल्याणकारी हैं। छोटी सी शिखा अर्थात् चोटी भी कल्याण, विकास का साधन बनकर अपनी पूर्णता व आवश्यकता को दर्शाती हैं। शिखा का त्याग करना मानो अपने कल्याणका त्याग करना हैं। जैसे घड़ी के छोटे पुर्जे की जगह बड़ा पुर्जा काम नहीं कर सकता क्योंकि भले वह छोटा हैं परन्तु उसकी अपनी महत्ता है। शिखा न रखने से हम जिस लाभ से वंचित रह जाते हैं, उसकी पूर्ति अन्य किसी साधन से नहीं हो सकती।
‘हरिवंश पुराण’ में एक कथा आती है हैहय व तालजंघ वंश के राजाओं ने शक, यवन, काम्बोज पारद आदि राजाओं को साथ लेकर राजा बाहू का राज्य छीन लिया। राजा बाहु अपनी पत्नी के साथ वन में चला गया। वहाँ राजा की मृत्यु हो गयी। महर्षिऔर्व ने उसकी गर्भवती पत्नी की रक्षा की और उसे अपने आश्रम में ले आये। वहाँ उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर राजा सगर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राजासगर ने महर्षि और्व से शस्त्र और शास्त्र विद्या सीखीं। समय पाकर राजा सगरने हैहयों को मार डाला और फिर शक, यवन, काम्बोज, पारद, आदि राजाओं को भी मारने का निश्चय किया। ये शक, यवन आदि राजा महर्षि वसिष्ठ की शरण में चले गये। महर्षि वसिष्ठ ने उन्हें कुछ शर्तों पर उन्हें अभयदान दे दिया। और सगर को आज्ञा दी कि वे उनको न मारे। राजा सगर अपनी प्रतिज्ञा भी नहीं छोड़ सकते थे और महर्षि वसिष्ठ जी की आज्ञा भी नहीं टाल सकते थे। अत: उन्होंने उन राजाओं का सिर शिखा सहित मुंडवाकर उनकों छोड़ दिया।
प्राचीन काल में किसी की शिखा काट देना मृत्युदण्ड के समान माना जाता था। बड़े दुख की बात हैं कि आज हिन्दू लोग अपने हाथों से अपनी शिखा काट रहे हैं। यह गुलामी की पहचान हैं। शिखा हिन्दुत्व की पहचान हैं। यह आपके धर्म और संस्कृतिकी रक्षक हैं। शिखा के विशेष महत्व के कारण ही हिन्दुओं ने यवन शासन के दौरान अपनी शिखा की रक्षा के लिए सिर कटवा दिये पर शिखा नहीं कटवायी।
डॉ. हाय्वमन कहते है ”मैने कई वर्ष भारत में रहकर भारतीय संस्कृति का अध्ययन किया हैं, यहाँ के निवासी बहुत काल से चोटी रखते हैं, जिसका वर्णन वेदों में भी मिलता हैं। दक्षिण भारत में तो आधे सिर पर ‘गोखुर’ के समान चोटी रखते हैं। उनकी बुद्धि की विलक्षणता देखकर मैं अत्यंत प्रभावित हुआ हूं। अवश्य ही बौद्धिक विकास में चोटी बड़ी सहायता देती हैं। सिर पर चोटी रखना बढ़ा लाभदायक हैं। मेरा तो हिन्दू धर्म में अगाध विश्वास हैं और मैं चोटी रखने का कायल हो गया हूं।
“प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. आईई क्लार्क एमडी ने कहा हैं “मैंने जबसे इस विज्ञान की खोज की हैं तब से मुझे विश्वास हो गया हैं कि हिन्दुओं का हर एक नियम विज्ञान से परिपूर्ण हैं। चोटी रखना हिन्दू धर्म ही नहीं, सुषुम्ना के केद्रों की रक्षा के लिये ऋषि-मुनियों की खोज का विलक्षण चमत्कार हैं।
“इसी प्रकार पाश्चात्य विद्वान मि. अर्ल थामस लिखते हैं की “सुषुम्ना की रक्षा हिन्दु लोग चोटी रखकर करते हैं जबकि अन्य देशों में लोग सिर पर लम्बे बाल रखकर या हैट पहनकर करते हैं। इन सब में चोटी रखना सबसे लाभकारी हैं। किसी भी प्रकार से सुषुम्ना की रक्षा करना जरुरी हैं। “वास्तव में मानव-शरीर को प्रकृति ने इतना सबल बनाया हैं की वह बड़े से बड़े आघात को भी सहन करके रह जाता हैं परन्तु शरीर में कुछ ऐसे भी स्थान हैं जिन पर आघात होने से मनुष्य की तत्काल मृत्यु हो सकती हैं। इन्हें मर्म-स्थान कहाजाता हैं।
शिखा के अधोभाग में भी मर्म-स्थान होता हैं, जिसके लिये सुश्रुताचार्य ने लिखा है मस्तकाभ्यन्तरोपरिष्टात् शिरासन्धि सन्निपातो।
रोमावर्तोऽधिपतिस्तत्रपि सद्यो मरणम्।
अर्थात् मस्तक के भीतर ऊपर जहाँ बालों का आवर्त (भँवर) होता हैं, वहाँ संपूर्ण नाड़ियों व संधियों का मेल हैं, उसे ‘अधिपतिमर्म’ कहा जाता हैं। यहाँ चोट लगने से तत्काल मृत्यु हो जाती हैं (सुश्रुत संहिता शारीरस्थानम् : 6.28)
इसे भी पढ़ें: अग्निवीर देश तो नहीं जलाएंगे
सुषुम्ना के मूल स्थान को ‘मस्तुलिंग’ कहते हैं। मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों कान, नाक, जीभ, आँख आदि का संबंध हैं और कामेन्द्रियों- हाथ, पैर, गुदा, इन्द्रिय आदि का संबंध मस्तुलिंग से हैं मस्तिष्क व मस्तुलिंग जितने सामर्थ्यवान होते हैं उतनी ही ज्ञानेन्द्रियों और कामेन्द्रियों- की शक्ति बढ़ती हैं। मस्तिष्क ठंडक चाहता हैं और मस्तुलिंग गर्मी मस्तिष्क को ठंडक पहुँचाने के लिये क्षौर कर्म करवाना और मस्तुलिंग को गर्मी पहुंचाने के लिए गोखुरके परिमाण के बाल रखना आवश्यक होता है। बालकुचालक हैं, अत: चोटी के लम्बे बाल बाहर की अनावश्यक गर्मी या ठंडक से मस्तुलिंग की रक्षा करते हैं।
शिखा रखने के लाभ (Benefits of keeping the crest)
1- शिखा रखने तथा इसके नियमों का यथावत् पालन करने से सद्बुद्धि, सद्विचारादि की प्राप्ति होती हैं।
2- आत्मशक्ति प्रबल बनती हैं।
3-मनुष्य धार्मिक, सात्विक व संयमी बना रहता हैं।
4- लौकिक- पारलौकिक कार्यों मे सफलता मिलती हैं।
5-सभी देवी देवता मनुष्य की रक्षा करते हैं।
6- सुषुम्ना रक्षा से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु होता हैं।
7- नेत्र्ज्योति सुरक्षित रहती हैं।
इसे भी पढ़ें: व्यवस्था परिवर्तन में स्वयं सेवक की भूमिका
इस प्रकार धार्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक सभी दृष्टियों से शिखा की महत्ता स्पष्ट होती हैं। परंतु आज हिन्दू लोग पाश्चात्योंके चक्कर में पड़कर फैशनेबल दिखने की होड़ में शिखा नहीं रखते व अपने ही हाथों अपनी संस्कृति का त्याग कर डालते हैं। लोग हँसी उड़ाये, पागल कहे तो सब सह लो पर धर्म का त्याग मत करो। मनुष्य मात्र का कल्याण चाहने वाली अपनी हिन्दू संस्कृति नष्ट हो रही हैं। हिन्दु स्वयं ही अपनी संस्कृति का नाश करेगा तो रक्षा कौन करेगा।
वेद में भी शिखा रखने का विधान कई स्थानों पर मिलता है, देखिये।
शिखिभ्यः स्वाहा (अथर्ववेद 19-22-15)
चोटी धारण करने वालों का कल्याण हो।
यशसेश्रियै शिखा।-(यजु० 19-92)
अर्थ यश और लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए सिर पर शिखा धारण करें।
याज्ञिकैंगौर्दांणि मार्जनि गोक्षुर्वच्च शिखा। (यजुर्वेदीय कठशाखा)
अर्थात् सिर पर यज्ञाधिकार प्राप्त को गौ के खुर के बराबर (गाय के जन्में बछड़े के खुर के बराबर) स्थान में चोटी रखनी चाहिये।
केशानां शेष करणं शिखास्थापनं।
केश शेष करणम् इति मंगल हेतोः ।।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)