ब्राह्मण असंतोष। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण उपेक्षा का बड़ा नैरेटिव बनाने की बहुत कोशिश हुई। इनको लगता था कि इन्हीं की तरह ब्राह्मण जाति उतरेगी और ब्राह्मण कंधे के सहारे ये फिर सत्ता की मलाई पा जाएंगे। ऐसा पहले दो बार हो चुका है। एक बार मायावती के साथ और एक बार अखिलेश यादव से उम्मीद में। लेकिन वे हालात अलग थे। ब्राह्मण जाति कोई ऐसा समूह नहीं है जिसे कभी भी कोई रजानीतिक समूह खरीद और बेंच सके। याद कीजिये, एक ब्राह्मण शिक्षक ने विश्व विजय पर निकले सिकंदर को किस तरह भारत की सीमाओं में प्रवेश से रोक दिया और विवश सिकंदर अपनी कन्या सौंप कर पलायन को विवश हुआ और स्वदेश की धरती तक भी नहीं पहुंच सका, रास्ते में ही पराजित सेना को छोड़ काल कवलित हो गया। उस समय विजयी शिक्षक ने अपने शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य को सिकंदर की कन्या और भारत का सिंहासन, दोनों ही सौंप दिया था। उस शिक्षक चाणक्य ने सिकंदर से मुकाबले के लिए भारत के सबसे शक्तिशाली राज्य मगध से मदद मांगी थी, लेकिन मगध नरेश नंद ने इस पर उस शिक्षक का कितना अपमान किया था, इतिहास और राजनीति के जानकार इस तथ्य को जानते हैं।
यहां यह उल्लेख इसलिए आवश्यक लगा, क्योंकि जो ब्राह्मण विरोध का नैरेटिव बनाकर उत्तर प्रदेश को फिर असुरक्षा और अराजकता में झोंक कर सत्ता सुख लेना चाहते थे, वह नहीं हो सका। राज्य सभा के मुख्य सचेतक शिव प्रताप शुक्ल के नेतृत्व में एक समिति बनाकर भाजपा ने इस नैरेटिव को ठीक से परखने की कोशिश की। शिव प्रताप शुक्ल भाजपा के बहुत पुराने और बड़े नेता हैं। जाति से ब्राह्मण ही हैं। उसी शहर से आते हैं, जहां से योगी आदित्यनाथ आते हैं। प्रदेश और केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। सरकार और संगठन दोनों का उनके पास पर्याप्त अनुभव है। ऐसे में जब सरकार और संगठन के साथ भाजपा का आंतरिक मूल्यांकन शुरू हुआ तो बहुत से तथ्य भी सामने आए। प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमापति राम त्रिपाठी, लक्ष्मीकांत बाजपेयी, राज्यसभा में डॉ. सुधांशु त्रिवेदी, डॉ. सीमा द्विवेदी, डॉ. रीता बहुगुणा जोशी, प्रदेश के उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा, ऊर्जामंत्री श्रीकांत शर्मा, बेसिक शिक्षामंत्री डॉ. सतीश द्विवेदी, कैबिनेट मंत्री ब्रजेश पाठक, जितिन प्रसाद जैसे अनेक बड़े नाम हैं जिनको ब्राह्मण नेता माना जा सकता है।
अब यह प्रश्न उठाना स्वाभाविक है कि आखिर यूपी चुनाव में क्यों अहम माने जा रहे हैं ब्राह्मण मतदाता। इसके लिए प्रदेश के जातीय संरचना पर गौर करना जरूरी है। उत्तर प्रदेश में करीब 14 से 17 फीसदी तक ब्राह्मण वोटबैंक माना जाता है। सभी सियासी दलों की इस पर नजर रहती है। राजनीतिक लोग जानते हैं कि दरअसल ब्राह्मणों का समर्थन किसी भी पार्टी के लिए राहें आसान करता है। उसका अहम कारण यह है कि बाकी जातियों की तुलना में ब्राह्मण जाति ज्यादा मुखर मानी जाती है। इस बार भी अगर देखें तो समाजवादी पार्टी से लेकर बहुजन समाज पार्टी प्रबुद्ध सम्मेलन कर रही है। वहीं प्रियंका गांधी भी लगातार योगी सरकार पर ब्राह्मणों के उत्पीड़न को मुद्दा बनाती रही हैं।
अब कमेटी बनाकर और कार्यक्रम पेश कर बीजेपी की कोशिश है कि इस समुदाय में ये संदेश जाए कि उनकी भलाई के लिए पार्टी ने कोशिशें की हैं। शिव प्रताप शुक्ल और उनके साथ जोड़े गए युवा भाजपा के पूर्व महामंत्री अभिजात्य मिश्र एवं अन्य लोगों ने इस दिशा में अपने अपने ढंग से कार्य भी किया है जिसका परिणाम यह हुआ है कि भाजपा से कोई ब्राह्मण कटा नहीं, बल्कि जुड़ने वालों की लंबी कतार है। पूर्वांचल क्रांति परिषद के पूर्व अध्यक्ष और लगतार शिक्षक राजनीति से जुड़े पूर्वांचल के कद्दावर ब्राह्मण नेता डॉ. संजयन त्रिपाठी ने अभी कल ही भाजपा की सदस्यता ली है। बसपा के बड़े नेता रामवीर उपाध्याय ने भी बसपा से इस्तीफा देकर भाजपा का ही रूख किया है।
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यूपी की सियासत में ब्राह्मणों के रसूख का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंडल आंदोलन से पहले प्रदेश में 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने। हालांकि मंडल आंदोलन के बाद यूपी की सियासत पिछड़े, मुस्लिम और दलित पर केंद्रित हो गई।यह अलग बात है कि प्रदेश में किसी दल ने ब्राह्मण को कभी वोट बैंक नहीं माना। लेकिन 2007 में मायावती ने पहली बार बहुमत की सरकार बनाई तो दलित-मुस्लिमों के साथ ब्राह्मण सोशल इंजीनियरिंग सामने आई। मायावती की इस जीत में ब्राह्मण वोट बैंक का विशेष योगदान माना गया और बीएसपी से 41 ब्राह्मण विधायक चुने गए।
इसके बाद 2012 में अखिलेश मुख्यमंत्री बने तो 21 ब्राह्मण विधायक सपा के पास थे, लेकिन वर्ष 2014 के बाद मोदी लहर में ब्राह्मण वोट बैंक बीजेपी के साथ हो गया और 2017 में इसका असर ये रहा कि बीजेपी की प्रचंड जीत में 46 ब्राह्मण बीजेपी से विधायक हुए। फिर 2020 में कानपुर के विकास दुबे एनकाउंटर के बाद सोशल मीडिया पर एक तबके ने योगी सरकार को कटघरे में खड़ा करना शुरू किया। यही नहीं कांग्रेस, सपा, बसपा से लेकर तमाम विपक्षी दलों ने बीजेपी पर ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगाना शुरू कर दिया।
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अब यह तो साफ हो गया है कि जो भी लोग भाजपा से ब्राह्मणों की नाराजगी की हवा बहा रहे थे, उनकी योजना विफल हो गयी है। ऊपर से स्वामी प्रसाद मौर्य के कल सपा के मंच से दिए गए भाषण ने बहुत बड़ा काम किया है। उनकी बदजुबानी और टिप्पणियां वायरल हो रहीं हैं, जिससे समाज में उनके प्रति बहुत ही अलग प्रकार की धारणा बन गई है। दरअसल राजनीति के ये जातीय नुमाइंदे यह जान ही नहीं रहे कि कांग्रेस ने इसी समुदाय को केंद्र में लेकर लंबे समय तक शासन किया। यदि कोई सत्ता बदली तो उसमें इसी समाज ने आगे की भूमिका निभाई। इस समाज को भली प्रकार से पता है कि उत्तर प्रदेश के लिए क्या सही और क्या गलत है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)