Newschuski Digital Desk: मुगल बादशाहों के हरम को लेकर हमारे दिमाग़ में अक्सर एक ही तस्वीर उभरती है ऐश-ओ-आराम की जगह और सैकड़ों खूबसूरत औरतों का झुंड। लेकिन असलियत इससे कहीं ज़्यादा पेचीदा और दिलचस्प है। आइए, एक साधारण सी भाषा में समझते हैं कि आख़िर ये हरम था क्या।
हरम था क्या, बस औरतों का ढेर नहीं
इतिहासकार बताते हैं कि हरम महल के भीतर एक और छोटा सा महल हुआ करता था। यह बादशाह का निजी घर था, जहाँ सिर्फ़ उसकी पत्नियाँ ही नहीं, बल्कि उसकी बेटियाँ, बहनें, विधवा रानियाँ, बूढ़ी शाही महिलाएँ, नौकरानियाँ, दासियाँ और पहरेदार तक रहते थे। यह जगह सिर्फ़ शाही आरामगाह नहीं, बल्कि शिक्षा, कला, धर्म और कूटनीति का एक सक्रिय केंद्र भी थी। हरम में महिलाएँ कई तरह से आती थीं।
राजनीतिक शादियाँ: मुग़ल बादशाहों ने राजपूत राजघरानों, जैसे आमेर, जोधपुर आदि से शादियाँ कीं। अकबर की प्रसिद्ध रानी जोधा बाई (मरियम उज़-ज़मानी) इसी का उदाहरण हैं। ऐसी शादियों से आने वाली रानी के साथ उसकी दासियाँ और सहेलियाँ भी हरम का हिस्सा बन जाती थीं।
दास प्रथा: उस ज़माने में दास प्रथा चलन में थी। ईरान, मध्य एशिया, कश्मीर, बंगाल आदि से लड़कियों को खरीदकर या युद्ध में बंदी बनाकर लाया जाता था। इन्हें बांदी या कनिज़ कहा जाता था। एक साधारण नौकरानी से शुरुआत करके अगर बादशाह की नज़र पड़ जाए, तो उसका दर्जा बढ़ भी सकता था।
उमरावों की बेटियाँ: बड़े सामंत और अमीर अपनी बेटियों को शाही हरम में भेजते थे ताकि उन्हें शाही संरक्षण मिल सके।
हरम में प्रवेश और सुरक्षा
हरम में घुसना कोई आसान काम नहीं था। यह बेहद सख़्त नियमों वाली जगह थी। आम पुरुषों का वहाँ तक आना-जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित था। सुरक्षा के लिए भरोसेमंद गुलाम और ख़ास तौर पर नपुंसक (हिजड़े) पहरेदार तैनात रहते थे। हरम में हर औरत का दर्जा एक जैसा नहीं था।
शाही बेग़म (कानूनी पत्नियाँ): इनका रुतबा सबसे ऊँचा था। इनके अपने महल, नौकर-चाकर और ख़ज़ाने होते थे। नूरजहाँ और जहाँआरा बेग़म जैसी महिलाएँ इसी श्रेणी में आती थीं।
ख़ास औरतें (उपपत्नियाँ): ये संख्या में ज़्यादा होती थीं। इनका दर्जा रानी से तो कम था, लेकिन नौकरानी से ऊपर।
दासियाँ और नौकरानियाँ: इन्हें तनख़्वाह, कपड़े और रहने की जगह मिलती थी, लेकिन इनकी आज़ादी बहुत सीमित होती थी।
हरम की जिंदगी, बंदिशें और आज़ादी के पल
हरम में बाहर जाने, मेहमानों से मिलने या खरीदारी करने के सख़्त नियम थे। महिलाएँ बिना इजाज़त बाहर नहीं जा सकती थीं। हालाँकि, त्योहारों जैसे ईद, होली या दीवाली पर विशेष सुरक्षा के साथ उन्हें सैर के लिए ले जाया जाता था।
सिर्फ़ कैद नहीं, था ज्ञान और कला का केंद्र
हरम को सिर्फ़ एक कैदखाना कहना गलत होगा। कई शाही महिलाएँ बहुत पढ़ी-लिखी और प्रतिभाशाली थीं। वे फ़ारसी, अरबी जैसी भाषाएँ जानती थीं, कविता और संगीत में रुचि रखती थीं। नूरजहाँ ने तो जहाँगीर के शासन में राजनीतिक फ़ैसलों तक को प्रभावित किया और जहाँआरा बेग़म ने कई सार्वजनिक इमारतें और सूफ़ी मठ बनवाए।
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नजरिया बदलने की ज़रूरत
आज के इतिहासकार कहते हैं कि हरम को सिर्फ़ भोग-विलास की जगह या फिर सिर्फ़ एक कैदखाना समझना गलत है। यह साम्राज्य की राजनीति और संस्कृति का एक अहम हिस्सा था, जहाँ महिलाएँ अपने तरीके से सत्ता, संपत्ति और समाज पर असर डालती थीं। हाँ, यह ज़रूर था कि यह ज़िंदगी बंदिशों, निर्भरता और सत्ता के बीच झूलती एक जटिल ज़िंदगी थी। तो अगली बार जब हरम का नाम सुनें, तो याद रखें, यह सिर्फ़ एक औरतों का घर नहीं, बल्कि मुग़लिया ताकत और तहज़ीब का एक पूरा संसार था।
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