Arvind Sharma
अरविंद शर्मा ‘अजनबी’

दिल ने जो रंज खाए हैं, हमसे न पूछिए,
कैसे दिये बुझाए हैं, हमसे न पूछिए।

वो रूठ कर गए तो हवाएँ भी रुक गईं,
कैसे ख़ुदा मनाए हैं, हमसे न पूछिए।

आँखों में डूबते हुए तस्वीर प्यार की,
कितने सफ़र लुटाए हैं, हमसे न पूछिए।

थी एक शाम, चाँद से की थी दुआ कभी,
अब चाँद भी छुपाए हैं, हमसे न पूछिए।

वो नाम लेके और किसी का हँस पड़े,
हम कैसे मुस्कराए हैं, हमसे न पूछिए।

थी एक चाह वही कि मिल जाए वो कभी,
अब ख़्वाब भी जलाए हैं, हमसे न पूछिए।

वो लौट आए तो भी सुकूँ ना मिल सका,
हम क्या जहाँ बनाए हैं, हमसे न पूछिए।

अरविंद हँसके दर्द छुपाने लगे मगर,
क्या क्या ग़मों से पाए हैं, हमसे न पूछिए।

मिट्टी में मिल गए तो भी नींद ना मिली,
क़ब्रों में ग़म सुलाए हैं, हमसे न पूछिए।

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