Newschuski Digital Desk: दिल्ली से सनातन संस्कृति की एक नई पहल शुरू हुई है, जिसका लक्ष्य दुनिया भर में इसकी शांति और अमृत का संदेश पहुंचाना है। इस आंदोलन की कमान संभाल रही हैं कश्मीरी पत्रकार और लेखक सुरभि सप्रू।
सुरभि का मानना है कि दुनिया में फैली अशांति और युद्ध की स्थिति से मानवता को सिर्फ सनातन मूल्यों और संस्कृति को अपनाकर ही मुक्ति मिल सकती है। कश्मीर में सनातन संस्कृति के सामने आई चुनौतियों को करीब से देख चुकीं सुरभि अब इसी संकल्प को लेकर आगे बढ़ रही हैं।
संतों के मार्गदर्शन से मिली प्रेरणा
सुरभि बताती हैं कि इस अभियान की प्रेरणा उन्हें देश के विभिन्न संतों और आचार्यों के साथ हुए संवाद से मिली। खास तौर पर आचार्य संजय तिवारी ने इस आयोजन की रूपरेखा तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दिल्ली में हुई ऐतिहासिक शुरुआत
‘भारत मेरे साथ’ और ‘कर्मारः सेवा समूह’ के संयोजन में दिल्ली में आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत बेहद सराहनीय रही। इसे एक बड़े सांस्कृतिक आंदोलन के पहले कदम के रूप में देखा जा रहा है। इस मौके पर देश भर से आए 12 से अधिक संत, महंत, आचार्य और विद्वानों ने अपने विचार रखे।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि अपर्णा सोपोरी (स्वर्गीय भजन लाल सोपोरी की पत्नी) ने सभी अतिथियों का पारंपरिक तिलक और माला पहनाकर स्वागत किया। बदले में संतों ने उन्हें कश्मीर की पहली रानी का चित्र देकर सम्मानित किया।
विभिन्न विद्वानों ने रखे सनातन के विचार
कार्यक्रम में सनातन संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा हुई। मधुरामजी रामस्नेही ने आशीर्वाद दिया। लक्ष्मी गौतम ने नारी शक्ति और धर्म पर जोर दिया। अलोक शुक्ल ने सनातन और नाट्यशास्त्र के संबंध को समझाया। डॉ. आशीष कौल ने राम के महत्व पर प्रकाश डाला। डॉ. पूनम मटिया और अजेय मिश्रा ने संगीत व साहित्य के जरिए सनातन को एक सुंदर स्वरूप दिया।
धनुर्विद्या का अनूठा प्रदर्शन और सम्मान
कार्यक्रम का एक रोमांचक पल तब आया जब आंध्र प्रदेश से आए एल. सुब्बाराव और उनकी पुत्री ने धनुर्विद्या का शानदार प्रदर्शन दिया, जिन्हें ‘कलयुग के द्रोणाचार्य’ कहा जाता है। उन्हें ‘द्वारका नाथ सप्रू सम्मान’ से सम्मानित किया गया।
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भावनात्मक समापन
कार्यक्रम के अंत में युवा संत रामानुराग रामस्नेही ने सुरभि सप्रू और उनकी टीम को बधाई दी। मुख्य अतिथि अपर्णा सोपोरी ने सभी प्रतिभागियों का आभार जताते हुए इस सार्थक पहल की सराहना की। यह कार्यक्रम सनातन संस्कृति को देश-विदेश तक पहुंचाने की एक लंबी यात्रा का पहला पड़ाव है, जिसकी शुरुआत राजधानी दिल्ली से हो चुकी है।
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