एक बूंद गिरता जब भू पर,
भू कण को है नम कर देता।
सोया हुए बीज उर अन्तर,
नव जीवन का रस भर देता।।
सुक्ष्म कणों के मध्य रिक्त में,
जल के संग वायु जाती है।
जीवन के संचार हेतु वह,
नव वातावरण पनपती है।।
सोये जीवन मैं उमंग भर,
ऊपर उठने को कहती है।
उठकर वे हरियाली लाते,
प्राण वायु भी संग बहती है।।
अपने को भूमय कर देती,
भू को कर देती जीवन्त।
एक बूंद से प्रकृति संवरती,
जैव विविधता होती अनन्त।।
आओ हम भी एक बूंद बन,
जीवन की बन जाएं आश।
जहां अंधेरा कहीं शेष है,
कर दूर अंध भर दें प्रकाश।।
जीवन सार्थक हो जाएगा,
आओ मिल कदम बढायें।
अपने जीवन के प्रकाश से,
नव चेतन को पाठ पढाये।।
बृजेन्द्र पाल सिंह
राष्ट्रीय संगठन मंत्री लोकभारती
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