संघ प्रमुख मोहन भागवत कौन सी बूरी बात कह दी थी, कौन सी गैर जरूरी बात कह दी थी, कौन सी यथार्थहीन बात कह दी थी, कौन सी राष्ट्रविरोधी बात कह दी थी? कौन सी मुस्लिम विरोधी बात कह दी थी? कौन सी जनसंख्या फर्टिलिटी रेट विरोधी बात कह दी थी? फिर इतना हंगामा क्यों? राजनीति इतनी गर्म क्यों? जिहादी तबका इतना आगबबूला क्यों? विरोध में इतनी क्रूरता क्यों, इतनी बदतमीजी की भाषा क्यों? वोट बैंक की समर्थक भाषा क्यों? बार-बार तुष्टीकरण की ही राजनीति सामने आती हैं। एक समुदाय के पक्ष में गोलबंदी ही सामने आती है। एक समुदाय की हिंसक और मानवता विरोधी गोलबंदी ही सामने आती है। लगता है कि विपक्ष के लिए सिर्फ और सिर्फ आयातित हिंसक और रक्तपिशाचु संस्कृति ही प्यारी होती है। अपनी होती है और जिनके पक्ष में विपक्ष न केवल अभियानी होता है बल्कि जिहादी भी होता है। स्थिति इतनी विकट हो गयी है कि आयातित हिंसक और रक्तपिशाचु संस्कृति की कूरीतियों को, हिंसक प्रबृतियों और इनकी काफिर मानसिकता में सुधार की बात होने पर भी विपक्ष हंगामें में लगा होता है। हिंसक और जहरीले विरोध की सीढ़ियां चढना स्वीकार कर लेता है।
मुस्लिम संहार और मुस्लिम उत्पीड़न मान कर बंवडर खड़ा कर दिया जाता है। यही कारण है कि मुस्लिम समाज स्वयं मदरसा और हम पांच और हमारे पच्चीस की मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाता है। इसके दुष्परिणामों से खुद आहत होकर आधुनिक समय के जाहिल और गंवार जैसी पदवियों से स्थापित हो चुके हैं। अधिक बच्चे पैदा कर रोजगार के लिए अच्छे भविष्य की उम्मीद लगाये मुस्लिम देश की मुस्लिम आबादी यूरोप और अमेरिका की ओर दौड़ नहीं लगायी है क्या? मुस्लिम आबादी यूरोप में घुसपैठ करने के लिए लहराती समुद्र और भीषण रेगिस्तान तक नाप डालते नहीं है क्या? इस दौरान बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी अपनी जान भी गंवा डालते हैं। भारत में तो एक कहावत बहुत ही कुख्यात है। बच्चे अल्लाह की देन है और बेरोजगारी नरेन्द मोदी की देन है। ऐसी कुख्यात, जहरीली और अमानवीय मानसिकता, जिहाद के दौर में मोहन भागवत की बात को जिहादी और तुष्टीकरण की राजनीति कैसे पचा लेंगे। कैसे स्वीकार कर लेगे। कैसे विमर्श का विषय बना सकते हैं और कैसे राष्ट्र की अस्मिता और मजबूती पर रख कर विमर्श कर सकते है?
तीन बच्चे जरूरी। यही तो कहा था मोहन भागवत। तीन बच्चे किसे पैदा करना चाहिए? तीन बच्चे उसे पैदा करना चाहिए जिसकी आबादी घट रही है, जिनका जन्मदर घट रहा है, जिनमें बच्चे पैदा करने की इच्छा समाप्त हो रही है, जो बच्चा पैदा कर पालना और इस दौरान संकटों से घिरना पंसद करना नहीं चाहते हैं। शेष लोग तो बच्चे पैदा कर ही रहे है। सिर्फ मनुष्यता के तौर पर ही बच्चे पैदा नहीं कर रहे हैं बल्कि जानवरों की तरह भी बच्चे पैदा कर रहे हैं। कुते और बिल्लियों की तरह भी बच्चे पैदा कर रहे हैं। इन्हीं मानसिकता को कभी नरेन्द्र मोदी भी पहचाना था और उसके खतरे को जाना था। फिर नरेन्द्र मोदी भी कहते थे कि हम पांच और हमारे पच्चीस की खतरनाक, हिंसक और जहरीली मानसिकता से हमें सावधान रहना चाहिए, रोकना चाहिए।
अब प्रश्न यह उठता है कि हम पांच और हमारे पच्चीस का अर्थ क्या होता है? हम पांच यानी मैं और मेरी चार पत्नियां तथा चार पत्नियों से होने वाले औसतन पच्चीस बच्चे। कभी ऐसे श्लोगन, ऐसी चुनौतियां और ऐसी राजनीति अपनी शक्ति जरूर दिखाती थी और वोटों को भी प्रवावित करती थी। खासकर ऐसे श्लोगन के बल पर भी नरेन्द्र मोदी कभी गुजरात पर कोई एक-दो साल नहीं बल्कि पूरे 12 साल तक अपराजित रहकर शासन किया था। यह बात भी थी कि नरेन्द्र मोदी की ऐसी धारणा को लेकर देश ही नहीं बल्कि विदेश तक गूंज होती थी और उन्हें मुस्लिम विरोधी बता कर प्रतिबंधित करने का जिहाद भी चलता था। मोदी को अमेरिका ने प्रधानमंत्री बनने के बाद ही प्रतिबंधित सूची से बाहर किया। था।
मोहन भागवत की बात क्या अवैज्ञानिक है? जरूरत से परे है क्या? राष्ट्र की जीवंता से परे है क्या? आइये इन विन्दुओं पर विश्लेषण करते हैं। मोहन भागवत की बात पूरी तरह से वैज्ञानिक है और एक सबल व जीवंत राष्ट्र के लिए जरूरी भी है, अनिवार्य भी है। फर्टिलिटी रेट के सिद्धात को जो लोग समझते हैं वे ही लोग मोहन भागवत की बात को समझ सकते हैं। अध्ययन कर सकते है और विमर्श की जरूरत को समझ सकते हैं। जनसंख्या में गिरावट से संबंधित चिंता को रेखांकित करता है। जनसंख्या का फर्टिलिटी रेट किसी भी स्थिति में 2. 1 से नीचे नहीं जाना चाहिए। अगर जनसंख्या का पर्टिलिटी रेड 2.1 से नीचे चला जाता है तो उस समुदाय, उस समूह या फिर उस देश की जींवंतता खतरे में पड़ जाती है। सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है, संवर्द्धन की बात बैमानी हो जाती है। इस कारण सृष्टि की सार्थकता भी समाप्त होने लगती है। उपर्युक्त अवधारणा पर हम बात करें तो फिर किसी भी समाज, समूह, समुदाय और देश की फर्टिलिटी रेट 2.1 से नीचे कभी भी नहीं जाना चाहिए। फर्टिलिटी रेट नीचे जाने से भाषाएं भी समाप्त हो रही हैं और कई मूर्त और अमूर्त संस्कृतियां भी नष्ट हो रही हैं। फर्टिलिटी रेट को लेकर अब तक देश में पांच सर्वे हो चुके हैं। पिछला सर्वे 2019 -2020 के दौरान हुआ था। पिछला फर्टिलिटी सर्वे बताता है कि देश का फर्टिलिटी रेट 1.99 है जो जरूरी 2.1 से नीचे हैं।
हम अभी नींद से जागे नहीं है, चुनौतियों और संकटों का अहसास नहीं कर रहे हैं, भविष्य की खतरनाक चुनौतियों को नहीं देख रहे हैं पर दुनिया के कई देश इस संकट से जूझना शुरू भी कर दिये हैं। समस्याओं और चुनौतियों का भी सामना कर रहे हैं। बचने और लड़ने के कार्य भी कर रहे हैं पर नाकाफी साबित हो रहे हैं, असफल साबित हो रहे हैं। चीन, जापान और कोरिया के साथ ही साथ कई पश्चिमी देश भी सीधे तौर पर ऐसी समस्याओं से दग्ध है और उनके देश की जीवंतता ही समाप्त होने के कगार पर पहुंच गयी है। दक्षिण कोरिया में एक महिला एक बच्चे को भी जन्म नहीं दे रही है। यानी कि जापान और कोरिया की महिलाओं में बच्चे को जन्म देने और उनका पालन पोषण करने की इच्छा शक्ति ही नहीं रखती है।
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जापान ने पुरूषों को छुट्टियां देकर प्रजनन क्रिया बढ़ाने की नीति अपनायी है। खासकर दक्षिण कोरिया ने घोषणा की है कि जिन घरों में एक वर्ष की कम आयु के बच्चे हैं उनहें 63 हजार पांच सौ रुपये मिलेंगे जबकि दो वर्ष से कम आयु वाले बच्चे के घरों को 42 हजार रुपये देने की घोषणा की है। दक्षिण कोरिया की जनसंख्या भी लगातार घट रही है। दक्षिण कोरिया की जनसंख्या 5.18 करोड से घटकर 5.16 करोड हो गयी है। जापान का फर्टिलिटी रेट 1.26 तक नीचे गिर चुका है। चीन ने 2016 में ही एक बच्चे की परिधि को हटा दिया फिर भी चीन की जनसंख्या घट रही है।
भारत की जनसंख्या 140 करोड़ से उपर चली गयी है। पर इसमें विसंगतियां भी है। भारत की जनसंख्या जो बढ रही है उसके पीछे जिहादी मानसिकताएं रही हैं। कहने का अर्थ यह है कि भारत की जनसंख्या फर्टिलिटी रेट जिहादी है। जनसंख्या सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों की बढ़ रही है। हिन्दुओं, जैन, बुद्ध और सिखों की जनसंख्या ही नहीं बढ रही है। अगर जनसंख्या इसी तरह मुसलमानों की बढ़ती गयी तो फिर भारत एक मुस्लिम देश में तब्दील हो जायेगा। भारत भी अराजक, हिंसक और बर्बर मुस्लिम देश में तब्दील हो जायेगा। अफगानिस्तान, लेबनान, सूडान और इथोपिया, नाइजीरिया और सोमालिया जैसी स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। मोहन भागवत की चिंता में यही विषय शामिल है। इसलिए सिर्फ हिन्दुओं ही नहीं बल्कि जैन, बुद्ध और सिखों को भी कम से कम तीन बच्चों की अनिवार्यता को स्वीकार करना ही होगा, अन्यथा अस्तित्व संहार के लिए तैयार रहना होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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