Narendra Bhadoria
नरेन्द्र भदौरिया

भारत के आसमान पर घृणा और कटुता के बादल घुमड़ रहे हैं। इन बादलों की आवक पूरब और पश्चिम की विषैली हवाओं के झोंकों के साथ बढ़ती जा रही है। भारत को सनातन संस्कृति से विहीन करने के षडयन्त्रों से जुड़े कई खरबपति और विधर्मी सरकारें एकजुट खड़ी दिखायी दे रही हैं। ऐसा नहीं है कि सारे बवण्डर भारत की सीमाओं के पार से उठ रहे हैं। भारत के भीतर अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहे कई राजनीतिक, गैर-राजनीतिक, मजहबी और रिलीजियस संगठन बाहर से मिलने वाले दान के टुकड़ों के बल पर कटुता और घृणा के गुबार उड़ेलने में लगे हैं।

यह पहली बार नहीं है कि भारतीय समता, समरसता, सहिष्णुता और सर्व धर्म समभाव के शाश्वत चिन्तन को विनष्ट करने के लिए राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय षडयन्त्रकारी एकजुट होते दिखायी दे रहे हैं। भारत जब वैभव के शिखर पर था- भारतीय समाज की समृद्धि को देख कर दुनिया की आँखें फटी रह जाती थीं। तब भी ऐसे षडयन्त्र प्रारम्भ हुए थे। उन्हीं षडयन्त्रों के कारण भूखे-नंगे, खूंख्वार लुटेरे भारत पर टूट पड़े थे। उनकी लूटपाट से उत्साहित होकर ब्रिटेन सहित यूरोप के अनेक देशों के लालची व्यापारियों के समूह भारत पर आक्रामक हो उठे थे।

मजहबी उन्मादियों और ढीठ यूरोप वासियों के अत्याचारों से यह धरती दीर्घ काल तक त्रस्त रही। किसी तरह करोड़ों लोगों के आत्मोत्सर्ग से भारत की धरती के कोढ़ स्वरूप विदेशियों को खदेड़ा जा सका। ऐसा अनवरत अभियान अर्थात स्वतन्त्रता संग्राम से सम्भव हुआ। लुटेरों के कारण भारत विपन्न हो गया। विधर्मियों ने देश को बांट डाला। जिस देश में मेहमान बन कर परकीय आये थे उन्होंने हर प्रकार से धोखा किया। लम्बे काल तक दुर्दिनों से जूझते हुए भारत कुशल नेतृत्व पाकर आज सीना तान कर खड़ा हुआ है। भारत के ये गौरवशाली पल ऐसे विदेशियों को अखर रहे हैं जो अपने अतिरिक्त किसी को कुशलक्षेम की स्थिति में देखना ही नहीं चाहते। भारत के बाहरी शत्रुओं से निपटना भारत के वीरों के लिए कभी कठिन नहीं रहा। पर आन्तरिक द्रोहियों से जूझना सदा दुष्कर होता है। दासता के कठिन समय में गद्दारों की कमी नहीं थी। एकबार फिर भारत में ऐसे द्रोहियों की बाढ़ दिखायी दे रही है। विदेशी धन पाकर अपने ही देश भारत के भीतर कटुता और वैमनस्य की दीवारें खड़े करने की होड़ मची हुई है।

Protests in India

स्वतन्त्रता मिलने के बाद भारत में जिस तरह हिन्दु समाज के 20 करोड़ से अधिक लोगों का मतान्तरण होता रहा वह किसी से छिपा नहीं है। धर्म निरपेक्षता की संवैधानिक आड़ लेकर भारत में मतान्तरण का खेल बहुत तीव्रता से पनपा। स्वतन्त्र भारत के कई प्रधानमन्त्रियों, अनेक राज्य के मुख्यमन्त्रियों के खुले समर्थन और संरक्षण से भारत में मतान्तरण की आंधी चलती रही। भारत के सहिष्णु समाज को पिन चुभोकर उनकी सहिष्णुता नापी जाती रही। जब कहीं किसी राज्य में हिन्दुओं के अपमान और अत्याचार की बात उठी तो हिन्दु द्रोही राजनीतिक और सामाजिक षडयन्त्रकारियों ने हर परिस्थिति में हिन्दु समाज पर ही दोषारोपण किया।

हिन्दु समाज की विविधता भारतीय जनमानस की एकात्मता में कभी बाधक नहीं बनी। विविधता को वैशिष्टय मानकर भारत हजारों वर्षों से अनेक भाषाओं, अनेक मान्यताओं और स्वरूपों के बाद भी एक अखण्ड राष्ट्र के रूप में खड़ा रहा है। सनातन संस्कृति की यही अमर पहिचान है। इस पहिचान को मिटाने के लिए हिन्दु समाज को रंगरूप, भाषा और अन्य कारक उत्पन्न करके बांटने का सिलसिला चलाया गया। यह सही है कि भारत के हिन्दु समाज के महान सन्तों, नायकों ने समय रहते द्रोही मनोवृत्ति वाले लोगों के हाथों को मरोड़ने में तत्परता नहीं दिखायी। ऐसा किया होता तो समाज अपनी कुरीतियों और विभेदकारी दिखने वाली पहिचान मिटाने में सफल रहता।

भारत के मूल समाज अर्थात हिन्दु संस्कृति को मानने वाले लोगों में से जितने भी लोग विलग होते गये उनकी राष्ट्र भक्ति और सामाजिक चेतना का हरण करने वाले उन्हें लपकते गये। सांस्कृतिक और धार्मिक पहिचान मिटाने में जिन भारत द्रोहियों को सफलता मिली उनकी बाछें आज खिली हुई हैं। उन्हें लगता है कि भारत में लोकतन्त्र की परिधि में रहकर अब वह इतनी शक्ति बटोर चुके हैं कि सत्ता को अपनी झोली में डालकर निर्णायक संघर्ष कर सकेंगे। भले ही इसके लिए रक्तपात नरसंहार के उपाय अपनाने पड़ें। भारत से विलग हुए दो देश पाकिस्तान और बांग्लादेश ऐसे ही नरसंहारों के बूते मजहबी देश बनने में सफल हुए हैं। 1947 में विभाजन के बाद भारत के इन दोनों खण्डों में 38 से 45 प्रतिशत तक हिन्दु जनसंख्या रहा करती थी। उन सभी को मजहबी उन्माद के बल पर निगल लिया गया। यह सत्य किसी से छिपा नहीं है।

Protests in India

भारत में 2014 के बाद से हिन्दु लोकतान्त्रिक शक्ति के नये रूप का उभार देखने को मिला। इससे देश की मजहबी और रिलीजियस शक्तियों के कान खड़े हो गये। ऐसे मुसलिम और ईसाई संगठनों को विदेशी षडयन्त्रकारियों की सक्रियता से बड़ा बल मिला है। 2024 के चुनाव के समय भारत में बड़ा उलट फेर करने की साजिश हुई। ऐसे षडयन्त्रों का ताना-बाना कई दशक से बुना जा रहा था। भारत के अनेक राजनीतिक दलों के नेताओं के सुर में सुर मिलाकर विदेशी षडयन्त्रकारियों ने घोषणा तक कर दी थी कि वह भारत की उभरती राजनीतिक शक्ति को मिट्टी में मिला देंगे।

यह बातें अब खुलकर सामने आ चुकी हैं कि अमेरिका में बैठा हंगरी मूल को खरबपति जॉर्ज सोरेस लम्बे अरसे से भारत के एक बड़े राजनीतिक दल के शीर्ष नेतृत्व की पीठ थपथपाता रहा है। दीर्घ काल तक भारत की सत्ता में प्रभावी रही राजनीतिक पार्टी की एक नेत्री द्वारा गठित किये गये संगठन को सोरेस सहित कई अन्य संगठन सहायता करते रहे हैं। विदेशों की धरती से चलने वाले षडयन्त्र भारतीय समाज के लिए चुनौती हैं। भारत के लोकतन्त्र पर यह सीधा आक्रमण है।

भारत के जिन राजनीतिक दलों की संलिप्तता ऐसे संगठनों से है और जिन्होंने विदेशों से अपवित्र गठबन्धन करके धन लिया है उनकी जांच होनी चाहिए। ऐसे दलों और व्यक्तियों पर कठोर प्रतिबन्ध लगाने की भूमि तैयार करनी होगी। अन्यथा भारत के लोकतन्त्र को उसी तरह कुचल दिया जाएगा जिस तरह कई लोकतान्त्रिक सरकारों को अमेरिका और यूरोप के समर्थन से स्थानीय षडयन्त्रकारी उलटने में सफल होते रहते हैं।

Protests in India

भारतीय समाज के लिए नयी चुनौतियां बहुत कठिन हैं। क्षणिक लाभ के लिए जो राजनीतिक दल भारत जैसे देश की अखण्डता के लिए गम्भीर संकट उत्पन्न करने में नहीं हिचक रहे उनकी पहिचान अब कठिन नहीं रही। ऐसे दलों और उनके नेताओं का बहिष्कार किये जाने का अभियान समाज की ओर से चलाया जाना चाहिए। भारत के सामाजिक, धार्मिक संगठनों और जागरूक लोगों के लिए यह समय बहुत महत्व का है। ऐसे समय शान्त में होकर बैठे रहे लोगों से भावी पीढ़ियां प्रश्न करेंगी।

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भारत के उद्योगों के लिए भी भारत द्रोही नेता और संगठन विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न करने के प्रयासों में लगे हैं। संसार के समृद्ध देश भारत की आर्थिक प्रगति से चिढ़े हुए हैं। वह चाहते हैं कि भारत उनके लिए सदा एक बाजार बना रहे। भारत की उत्पादन ईकाइयां ठप हो जाएं। छोटी-बड़ी सभी चीजों के लिए भारत विदेशी बाजारों पर पहले की तरह निर्भर बना रहे। इससे भारत के धन से विदेशी उद्योग पनपेंगे। भारत में बेरोजगारी और अकाल जैसी परिस्थितियां बार-बार सिर उठाती रहें। विदेशी षडयन्त्रकारियों के हितों की पूर्ति होती रहे।

कितने दुर्भाग्य की बात है कि भारत का पड़ोसी देश चीन भारत से एक वर्ष बाद नयी प्रणाली के साथ उदित हुआ। भले ही वहाँ कम्युनिज्म की तानाशाही ने पाँव जमाये। पर उसने भारत के लद्दाख क्षेत्र की 38000 वर्ग किमी और अक्साईचिन की लगभग 44000 वर्ग किमी भूमि हड़प ली। इसके साथ ही पाकिस्तान ने भारत की 78000 वर्ग किमी से अधिक भूमि हथिया ली। इतने पर भी दोनों शत्रु देश भारत को निरन्तर धमकाते आ रहे हैं। भारत इनसे अपनी भूमि लौटा नहीं सका। जब देश का सामर्थ्य बढ़ाने की चुनौती थी तब हमारे पूर्व नायक याचक बनकर सर्वत्र फिरते रहे। यही कारण है कि स्वाभिमान की भावना का उभार देखते ही विदेशी षडयन्त्रकारियों ने देश के भीतर बैठे सपोलों को उकसाना शुरू कर दिया है। भारत को बचाने के लिए राष्ट्रभक्त भारतीय समाज को एकजुट खड़े होकर चुनौती स्वीकार करनी पड़ेगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

(यह लेखक का निजी विचार है।)

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