रवींद्र प्रसाद मिश्र
Twitter: सोशल मीडिया (Social Media) के दौर में जनता और सरकार की बीच की दूरी काफी घट गई है। जनता को केवल वोट के नजरिए से देखने वाले नेता अब उन्हें तरजीह देने लगे हैं। जनता को भी लगता है कि वह सोशल मीडिया (Social Media) के जरिए शासन और प्रशासन तक अपनी बात पहुंचाने में सक्षम हो चुके हैं। लेकिन इसका सबसे दुखद पहलू भी है। अधिकारी से लेकर माननीय तक सब सोशल मीडिया (Social Media) पर सक्रिय हैं। लेकिन उनकी यह सक्रियता केवल अपनी और सरकार की उपलब्धियां गिनाने तक ही सीमित हैं। जनता की समस्याओं से उनका कोई सरोकार नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार भी सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय है। मुख्यमंत्री के हर कार्यक्रम को ट्वीट (Twitter) कर सीएम योगी की कार्यों की सराहना होती है। लेकिन यह सब कौन करता है इसकी जानकारी खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को नहीं रहती। ऐसे में जन समस्याओं पर कितना गंभीरता दिखाई जाएगी, यह सोचने वाली बात है। क्योंकि मुख्यमंत्री से लेकर उनके मंत्रियों तक का सोशल मीडिया अकाउंट चलाने वाला कोई और है।
सोशल मीडिया पर लड़ी जा रही लड़ाई
सोशल मीडिया के दौर में आज अधिकतर लड़ाई सोशल प्लेटफार्मों पर लड़ी जा रही हैं। विपक्ष जहां सोशल मीडिया का हथियार बनाकर सरकार पर हमले बोल रही है। वहीं सरकार ट्विटर हैंडल केवल प्रचार तक सीमित रह गए हैं। आलम यह है कि सोशल मीडिया पर की गई शिकायतों का निस्तारण तो दूर की बात, जनप्रतिनिधि और अधिकारी उस पर रिप्लाई देना भी मुनासिब नहीं समझते। वहीं सरकार की तरफ से टोल फ्री नंबर, ऑनलाइन पोर्टल आदि की शुरुआत की गई है। मगर शिकायतों के निस्तारण की मॉनिटरिंग न होने की वजह से यह सब हाथी दांत साबित हो रहे हैं। ट्विटर की अगर बात की जाए तो मंत्री और उनके विभाग सब इस प्लेटफार्म पर मौजूद हैं। कई तो ट्विटर हैंडल करने के लिए भारी-भरकम टीम भी रखे हुए है।
सरकार की छवि गढ़ने का काम कर रही सोशल मीडिया
सोशल मीडिया टीम का काम केवल सरकार और अपने नेता की छवि गढ़ने तक सीमित है। जबकि जानकारों की मानें तो नेताओं की सोशल मीडिया टीम अगर दस प्रतिशत ही जनता की समस्याओं को फोकस करना शुरू कर दे, तो एक तरफ जहां लोगों की समस्याएं दूर होंगी, वहीं जनता के बीच नेता कर्मठ और इमानदार की छवि भी बनेगी। आभासी दुनिया में फर्जी छवि बनाने से किसी का भला नहीं होने वाला हैं। क्योंकि जनता को वही याद रहता है, जिससे वह दो-चार होती है। सोशल मीडिया पर सरकारी आंकड़े क्या कहते हैं, जनता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जनता की बातों का सरकार कितनी गंभीरता से लती है, इसका असर चुनाव में जरूर देखा जाता है।
अधिकारियों के भरोसे चल रही योगी सरकार
जनता के वोट की बदौलत उत्तर प्रदेश में लगातार दूसरी बार सत्ता का स्वाद चखने वाली बीजेपी की सरकार जनता ही हाशिए पर है। अधिकारियों के भरोसे उत्तर प्रदेश में चल रही योगी सरकार में जनता की कोई सुनवाई नहीं हो रही है। इलाज के अभाव में भटकते लोग, इंसाफ के लिए प्रदर्शन करती जनता, मुख्यमंत्री जनता दर्शन में फरियादियों की उमड़ती भीड़, थाने से फरियादियों के साथ अभद्र व्यवहार की तस्वीर, इस बात की तस्दीक देते हैं कि सरकार और नौकरशाह जनता के प्रति कितने जिम्मेदार हैं।
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गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म को सशक्त बनाने की दिशा में कई कदम उठाए हैं। शुरुआती दौर में सोशल मीडिया पर जन शिकायतों जिस गंभीरता से लिया जाता था, उससे लग रहा था कि इससे क्रांतिकारी बदलाव आएगा। लेकिन समय बीतने के साथ ही सोशल मीडिया का प्रभाव भी कम होता जा रहा है। नेता और उनके समर्थक एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए इस प्लेटफार्म का उपयोग कर रहे हैं। वहीं सरकार व उसके नेता-मंत्री उद्घाटन व फीता काटकर उपलब्धि गिनाने में मशगूल हैं।
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