मथुरा। भारत को आजादी मिलने के बाद देश में पहली बार किसी महिला अपराधी को फांसी की सजा दी जाएगी। इसके लिए मथुरा की जेल में तैयारियां भी शुरू हो गई हैं। मथुरा स्थित उत्तर प्रदेश के इकलौते फांसी घर में अमरोहा की रहने वाली शबनम को फांसी पर लटकाया जाएगा। इसके लिए मथुरा जेल में तैयारियां भी शुरू हो गई हैं। निर्भया के दोषियों को फंदे से लटकाने वाले पवन जल्लाद अब तक दो बार फांसी घर का निरीक्षण भी कर चुके हैं।
सर्वोच्च न्यायालय से पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद अब हत्या के आरोप में बंद शबनम की फांसी की सजा को राष्ट्रपति ने भी बरकरार रखा है, ऐसे में अब उसका फांसी पर लटकना तय हो गया है। मथुरा जेल में महिला फांसी घर में शबनम की फांसी की तैयारी भी शुरू हो गई है। डेथ वारंट जारी होते ही शबनम को फांसी दे दी जाएगी। देश में सिर्फ मथुरा जेल का फांसी घर एकलौता जहां महिला को फांसी दी जा सकती है। फिलहाल शबनम बरेली तो सलीम आगरा जेल में बंद है। इस मामले अमरोहा कोर्ट में दो साल तीन महीने तक सुनवाई चली थी। जिसके बाद 15 जुलाई 2010 को जिला जज एसएए हुसैनी ने शबनम और सलीम को तब तक फांसी के फंदे पर लटकाया जाए तब तक उनका दम न निकल जाए का फैसला सुनाया।
150 साल पहले बना था महिला फांसीघर
मथुरा जेल में 150 साल पहले महिला फांसीघर बनाया गया था। आजादी के बाद से अब तक यहां किसी भी महिला को फांसी पर नहीं लटकाया गया है। वरिष्ठ जेल अधीक्षक के मुताबिक अभी फांसी की तारीख तय नहीं है, लेकिन हमने तयारी शुरू कर दी है. रस्सी के लिए ऑर्डर दे दिया गया है। डेथ वारंट जारी होते ही शबनम-सलीम को फांसी दे दी जाएगी। हालांकि सलीम को फांसी कहां दी जाएगी यह भी अभी तय नहीं है।
अपने ही परिवार को उतारा था मौत के घाट
अमरोहा जिले के हसनपुर क्षेत्र के गांव बावनखेड़ी के शिक्षक शौकत अली की इकलौती बेटी शबनम के सलीम के साथ प्रेम संबंध थे। सूफी परिवार की शबनम ने अंग्रेजी और भूगोल में एमए किया था। उसके परिवार के पास काफी जमीन थी। वहीं सलीम पांचवीं फेल था और पेशे से एक मजदूर था। इसलिए दोनों के संबंधों को लेकर परिजन विरोध कर रहे थे। शबनम ने 14 अप्रैल, 2008 की रात अपने प्रेमी के साथ मिलकर ऐसा खूनी खेल खेला कि सुनकर पूरा देश हिल गया था। शबनम ने अपने माता-पिता और 10 माह के भतीजे समेत परिवार के सात लोगों को कुल्हाड़ी से काटकर मौत की नींद सुला दिया था।
100 तारीखों तक चली जिरह
शबनम-सलीम के केस में करीब 100 तारीखों तक जिरह चली। इसमें 27 महीने लगे। फैसले के दिन जज ने 29 गवाहों को बयान सुने। 14 जुलाई 2010 जज ने दोनों को दोषी करार दिया था। अगले दिन 15 जुलाई 2010 को जज एसएए हुसैनी ने सिर्फ 29 सेकेंड में दोनों को फांसी की सजा सुना दी। इस मामले में 29 लोगों से 649 सवाल पूछे गए। 160 पन्नों में फैसला लिखा गया। तीन जजों ने पूरे मामलों की सुनवाई की।
वो अन्य महिलाएं, जिन्हें होनी हैं फांसी
हिसार की रहने वाली सोनिया ने भी शबनम की तरह अपने पति संजीव के साथ मिलकर अपने विधायक पिता रेलूराम पुनिया सहित परिवार के आठ लोगों की हत्या कर दी थी। सोनिया के पिता हिसार के विधायक थे। सोनिया और संजीव को भी फांसी की सजा सुनाई गई थी, जिसे हाईकोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया। यह मामला सुप्रीमकोर्ट में पहुंचा तो फिर से फांसी की सजा बरकरार रखी गई। अगस्त 2019 में राष्ट्रपति ने भी इनकी दया याचिका को ठुकराते हुए फांसी की सजा के फैसले को बरकरार रखा। अभी इन्हें भी फांसी होनी है।
42 बच्चों के अपहरण और उनकी हत्याओं के मामले में रेणुका व सीमा नाम की महाराष्ट्र की दो सगी बहनों को भी फांसी की सजा सुनाई गई थी। ये दोनों बच्चों को अगवा कर उनसे भीख मंगवाती थीं, और जब वे किसी लायक नहीं रहते थे तो उनकी हत्या कर देती थीं। 29 जून 2001 को सेशन कोर्ट ने रेणुका शिंदे और सीमा गावित को 13 बच्चों के अपहरण और 6 बच्चों के कत्ल का दोषी पाया था और फांसी की सजा सुनाई। इसके बाद इन दोनों महिलाओं ने हाई कोर्ट का रूख किया। 31 अगस्त 2006 को हाई कोर्ट ने इन दोनों सीरियल किलर बहनों को फांसी की सजा सुनाई थी जिसके बार सुप्रीम कोर्ट ने भी इन महिलाओं की फांसी को बरकरार रखा था। वहीं इन दोनों ने राष्ट्रपति से दया याचिका की मांग की थी जिसे पूर्व राष्ट्रपति ने ठुकरा दिया था। अब यह दोनों महिलाएं अपनी फांसी की इतंजार कर रही है।