भारत की 18वीं लोकसभा के चुनाव में श्रीरामलला मुद्दा नहीं बने। अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि पर मन्दिर बनते ही मतदाताओं के मन में यह कोई समस्या नहीं रह गयी। जिसको लेकर कोई राजनीतिक दल दांव लगाता। जिस सत्ताधारी दल भाजपा के नेता नरेन्द्र मोदी ने इसे अपना संकल्प मानकर बड़ी सक्रियता दिखायी उनके मन में भले रहा होगा कि चार महीनों की अल्प अवधि में मतदाता इसे भुला नहीं पाएंगे। देश और विदेश के लोगों के मन में यह बात बार-बार कौंध रही थी कि मतदाता अप्रैल-मई की भीषण गर्मी में जब मतदान करने जाएंगे तो उनके मानस पर इस उपकार के पुष्प बरस रहे होंगे। पर ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ। भले ही यह आरोप कुछ लोग लगा रहे हैं कि अयोध्या सहित उत्तर प्रदेश और देश के मतदाताओं ने मोदी और भाजपा के प्रत्याशियों के प्रति आभार प्रकट करना उचित नहीं समझा। पर वस्तुत: कारण कुछ और है।
4 जून, 2024 की दोपहर जितने लोग टीवी के सामने बैठे रहे होंगे उन्हें वह पल याद आते होंगे। जब कुछ क्षणों के लिए वाराणसी में मतों की गणना में नरेन्द्र मोदी के पिछड़ने की बात आयी थी। टीवी ऐंकर की वाणी ठिठक गयी थी। उसने बड़ी चतुराई से बात को घुमाकर दूसरी सीट पर केन्द्रित कर दिया था। अन्तत: नरेन्द्र मोदी इस सीट पर चुनाव जीते पर उनके परिणाम का अन्तर पिछली बार से बहुत कम (डेढ़ लाख) रह गया। जबकि 2019 के चुनाव में अपने निकटतम प्रतिद्वन्द्वी को लगभग साढे 06 लाख मतों के अन्तर से हराकर बड़ी सफलता पायी थी। 2014 में पहली बार वह वाराणसी सीट से लड़े थे तब जीत का अन्तर 03 लाख 71 हजार से अधिक था।
इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में आम चुनाव हुए थे। यह चुनाव 24, 27 और 28 दिसम्बर को सम्पन्न कराये गये थे। हत्या के तत्काल बाद हुए इस चुनाव में मतदाताओं के मन सहानुभूति से भरे थे। राजीव गांधी को इस चुनाव में माँ के प्रति सहानुभूति के कारण रेकॉर्ड जीत मिली थी। लोकसभा की 543 सीटों में से 404 पर कांग्रेस के सदस्यों का अधिकार हो गया था। एनटी रामाराव की तेलुगुदेशम क्षेत्रीय पार्टी लोकसभा में दूसरा स्थान पाने में सफल हुई थी। यह थी चुनाव में सहानुभूति की लहर। अयोध्या को लेकर सहानुभूति की लहर भी देखी गयी जब 1992 की 06 दिसम्बर को अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि पर बना ढाँचा ढहाये जाने के बाद सारे उत्तर भारत के मतदाता राममय दिखायी दे रहे थे। इसके पहले 1990 में हुए गोली काण्ड में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह पर कारसेवकों की हत्या का आरोप लगा था तब भी राम लहर ने चुनाव को प्रभावित किया था।
अयोध्या मुद्दे के पक्ष और विपक्ष में राम लहर उठती रही है। समाजवादी पार्टी ने मुलायम सिंह के बाद भी अयोध्या प्रकरण में मुसलिम पक्ष में खड़े रहने का निश्चय प्रकट किया। अखिलेश यादव ने 22 जनवरी 2024 को आमन्त्रण मिलने पर भी अयोध्या जाने की बात को टाल दिया। अखिलेश यादव का साथ कांग्रेस के राहुल गांधी ने पकड़ा। उनकी पार्टी के भी किसी प्रमुख नेता ने अयोध्या की ओर मुंह नहीं किया। साफ है कि मुसलमानों के प्रति इन दोनों दलों ने वोटों के लिए कोरी ही सही पर संवेदना जतायी। श्रीराम को अपनी सेक्युलरवादी राजनीति के चलते विलग रखने वाले देश के अन्य दल भी हैं। वह सभी प्राय: इण्डी गठबन्धन के अंग हैं।
इस वर्ष 2024 की भीषण गर्मी में सात चरणों के चुनाव में मतदाताओं की अभिरुचि भरपूर दिखायी दी। इससे यह स्पष्ट होता है कि मतदाताओं के मन पर किन्हीं और मुद्दों का दबाव था। विपक्ष ने भाजपा की ओर से पिछले 10 वर्षों की अवधि में नाकारा सिद्ध हुए सांसदों को फिर से उतारा जाना सबसे बड़ा मुद्दा बन गया। भाजपा के कुछ बड़ बोले नेताओं ने भारतीय संविधान को बदले जाने की निरी झूठी कल्पना को मुद्दे के रूप में थमा दिया। उत्तर प्रदेश इस राजनीति का सबसे बड़ा अखाड़ा बन गया। जहां भाजपा के नेता विपक्ष के निरर्थक बिम्बों को पहचान नहीं सके। विपक्ष के एक नेता ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ और केन्द्रीय गृह मन्त्री अमित शाह के बीच आन्तरिक टकराहट का शिगूफा छेड़ दिया। मतदाता आकलन करने लगे कि योगी आदित्यनाथ इस बात पर कुछ बोलते क्यों नहीं। पर भाजपा के चिन्तनशील नेताओं ने सोचा कि उनके मौन से ही बात बन जाएगी।
वस्तुत: उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के पक्ष में आन्तरिक लहर चलने का एक बड़ा कारण मुसलमानों का भाजपा के प्रति प्रचण्ड गुस्सा रहा। उत्तर प्रदेश की 80 में से 26 लोकसभा सीटों पर मुसलिम मतदाता निर्णायक स्थिति में पहुँच चुके हैं। इनमें से 10 सीटें ऐसी हैं जिनमें मुसलिम मतों का प्रतिशत 40 से 50 प्रतिशत के बीच है। चुनाव के समय मुसलिम मतदाताओं की व्यग्रता हर बार देखते बनती है। इसीलिए भारत में मुसलिम मतदाताओं को वोट बैंक कहा जाता है। इस वर्ग के मतदाताओं को समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के संयुक्त वोट बैंक का सीधा समर्थन प्राप्त हो गया। नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी को हराने के हठ से जुड़े इस बड़े वर्ग ने 2024 के चुनाव के सारे आकलनों को ध्वस्त कर दिया।
उत्तर प्रदेश के जिन जिलों में मुसलिम मतदाताओं का करिश्मा सिर चढ़कर बोला उनमें वाराणसी भी सम्मिलित हो सकती थी। जहाँ मुसलिम मतदाता लगभग तीन लाख पहुँच चुके हैं। विभिन्न जिलों में मुसलिम जनसंख्या का प्रतिशत कुछ इस तरह है। मुरादाबाद में 50.8, रामपुर में 51.7, बिजनौर 44.3, सहारनपुर 43, मुजफ्फरनगर 46, अमरोहा 41.8, बलरामपुर 37.8, बरेली 36.5, मेरठ 35.4, हापुड़ 32, संभल 33, सिद्धार्थनगर 29.8, पीलीभीत 26.7, लखीमपुर 26, बाराबंकी 29, सुलतानपुर 20.8 और गोरखपुर में 22.4 प्रतिशत मतदाता मुसलिम हैं।
उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के मन में योगी आदित्यनाथ के रूप में एक भय व्याप्त है। उन्हें पता है कि उनके रहते सड़कों पर उतर कर उत्पात नहीं कर सकते। प्रदेश में मुसलिम गुण्डागर्दी पिछले कई दशक से आतंक का पर्याय बनी हुई थी। योगी की धाक ने इस पर विजय पायी। सामान्य मुसलमान यह बात तो खुलकर कहता है कि किसी सरकारी योजना में उनके प्रति भेदभाव का व्यवहार नहीं होता। लेकिन मुल्लाओं के निर्देश के बिना वह पृथक रूप से कोई राजनीतिक निर्णय कभी नहीं ले सकते। उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था मोदी और योगी की जोड़ी के पहले पूरे देश के लिए चुनौती बनी रहती थी। योगी की कार्यप्रणाली ने कई उदाहरण प्रस्तुत करके एक मानक स्थापित कर दिया। देश के कई राज्यों की जनता योगी की प्रशंसा करती है। कुछ मुख्यमंत्री उनकी शैली को अपनाने के यत्न करते दिखायी देते हैं। यह प्रश्न मतदाताओं के बीच यत्र-तत्र उठता रहा कि क्या पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व योगी की कार्यशैली से चिढ़ा बैठा है। इसमें राज्य के मन्त्रियों और पार्टी पदाधिकारियों को अपना होंठ बन्द रखना समीचीन लगा। बहुत बार चुनाव में सामान्य कानाफूसी भी कारक बन जाती है।
समाजवादी पार्टी के स्थायी वोट बैंक के रूप में यादव-अहीर और घोषी मतदाता गिने जाते हैं। इनके समाज में भाजपा संगठन की कोई पैठ नहीं है। इस वर्ग के मतदाताओं का मानना है कि यदि वह किसी रूप में भाजपा खेमें की ओर हाथ बढ़ायें तो कोई विश्वास नहीं करता। भाजपा ने कल्याण सिंह के समय से लोधी और अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं में पैठ बनानी प्रारम्भ की थी। इसका लाभ मिलने लगा था। नरेन्द्र मोदी ने भी इस ओर ध्यान दिया। पर 2024 में अनेक सीटों पर मतदाता आस लगाये बैठे थे कि उनके वर्ग के प्रत्याशी सामने आएंगे। अन्त समय वही सांसद प्रत्याशी बनाकर खड़े कर दिये गये जो 05 या 10 वर्षों से मतदाताओं की ओर पीठ करके मुँह चिढ़ा रहे थे।
सामन्यतया कुछ हठीले मतदाताओं को छोड़ दें तो प्राय: बहुसंख्य मतदाताओं को मोदी के नेतृत्व से कोई शिकायत नहीं है। पर भाजपा ने तो रायबरेली जैसी सीट पर भी राहुल गांधी के समक्ष कोई कड़ी चुनौती खड़ी करने पर ध्यान नहीं दिया। पूर्व प्रत्याशी को फिर से खड़ा कर दिया। जो मानस से ही नहीं कार्य व्यवहार से भी विशुद्ध कांग्रेसी रहा है। सामान्य मतदाता भी उसके प्रति कभी अपना रुझान नहीं दर्शा सका। यही स्थिति राज्य की अयोध्या सहित बहुत सी सीटों पर झलकती रही।
अयोध्या में श्रीराम का मन्दिर प्राय: बनकर तैयार हो रहा है। देशभर से आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ यहाँ बढ़ती जा रही है। यह कहना अन्याय होगा कि भारत का हिन्दु समाज इस उपकार को भूल गया है। भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद और इस विचार परिवार के साथ आस्था से जुड़ा सारा समाज नरेन्द्र मोदी को अपने चित्त में बसाकर अयोध्या पहुँचता है। श्रीराम और भारत माता के प्रति एकनिष्ठ सेवक के रूप में नरेन्द्र मोदी का स्मरण आते ही श्रद्धालुओं की आंखें नम हो जाती हैं। अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि स्थल की माटी के कण-कण से उन हुतात्माओं का वीरोचित जयकार सुनायी पड़ता है। जिन्होंने इसी मन्दिर के निमित्त अपना प्राणोंत्सर्ग 1528 से 1992 की अवधि में विभिन्न आन्दोलनों और संघर्षों के समय मन मलीन किये बिना किया।
श्रीरामलला की दुहाई देकर अयोध्या की रहने वाली बिन्दु लता कहती हैं- मैं सौगन्ध खाकर कहती हूं कि अयोध्या के किसी मतदाता ने प्रधानमन्त्री की ओर से मुँह नहीं मोड़ा। उनको तो एक देवदूत के रूप में अयोध्यावासी जन्म जन्मान्तर तक दुआएं देते रहेंगे। अयोध्यावासियों पर हुतात्माओं के बहुत ऋण हैं। चन्द्र किशोर पासी कहते हैं कि उनके परिवार के छह लोगों ने 1990 और 92 में कारसेवा में भाग लिया था। सरयू नदी के उस पार उनका गाँव है। रमापति शास्त्री (भाजपा के पूर्व मन्त्री) के गाँव के रहने वाले हरिहर वर्मा का कहना है कि अयोध्या और आसपास का रहने वाला सर्व समाज अपनी श्रद्धा पर प्रश्नचिन्ह सहन नहीं करता। हम सब श्रीराम के हैं और उनके रहेंगे। चुनाव के दौर आते जाते रहेंगे। प्रत्याशी बदलते रहेंगे। पर श्रद्धा नहीं बदलती। इसलिए अयोध्यावासी सपा प्रत्याशी की जीत को श्रीराम के प्रति अनादर के भाव से नहीं देखना चाहते। सपा प्रत्याशी के रूप में जीते नये सांसद अवधेश प्रसाद को निकट से जानने वाले शम्भू रतन का कहना है कि अवधेश तो श्रीराम का ही एक नाम है। बाबूजी (अवधेश प्रसाद) ने श्रीराम के प्रति आस्था रखने वालों को कभी दूर नहीं किया।
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इस आम चुनाव ने उत्तर प्रदेश में रहने वाले भाजपा समर्थक समाज की धड़कनों को बहुत बढ़ा दिया है। अयोध्या, लखनऊ, रायबरेली, अमेठी और वाराणसी ही नहीं सभी जिलों में इस बात की टीस स्पष्ट दिखायी देती हैं कि नरेन्द्र मोदी के नाम पर विजयश्री वरण करने वाले सांसदों और विधायकों में से बहुत बड़ी संख्या ऐसी है, जिनकी अभिरुचि समाज सेवा से इतर ऐसे कामों मे अधिक है जो पूर्णतया अराजनीतिक और असामाजिक लगती है। सांसदों और विधायकों के लिए भाजपा ने कभी एक कार्यक्रम तय किया था कि सभी अपने क्षेत्र में एक गाँव को गोद लेकर विकास का आदर्श प्रस्तुत करेंगे। पता नहीं 80 में से कोई एक सांसद या विधायक ऐसा उदाहरण अपने नाम से दर्शा सकता है। धन कमाने और कोरी प्रतिष्ठा के चलते गर्दन झुकाकर समाज के निचले पायदान पर खड़े आदमी को निहारने की उनके मन की चाहत क्यों मर गयी। जन नेता समाज के प्रति लगाव से बनते हैं। प्रक्षेपित अनुदार मन के स्वानुभूत महान लोगों का मन नर नारायण के विभेद में ही उलझा रहता है। उन्हें यह प्रतीति होती है कि उजले वस्त्रों में सिमटा उनका अहंकार नरेन्द्र मोदी जैसे महान जनसेवक के लिए एक विवशता बन चुका है। ऐसे लोग बड़े से बड़े राष्ट्र नायक के लिए अपघाती सिद्ध होते हैं। 2024 के चुनाव परिणाम भाजपा के लिए मील का पत्थर हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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