मनमोहन सिंह चले गये। कौन मनमोहन सिंह? पहला परिचय भारत के प्रधानमंत्री। दूसरा परिचय इटली की नागरिक सोनिया गांधी का मोहरा, चम्पू। तीसरा परिचय विश्व बैंक का नौकर/अफसर। चौथा परिचय अमेरिका और यूरोप का हितैषी। पाचवां परिचय कोयले घोटाले का आरोपी। छठा परिचय टूजी स्पेक्टम सहित अनेक घोटालों के आरोपी। सातवां परिचय रैनकोर्ट पहनकर बाथरूम में स्नान करने वाला आदमी। आठवां परिचय कश्मीरी पंडितों के हत्यारे हुर्रियत आतंकियों की चरणवंदना करने करने वाला। नवां परिचय हिन्दू आतंकवाद को प्रत्यारोपित करने वाला और दसवां परिचय विदेशों में आतंकी पकड़ाते हैं तो फिर उन्हें नींद नहीं आती है कहने वाले प्रधानमंत्री। ग्यारहवां परिचय आर्थिक संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है, कहने वाले प्रधानमंत्री।
इसके अलावा भी कई आरोप हैं जिन पर चर्चा होती है और उन चर्चाओं के घेरे में मनमोहन सिंह आते जरूर हैं। मनमोहन सिंह बहुत ही भाग्यशाली रहे हैं, उनके प्रति विभिन्न जांच आयोग, संसद, कार्यपालिका और न्यायपालिका सबके सब नतमस्तक रहे। उन्हें ईमानदार मानते रहे। सत्य हरिशचंद की डिग्री उन्हें देते रहे और यह कहते रहे कि वह घोटालेबाज हो ही नहीं सकते हैं। घोटाले कर ही नहीं सकते हैं और जनता को ईमानदार बनकर मूर्ख बना ही नहीं सकते हैं। इन पर नरेन्द्र मोदी की सरकार भी संज्ञान नहीं ली और न ही इन्हें जेलों में डाल सकी। जबकि कोयले घोटाले में तो मनमोहन सिंह का नाम सामने आया था।
नैतिकता और तथ्य देख लीजिये। अरबों-खरबों का कोयल घोटाला हुआ। जिस फाइल पर कोयला सचिव ने साइन की थी उसी फाइल पर मनमोहन सिंह ने भी साइन की थी। मनमोहन सिंह के पास कोयला मंत्रालय की भी जिम्मेदारी थी। तकनीकी तौर पर यह कहें कि प्रधानमंत्री के साथ ही साथ वह कोयला मंत्री भी थे। कौड़ियों के भाव में कोयल खानें आवंटित हुई थी। पसंदीदा कपंनियों और कांग्रेस के नजदीकी औद्योगिक घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए नियम कानूनों को ताक पर रख कर कोयला खानें आवंटित की गयी थी, बेची गयी थी। इस करतूत में पर्यावरण का भी ध्यान नहीं रखा गया और न ही जन अधिकारों का ध्यान रखा गया था। न ही इससे प्रभावित होने वाली जनता का भी ध्यान नहीं रखा गया था।
राजनीतिक विद्रोह हुआ। भाजपा ने घोटाले को लेकर अभियान छेड़ा था। फलस्वरूप मनमोहन सिंह के उजले दामन पर कंलक लगे। दाग के छीटे लगे, कांग्रेस की बदनामी हुई। सीबीआई जांच बैठी। जांच में प्रमाणित हो गया कि घोटाले हुए हैं। अवैध और नियमों को ताक पर रख कर कोयला खानें बेची गयी थी, औद्योगिक घरानों को लाभ हुए और सरकारी राजस्व का नुकसान हुआ। वास्तव में अरविंद केजरीवाल के शराब घोटाले की तरह ही मनमोहन सिंह का कोयला घोटाला था। जिस तरह से अरविंद केजरीवाल ने पार्टी फंड वृद्धि करने के लिए शराब घोटाले को अंजाम दिया था, उसी तरह से कांग्रेसियों ने और सोनिया गांधी के भ्रष्ट समूहों ने कांग्रेस पार्टी के फंड को बड़ा करने के लिए कोयले घोटाले को अंजाम दिया था।
कांग्रेस पार्टी को इस घोटाले में बहुत बड़ी राशि मिली थी। सीबीआई ने अपनी जांच में कोयला सचिव को मुख्य आरोपी बनाया था। कोयला सचिव तो दोषी था ही और कोयला सचिव को कोर्ट से सजा भी हुई। पर कोयला सचिव द्वारा बढायी गयी फाइल पर स्वीकृति तो कोयला मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने ही दी थी। फिर मनमोहन सिंह दोषी क्यों नहीं हुए? न्याय का कखग जानने वाला भी यह कह सकता है कि सबसे अधिक दोषी कोयल मंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह ही थे जो कोयले खान बेचने वाली फाइल पर अंतिम हस्ताक्षर किये थे और स्वीकृति दी थी। अगर मनमोहन सिह ने फाइल पर स्वीकृति नहीं दी होती तो फिर कोयला खानें बेची ही नहीं जा सकती थी। इसलिए मनमोहन सिंह दोषी थे। शेष दर्जनों घोटालों में मनमोहन सिंह यह कहकर बच गये थे कि उन्हें मंत्रियों ने धोखे में रखा और उन्हें गुमराह किया।
मुस्लिम आतंकवादियों के प्रति उनकी कैसी हमदर्दी रही थी? यह भी जानने की जरूरत है। एक बार विदेश में एक भारतीय मुसलमान आतंकी के तौर पर पकड़ा गया था। वह भारतीय मुसलमान आतंकी हिंसक और खतरनाक कार्रवाइयों का दोषी था और उसकी मानसिकता इस्लाम की हिंसक मानसिकता से जुड़ी हुई थी। जैसे ही यह खबर आयी वैसे ही मनमोहन सिंह ने बयान दिया था कि जब भारतीय मुसलमान आतंकी के तौर पर पकड़े जाते हैं तब उनकी रात की नींद गायब हो जाती है। रात में उन्हें नींद ही नहीं आती है। प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी ऐसी करतूत को क्या नाम दिया जा सकता है? उन्हें तो यह कहना था कि जब भारतीय मुसलमान विदेशों में आतंकी के तौर पर पकड़े जाते हैं, तब उन्हें बदनामी से डर लगता है। भारत की बदनामी होती है और भारतीय हित को नुकसान होता है।
मनमोहन सिंह ऐसा बयान देते तो निश्चित तौर पर यह संदेश जाता कि ऐसी आतंकी करतूतों से बचना जरूरी है। इतना ही नहीं बल्कि मनमोहन सिंह को ऐसे भारतीय मुसलमानों को भारतीय कानूनों का पाठ पढ़ाने की जिम्मेदारी थी जो विदेशों में जाकर भारत के हित और प्रतिष्ठा की कब्र खोदते हैं। हुर्रियत प्रेम उनका कितना घातक था, कितना जहरीला था यह कौन नहीं जानता है। हुर्रियत के जितने भी नेता हैं, वे कभी न कभी दुर्दांत आतंकी रहे हैं। पाकिस्तान परस्त रहे हैं। पाकिस्तान के फरमान पर भारत में हिंसा करते रहे हैं। कश्मीरी पंडित, हिन्दुओं की हत्याओं, हिन्दू महिलाओं के साथ दुष्कर्म, संपत्ति विध्वंस आदि में शामिल रहे हैं। हुर्रियत के आतंकी खुद बयान देते थे कि कश्मीरी पंडितों और हिन्दुओं की हत्याओं में शामिल रहे हैं फिर भी हुर्रियत के नेताओं के साथ इनकी बैठकें ऐसी होती थी कि जैसे ये शांति के पुजारी और मसीहा हैं। इनमें यह कहने का साहस नहीं था कि हुर्रियत के नेता आतंकी रहे हैं और हमारे देश के नागरिकों के हत्यारे रहे हैं, इसलिए हम इनसे बात नहीं करेंगे। हम कश्मीर के शांतिप्रिय लोगों से बात करेंगे। यही कारण था कि हुर्रियत के नेता दिल्ली में सरेआम घूमते थे और अपने आप को शासक के तौर पर प्रस्तुत करते थे। नरेन्द्र मोदी ने हिन्दुओं के हत्यारे और पाकिस्तान के मोहरे हुर्रियत के नेताओं को जेल भेजा और उनकी हिंसक फाइलें खोलवाईं। आज कई हुर्रियत नेता जेल में बंद होकर अपनी गुनाह और करतूत की सजा भोग रहे हैं।
मुस्लिम प्रेम उनका कौन नहीं जानता है? मनमोहन सिंह ने मुसलमान परस्ती दिखाने में लालू, मुलायम को पीछे छोड़ दिया था। मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। जबकि ऐसी बात कहने का साहस जवाहलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने भी नहीं किया था। मुसलमान हम पांच और हमारे पच्चीस के सिद्धांत पर चल कर देश की आबादी बढ़ा रहे हैं और देश के संसाधनों का संहार कर रहे हैं, कल्याणकारी योजनाओं का सर्वाधिक लाभ मुसलमान उठा रहे हैं। दंगा, हिंसा और आतंक में मुसलमान आगे हैं। पर मनमोहन सिंह ने यह कभी भी नहीं कहा कि मुसलमान आतंकी हैं। मनमोहन सिंह राज में हिन्दू आतंक का प्रत्यारोपण हुआ और हिन्दुओं को अपमानित करने जैसे दर्जनों अभियान चलाये गये।
मनमोहन सिंह राज में एक ऐसा कानून लाया जा रहा था जो हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बना देता और हिन्दुत्व का संहार कर देता। उस कानून का नाम दंगारोधी कानून था। इस कानून के लागू होने पर दंगे में सिर्फ हिन्दू ही दोषी होता। हिन्दुओं पर ही मसलमानों की संरक्षण और सुरक्षा की जिम्मेदारी होती, दंगों की जांच करने वाला मुसलमान होता और फैसला देने वाला जज भी मुसलमान होता। मनमोहन सिंह की 2014 में सत्ता से विदाई नहीं होती तो फिर दंगा रोधी कानून भी संसद से पास हो जाता। इनकी बेटियों ने बाप की सत्ता का लाभ भी उठाया। राज्यसभा सदस्य बनने के लिए मनमोहन सिंह ने झूठा प्रमाण पत्र दिया था, जिसमें उसने कहा था कि मैं असम का नागरिक हू, असम का पता भी उन्होंने फर्जी दिया था। असम में वे कभी रहे तक नहीं थे।
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वे आर्थिक विकास का भी जनक नहीं थे। सोना गिरवी रखने वाला व्यक्ति कैसे महान या जनक हो सकता है। अर्थव्यवस्था विध्वंस हुई तो फिर मनमोहन सिंह ने कौन सी नीति अपनी बनायी थी? उनकी अपनी कोई नीति नहीं थी। उन्होंने सिर्फ विश्वबैंक, अमेरिका और यूरोप की आर्थिक नीतियों को सिर्फ उठा कर लागू कर दिया। इसलिए उन्हें आर्थिक नीतियों का जनक नहीं बल्कि आर्थिक नीतियों का फोटो कॉपी कहा जाना चाहिए। कोई भी नैतिक व्यक्ति, कोई भी सत्यनिष्ठा से पूर्ण व्यक्ति किसी का मोहरा नहीं हो सकता है। किसी का चंपू नहीं हो सकता है, किसी का हित साधक नहीं हो सकता है? सोनिया गांधी का चंपू, मोहरा और हित साधक मनमोहन सिंह था या नहीं? यह कौन नहीं जानता है? दुर्भाग्य यह है कि कभी देश की नदियों के बारे में नहीं जानने वाले, किसानों के हित को नहीं जानते वाले, जंगल और पहाड नहीं जानने वाले, किसी राजनीतिक आंदोलन में भूमिका नहीं निभाने वाले मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच जाते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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